नेशनल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट (supreme court) आज समलैंगिक विवाह पर अहम फैसला सुना रहा है। कोर्ट ने कहा कि यह कोर्ट कानून नहीं बना सकता हालांकि व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है। स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव करने की जरूरत है या नहीं ये तय करना संसद का काम है। वहीं अभी तक सुनाए गए कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि इस मसले में कुल चार फैसलें (marriage equality verdict in india)  हैं जिनमें कुछ पर सहमति है और कुछ असहमति के। कोर्ट ने कहा कि वह कानून नहीं बन सकता ( gay marriage judgement) लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है। इसके साथ ही कहा कि जीवनसाथी चुना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अपने पार्टनर के साथ जीवन जीने की क्षमता जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे (sex marriage hearing latest news) में आती हैष ऐसे में एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार है।

बता दें,कोर्ट में 18 समलैंगिक जोड़ों ने उनकी शादी को मान्यता देने के लिए याचिका दायर की थी कोर्ट ने (supreme court of india news) 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था फिलहाल देशभर की नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई है।


याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दिए थे यह तर्क (same sex marriage in india verdict) 

 

समान सेम सेक्स रिलेशनशिप को स्वीकृति

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि उन्हें भी समानता (same sex marriage india) और निष्पक्षता के साथ जीने का हक है इसलिए उनके संबंधों को मान्यता दी जाए।

प्यार का अधिकार

समलैंगिक जोड़ों का कहना था की सभी व्यक्तियों को प्यार करने का (same sex marriage india supreme court) अधिकार है चाहे वह सेम सेक्स से प्यार करें या फिर अलग जेंडर से।

संवैधानिक अधिकार

एलजीबीटी समूह का कहना है कि समलैंगिक विवाह पर प्रतिबंध उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

मानवाधिकारों का उल्लंघन

उन्होंने यह भी कहा कि समलैंगिक विवाह के इंकार से उनके मानवाधिकारों का भी उल्लंघन होता है।

पसंद की स्वतंत्रता

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि शादी इंसान की पसंदीदा चॉइस होती है ऐसे में सामाजिक या फिर कानूनी बढ़ाओ से इसे निश्चित नहीं किया जाना चाहिए।

कानूनी सुरक्षा

उन्होंने तर्क दिया कि हम लोगों को भी उसी तरह की सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए जैसे विषम लैंगिक जोड़ों को दी जाती है।

मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम

कोर्ट में यह भी तर्क दिया गया कि आम समाज से अलग होने के कारण उन्हें भेदभाव की नजरों से देखा जाता है जिस वजह से उन्हें मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है।

आर्थिक अधिकारों से इनकार

समलैंगिक वर्ग के लिए कोई भी कानून न होने से वह आर्थिक लाभ से भी वंचित हो रहे हैं।

सामाजिक वैधता

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अगर उन्हें शादी करने की मान्यता मिलती है तो उन्हें सामाजिक वैधता भी मिलेगी।

धारा 377 के खिलाफ

याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पर फिर से विचार करने की आवश्यकता को उठाया और तर्क देते हुए कहां की इस संविधान के मौलिक अधिकारों के बिल्कुल उलट है।