नई दिल्ली। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कई सांसद रहे आरिफ मोहम्मद खान को आज केन्द्र सरकार ने केरल का राज्यपाल नियुक्त किया है। आरिफ मोहम्मद भाजपा के टिकट पर कैसरगंज से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। कभी आरिफ मोहम्मद खान ने शाहबानो मामले में राजीव गांधी की कैबिनेट से इस्तीफा दिया था लेकिन पिछले दिनों ने उन्होंने केन्द्र सरकार की तीन तलाक मामले में तारीफ की थी। जिसके बाद ये माना जा रहा था कि भाजपा सरकार खान को कोई अहम पद देगी।

आरिफ मोहम्मद खान मुस्लिम समाज में फैली कुरीतियों को हटाने के सबसे बड़े पक्षधर माने जाते हैं। अपने विचार को समाज की बेहतरी के लिए खुलकर रखते हैं। लिहाजा तीन तलाक पर उन्होंने केन्द्र सरकार की तारीफ की जबकि राजीव गांधी सरकार के दौरान शाहबानो मामले में उन्हें राजीव गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था।

इसके बाद आरिफ ने राजीव कैबिनेट से इस्तीफा दिया था। हालांकि पिछले दिनों आरिफ को राज्यसभा में भेजे जाने की चर्चा चल रही थी। इसके लिए संघ तैयार था और भाजपा उन्हें राज्यसभा में भेज कर मुस्लिमों को संदेश देना चाहती थी। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान का परिवार बाराबस्ती से ताल्लुक रखता है और इसके बाद आरिफ मोहम्मद खान ने दिल्ली के जामिया मिलिया स्कूल से पढ़ाई की। उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और फिर लखनऊ के शिया कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की।

आरिफ मोहम्मद खान का राजनीतिक सफर

आरिफ मोहम्मद खान अपने छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ गए थे और पहली बार भारतीय क्रांति दल नाम की एक छोटी पार्टी के टिकट पर बुलंदशहर की सियाना सीट से विधानसभा चुनाव लड़े थे। हालांकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वह पहली बार 1977 में विधायक चुने गए थे। इसके बाद  उन्होंने कांग्रेस को ज्वाइन किया और 1980 में कानपुर से और 1984 में बहराइच से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने।

इस दौरान चर्चित शाह बानो केस में खान ने मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकार देने की वकालत की और इसे मुस्लिम समाज और कांग्रेस ने मुस्लिम समाज का विरोध समझा। जब राजीव गांधी ने संसद में विधेयक पेश कर सुप्रीम कोर्ट का आदेश शाहबानो मामले में पलट दिया तो खान ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और कैबिनेट मंत्री का भी पद छोड़ दिया।

भाजपा में भी रहे आरिफ

कांग्रेस छोड़ने के बाद खान ने जनता दल का दामन थामा और 1989 में वो फिर सांसद चुने गए। उन्हें जनता दल सरकार में केन्द्र सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया और इसके बाद उन्होंने बीएसपी में अपना राजनैतिक कैरियर शुरू किया। बीएसपी के टिकट पर वह 1998 में फिर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे और फिर बीएसपी छोड़ने के बाद उन्होंने 2004 में भाजपा का दामन थामा और भाजपा के टिकट पर कैसरगंज सीट से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।