पुलवामा में हुए फिदायीन हमले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को संदेह है कि इसके लिए इस्तेमाल किया गया आरडीएक्स और अमोनियम नाइट्रेट पाकिस्तान से लाया गया था। 

एजेंसी के शीर्ष सूत्रों के अनुसार, एनआईए को संदेह है कि इस हमले के लिए इस्तेमाल किया गया आरडीएक्स पाकिस्तानी सेना की मदद से भारत में पहुंचाया गया। यह प्लास्टिक विस्फोटक सैन्य ग्रेड का है। इसे सीमा पार से ही हासिल कर पाना संभव है। 

एजेंसी को यह भी संदेह है कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने पिछले साल भारत में घुसपैठ करने में कामयाब रहे छह से ज्यादा आतंकियों के जरिये इन विस्फोटकों को भारत पहुंचाया। एनआईए के सूत्रों का यह भी दावा है कि पाकिस्तानी सेना ने जम्मू सीमा के रास्ते भारत में प्रतिबंधित प्लास्टिक विस्फोटक पहुंचाया। 

जांचकर्ताओं के अनुसार, पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के कमांडरों ने इन विस्फोटकों को श्रीनगर में जैश के स्थानीय आतंकियों को पहुंचाया था, जिनकी पहचान मुद्दसिर खान और शाहिद बाबा के तौर पर हुई है। इस दौरान एक विस्फोटक और हथियार बनाने के विशेषज्ञ को आतंकियों को फिदायीन हमले के लिए प्रशिक्षण देने के लिए भी बुलाया गया था। 

इस बीच, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली समेत दूसरे कई राज्यों की पुलिस देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले पुलवामा के युवकों से पूछताछ कर रही है। 
उधर, खुफिया ब्यूरो ने दिल्ली में रहने वाले पुलवामा के चार युवकों से पूछताछ भी की है, हालांकि उनसे कुछ नहीं मिला। जम्मू-कश्मीर पुलिस से भी ऐसे युवकों की लिस्ट बनाने को कहा गया है जिन्होंने पिछले छह महीने में पुलवामा छोड़ा है। आतंकवादी बनने के लिए सीआरपीएफ के काफिले पर हमला करने वाले आदिल अहमद डार ने भी घर छोड़ दिया था। पुलिस को ऐसे कुरियर के बारे में भी खुफिया सूचनाएं जुटाने को कहा गया है जो अब भी श्रीनगर में रह रहे हैं। सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि इस हमले को करने में दो दर्जन से अधिक आतंकियों ने अहम भूमिका निभाई। इनमें कैरियर, विस्फोटक के विशेषज्ञ भी शामिल थे। 

14 फरवरी को जैश-ए-मोहम्मद के एक फिदायीन ने 350 किलोग्राम विस्फोटक से लदी कार को सीआरपीएफ के काफिले की एक बस से भिड़ा दिया था। इस हमले में 40 से ज्यादा जवान शहीद हो गए थे। जम्मू-कश्मीर के  पुलवामा में यह हमला तब हुआ जब सीआरपीएफ का 78 वाहनों का काफिला जम्मू से श्रीनगर जा रहा था। इस काफिले में 2500 जवान श्रीनगर जा रहे थे। इनमें से अधिकतर जवान ऐसे थे, जो छुट्टियां बिताने के बाद अपनी तैनाती वाले क्षेत्रों में लौट रहे थे।