केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जम्मू-कश्मीर के दौरे से लौटने के बाद राज्य में राजनैतिक हलचल तेज हो गयी है। अमित शाह ने वापस लौटने के बाद आज लोकसभा में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि राज्य के हालात को देखते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन और 6 महीने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए। इससे राज्य की सियासत गर्माने के आसार हैं। यही नहीं इससे राज्य में आतंकवाद को समर्थन देने वाले अलगाववादी नेताओं की मुश्किलें भी बढ़ेंगी।

अमित शाह जम्मू कश्मीर में बुधवार से दो दिवसीय दौरे पर थे। वहां पर उन्होंने सुरक्षा का जाएजा लिया और सुरक्षा बलों से मजबूती से आतंकवाद को खत्म करने को कहा। हालांकि अपने इस दौरे में अमित शाह ने किसी भी राजनैतिक दल के नेता से मुलाकात नहीं की। यही नहीं वह हुर्रियत के नेताओं से भी नहीं मिले। इसका जरिए उन्होंने राज्य के अलगाववादी नेताओं को कड़ा संदेश दिया।

लिहाजा आज वहां से लौटने के बाद उन्होंने लोकसभा में राष्ट्रपति शासन को और छह महीने बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया। इसके साथ ही शाह ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 का संशोधन करने वाला विधेयक भी लोकसभा में पेश किया। इसके पारित हो जाने के बाद राज्य में सीमा के करीब रहने वाले तकरीबन साढ़े तीन लाख लोगों को इसका सीधा फायदा मिलेगा।

इसके जरिए सीधे तौर पर जम्मू, कठुआ और सांबा जिलों के सीमावर्ती इलाकों को लाभ मिलेगा। शाह ने लोकसभा को बताया कि वर्तमान में राज्य के हालत नियंत्रण में हैं। सरकार ने आतंक के खिलाफ कठोर कदम उठाएं हैं। उन्होंने सदन में साफ कहा कि केन्द्र सरकार राज्य से आतंकवाद की जड़ें उखाड़ देगी और इसके लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति केन्द्र सरकार ने अपनायी है।

जाहिर है कि राज्य में फिर से राष्ट्रपति शासन के छह महीने बढ़ जाने के बाद अलगाववादी नेताओं और आतंकवाद का समर्थन करने वालों की मुश्किलें बढ़ेंगी। क्योंकि सुरक्षा बलों ने जिस तरह से राज्य में आतंकवाद को खत्म का अभियान चलाया है। उससे आतंकवाद की जड़े खत्म हो रही हैं। साथ ही आतंकवाद को समर्थन देने वाले अलगाववादी नेताओं की जमीन खिसक रही है।