नई दिल्ली--सोहराबुद्दीन शेख-तुलसीराम प्रजापति कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में 13 साल बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। इस मामले में कोर्ट ने सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया है।

इसी महिने की 5 तारीख को इस मामले की सुनवाई खत्म हो गई थी। इस एनकाउंटर के कारण भारतीय राजनीति में काफी भूचाल आ गया था। इस केश में 210 गवाह कोर्ट में पेश हुए थे। 

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकार और एजेंसियों ने इस केस की जांच करने में काफी मेहनत की, 210 गवाहों को पेश किया गया। लेकिन किसी भी तरह से सबूत सामने नहीं आ सके। उन्होंने कहा कि इसमें अभियोजन पक्ष की गलती नहीं है कि गवाहों ने कुछ नहीं बताया। कोर्ट ने इसी के साथ सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया।

सीबीआई की विशेष अदालत के जज एसजे शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि, हमें इस बात का दुख है कि तीन लोगों ने अपनी जान खोई है। लेकिन कानून और सिस्टम को किसी आरोप को सिद्ध करने के लिए सबूतों की जरुरत होती है।

कोर्ट ने कहा कि सीबीआई इस बात को सिद्ध ही नहीं कर पाई कि पुलिसवालों ने सोहराबुद्दीन को हैदराबाद से अगवा किया था। सीबीआई की स्पेशल अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जो गवाह और सबूत पेश हैं वह किसी साजिश और हत्या को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि परिस्थिति के अनुसार जो भी साक्ष्य पेश किए गए वह भी इसे सिद्ध नहीं करते हैं। साथ ही कोर्ट ने तुलसीराम प्रजापति की साजिशन हत्या की बात भी सही नहीं माना। 

इस मामले में पहले ही अदालत ने सीबीआई के आरोपपत्र में नामजद 38 लोगों में 16 को सबूत के अभाव में आरोपमुक्त कर दिया था। 2005-06 के दौरान हुए इस एनकाउंटर में इस कथित गैंगस्टर सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति के मारे जाने से राजनीति काफी गर्मा गई थी। 

बरी होने वाले लोगों में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह जो उस समय गुजरात के गृह मंत्री थे। पुलिस अफसर डी. जी. बंजारा जैसे नाम शामिल हैं। ये मामला पहले गुजरात में चल रहा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया था।

गौरतलब है कि पुलिस का आरोप था कि सोहराबुद्दीन शेख का संबंध आतंकी संगठन से था और वह किसी बड़ी साजिश के तहत काम कर रहा था।