पुलिस का सिपाही कानून और व्यवस्था की देख रेख करने के लिए जमीनी स्तर पर सबसे ज्यादा जिम्मेदार होता है। बड़े से बड़े मामले को सुलझाने में पुलिस के सिपाही की भूमिका सबसे अहम होती है। 

लेकिन सोचिए स्थिति कितनी भयावह हो जाएगी, जब यही जमीनी स्तर का सिपाही विद्रोह पर उतारु हो जाए। वह भी एक अन्यायपूर्ण तरीके से की गई हत्या का समर्थन करते हुए।

यूपी में कुछ ऐसा ही हो रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शायद देश का यह सबसे बड़ा राज्य संभलता हुआ नहीं दिख रहा है। मामला है ऐपल के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी की बर्बर हत्या का। जिसके हत्यारोपी यूपी पुलिस के सिपाही प्रशांत चौधरी को उसके साथी सिपाही भारी समर्थन दे रहे हैं। 

एक हत्यारोपी के समर्थन में यूपी पुलिस के सिपाही हाथ पर काली पट्टी बांधकर विद्रोह की तैयारी में जुटे हैं। सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया जा रहा है। यहां तक कि विद्रोह का बिगुल फूंकने के लिए चंदा तक इकट्ठा किया जा रहा है। वह भी तब, जब यूपी में 'दी पुलिस (इनसाइटमेंट टू डिसएफेक्शन) एक्ट 1922’ लागू है। जो कि पुलिसकर्मियों को सरकारी नीतियों की आलोचना करने से रोकता है। इसके उल्लंघन पर सजा का भी प्रावधान है। 

अब बगावत के और कितने सबूत चाहिए। क्या कोई बड़ा कांड हो जाने के बाद ही संभलेंगे मुख्यमंत्री योगी।      
मामला इतना गंभीर है, कि बिना वजह पुलिस की गोली से मारे गए विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी डरी हुई हैं। क्योंकि उनका घर पुलिस लाइन के बिल्कुल पास ही है। उन्होंने हत्यारोपी सिपाही प्रशांत चौधरी के पक्ष में कैंपेन चलाने वालों से अपनी दिल की आवाज सुनने की अपील की है। 

लेकिन हत्यारोपी को मिल रहा जनसमर्थन सचमुच अचरज में डालने वाला है। उसकी पत्नी राखी मलिक, जो कि यूपी पुलिस में ही है। उसके अकाउंट में केस लड़ने के लिए 5.28 लाख रुपए इकट्ठा हो गए हैं। राखी के खाते में 25 सितंबर तक 447.26 रुपए का बैलेंस था। अगले पांच दिन तक उसके खाते में कोई ट्रांजेक्शन नहीं हुआ। लेकिन हत्या के अगले ही दिन उसके अकाउंट में पैसे आने लगे। यह राशि 50 रुपए से लेकर 1000 तक की थी। जो कि साढ़े पांच लाख तक पहुंच गया।

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सोशल मीडिया में चल रहे कैंपेन के मुताबिक हत्यारोपी प्रशांत का केस लड़ने के लिए यह लोग पांच करोड़ रुपए इकट्ठा करना चाहते हैं। 

उधर पुलिस के आलाधिकारी इस पूरे मामले को लेकर अब तक गंभीर नहीं है। माय नेशन ने इस मामले में जब लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, तो उनका फोन पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी ने उठाया। जिन्होंने मात्र यह बोलकर मामला टाल दिया, कि काली पट्टी मामले की जांच शुरु हो गई है।

एसएसपी लखनऊ कलानिधि नैथानी की भूमिका इस मामले में पहले भी सवालों के घेरे में आ चुकी है। 

विवेक तिवारी की हत्या के ठीक बाद जब कलानिधि नैथानी प्रेस कांफ्रेन्स करके आरोपी प्रशांत चौधरी को जेल भेज दिए जाने का ऐलान कर चुके थे। ठीक उसी समय वह खुलेआम मीडिया के सामने अपना बयान दर्ज करवा रहा था। 
 
दरअसल बात ये है कि यह पूरा मामला मुख्यमंत्री योग और पुलिस के आलाधिकारियों के हाथ से फिसलता हुआ दिख रहा है। जमीनी स्तर पर काम कर रहे सिपाहियों के बगावती तेवरों ने उनके हाथ पांव फुला दिया हैं। 

शुरुआत में तो मुख्यमंत्री ने मामले को संभालने की कोशिश में आनन फानन सामने आकर बयान दे दिया। लेकिन वह अपनी पुलिस को ही अन्याय का साथ नहीं देने के लिए समझा नहीं पा रहे हैं। 

यह मामला एक हाईप्रोफाइल मर्डर का है अन्यथा इसे दबा देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। खुद यूपी के कानून मंत्री पहली एफआईआर में हत्यारोपी का नाम नहीं दर्ज करने पर आपत्ति जता चुके हैं। 
 
दरअसल उत्तर प्रदेश में इस तरह की घटना अप्रत्याशित नहीं है। क्योंकि मुख्यमंत्री योगी ने यूपी पुलिस को एनकाउंटर पुलिस में बदल दिया था। बंदूके लहराते हुए दबंग स्टाइल में यूपी पुलिस के जवान जिसे चाहे गोली मारते हुए घूम रहे थे। लेकिन इस बार योगी का दांव उल्टा पड़ गया है। उनके बेलगाम सिपाहियों ने उन्हें ही मुश्किल में डाल दिया है।