उत्तराखंड की त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नई मिसाल कायम की है। उन्होंने दो निलंबित अधिकारियों के खिलाफ अभूतपूर्व कार्रवाई की है। जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ एक उदाहरण साबित होगा।
देहरादून | मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने जब सत्ता संभाली तब से उनका एक ही नारा था — भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ कार्यवाही में कोई समझौता नहीं। हालांकि जनता को यह शिकायत थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा है। लेकिन अब त्रिवेन्द्र सिंह रावत की कार्रवाई से लोगों का कानून के राज पर भरोसा फिर से कायम हो गया है। उन्होंने 2012 से चल रहे NH 74 घोटाले के आरोपी दो IAS अफसरों पंकज पाण्डेय और चंद्रेश कुमार यादव को निलंबित कर दिया।
मार्च 2017 में सत्तारूढ़ होते ही उन्होंने इस मामले मे एसआईटी गठित करके अपने इरादे साफ कर दिए थे। घोटाले की विस्तृत जानकारी कुमाऊँ के तत्कालीन आयुक्त डी. सैंथिल पांडियन द्वारा की गई जांच के बाद सामने आया। जिसके बाद इस मामले की परतें खुलती चली गईं।
इस मामले में अब तक दो(2) आईएएस और आठ(8) पीसीएस अधिकारियों पर कार्रवाई हो चुकी है। इनके अलावा सम्बंधित विभागो के 22 लोग गिरफ्तार किये जा चुके हैं।
हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में NH 74 को चौड़ा करने के लिए अधिग्रहित की गई भूमि के एवज़ में बाँटी गई मुआवज़ा राशि में करीब रु० 300 करोड़ का घोटाला सामने आया था। घोटाले में मुआवज़े के नाम पर सबसे बड़ा खेल जसपुर, बाजपुर एवं गदरपुर तहसीलों में खेला गया। इस दौरान आज निलंबित किए गए अफसर पाण्डेय और यादव ने ज़िलाधाकारी के रूप उधमसिंह नगर में आर्बिट्रेटर की भूमिका निभाई थी।
मुआवज़ा दिलाने में न्यायकर्त्ता (आर्बिट्रेटर) की संस्तुति अहम् होती है। इससे पहले सरकार ने एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद इन अधिकारियों से अपना पक्ष रखने को कहा था। जिसके बाद ही निलंबन की कार्यवाही की गई।
राकेश चंद्र
Last Updated Sep 19, 2018, 9:23 AM IST