इस बैठक में देशभर के कई सम्मानित साधु संन्यासियों ने हिस्सा लिया। जो कि दिल्ली के आरके पुरम में संकट मोचन आश्रम में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) मुख्यालय में संत उच्चाधिकारी समिति के छत्र तले इकट्ठा हुए। आयोजकों ने इस पूरे कार्यक्रम को मीडिया की चमक से दूर रखा। टेलीविजन कैमरों को मात्र थोड़े समय के लिए कुछ ही फोटो लेने की अनुमति दी गई। 

इस बैठक में राम जन्मभूमि ट्रस्ट के महंत नृत्यगोपाल दास शामिल हुए। वह इस आंदोलन के मुख्य कर्ता-धर्ता हैं। उनकी उपस्थिति से राम जन्मभूमि की मांग को शक्ति हासिल हुई। इसके अलावा परमानंद महाराज की उपस्थिति भी इस महासभा का मुख्य आकर्षण रही। 

माय नेशन को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अयोध्या में चल रहे जमीन विवाद का जल्दी फैसला करने के लिए साधु सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई चाहते हैं। 

अगर अदालत की ओर से कोई बाधा सामने आई, तो संत उम्मीद कर रहे हैं कि मोदी सरकार मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लेकर आएगी। 

सूत्रों का कहना है, कि नवंबर से साधु इसके लिए दबाव बनाना शुरु कर देंगे। वह अलग अलग संसदीय क्षेत्रों के सांसदों से मिलेंगे और आखिर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करेंगे। 

हालांकि नृत्य गोपाल दास ने कोई सीधी चेतावनी जारी करने से इनकार कर दिया, लेकिन एक दूसरे महत्वपूर्ण संत रामविलास वेदांती ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर सरकार विवादित ढांचा गिराए जाने की तिथि 6 दिसंबर तक राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने में असफल रहती है, तो ‘राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरु कर दी जाएगी’।

इसका अर्थ है कि अयोध्या में फिर से कारसेवा शुरु कर दी जाएगी। यह राज्य में पुलिस और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, जो कि 1992 में बाबरी ढांचे को गिराए जाने के समय देखी गई थी। 

लेकिन विश्वेश्वर तीर्थ महाराज, जो कि बहुत ज्यादा उग्र मुद्रा में नहीं थे, उन्होंने सरकार को सलाह दी, कि मंदिर निर्माण के लिए संसद में संयुक्त सत्र बुलाया जाना चाहिए। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि ‘हम राम मंदिर पर किसी तरह का समझौता नही कर सकते’। 

मंदिर आंदोलन के एक और बड़े चेहरे शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी से उन्हें बहुत उम्मीदें हैं। उनकी सरकार ‘रामराज्य’ की स्थापना का मार्ग प्रशस्त जरुर करेगी। 

बहरहाल फिलहाल यह कहना मुश्किल है, कि मोदी सरकार संतों की मांग पर कितना सहानुभूतिपूर्वक गौर करेगी। क्योंकि इस मामले में अदालत में सुनवाई चल रही है। 

एक केन्द्रीय मंत्री ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर पत्रकारों को जानकार दी, कि मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश के मामले में सरकार कानूनी पेचीदगियों पर विचार कर रही है। 

लेकिन उत्तर प्रदेश के आने वाले सभी सांसदों ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक दो मुद्दों पर जनता में बेहद असंतोष है। इसमें से पहला मामला एससी एसटी अत्याचार निवारण एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करने के लिए अध्यादेश लाना और दूसरा यह कि राम मंदिर निर्माण में व्यर्थ की देरी हो रही है।

एक बीजेपी सांसद ने बताया, कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जनता के इस असंतोष को भुनाने की तैयारी में है। 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब भी एक साथ बैठकर जन भावनाओं पर विचार विमर्श करेंगे तो उन्हें अध्यादेश लाने और न लाने दोनों की लाभ और हानि पर सोचना होगा। लेकिन फिलहाल तो आम चुनाव सिर पर आ चुके हैं।   मंदिर निर्माण के लिए साधुओं ने बिगुल फूंक दिया है। इसके बाद अब मोदी सरकार अपने मजबूत वोट बैंक को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती है।