सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में हुए एनकाउंटर के मामले में मानवाधिकार आयोग से रिपोर्ट मांगी है। इस मामले में एक एनजीओ ने अदालत में याचिका दायर की थी। लेकिन राज्य सरकार का आरोप है कि इस याचिका में जानबूझकर अल्पसंख्यक समुदाय की मौतों को हाईलाइट किया गया। जबकि एनकाउंटर में मारे गए 48 अपराधियों में से मात्र 18 अल्पसंख्यक जबकि 30 बहुसंख्यक हैं।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार के आने के बाद राज्य में कथित फर्जी एनकाउंटर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार आयोग से रिपोर्ट मांगी। कोर्ट ने कहा हम इस मामले को डिटेल में सुनेंगे।
इस मामले में अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी। राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा है कि सभी सभी एनकाउंटर्स में कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है।
यह याचिका पीयूसीएल ने दायर की है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में हुई पुलिस मुठभेडों की जांच के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करने से अनिच्छा जताई और याचिकाकर्ता से पूछा कि क्यों न इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया जाए।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने यह सवाल शुक्रवार को याचिकाकर्ता पीयूसीएल से पूछा था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में दिए अपने जवाब में कहा था कि याचिकाकर्ता ने बहुत सावधानी से उन्हीं मुठभेड़ों का हवाला दिया गया है, जिनमे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग मारे गए है। यह पूरी तरह से एकतरफा है जबकि मुठभेड़ों में चार पुलिस कर्मी भी मारे गए है।
मुठभेड़ों में कुल 48 अपराधी मारे गए है, इनमें से 30 बहुसंख्यक और सिर्फ 18 ही अल्पसंख्यक समुदाय के है।
राज्य सरकार ने कहा था कि कोई भी कार्रवाई धर्म देखकर नही किया जाता है। बल्कि कानून से भाग रहे अपराधियों के खिलाफ कानून के अनुसार की जाती है। पुलिस ने यह कार्रवाई भी आत्मरक्षा में की है, जब उनपर घातक हथियारों से हमला किया गया।
राज्य सरकार ने यह भी कहा था कि यह मामला यूपी तक सीमित है इसलिए मामले को हाइकोर्ट में जाना चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले को हाइकोर्ट भेजने से इनकार कर दिया है।
Last Updated Jan 14, 2019, 2:13 PM IST