नई दिल्ली: 13 जून यानी आज से छह दिन पहले दक्षिण ईरान क्षेत्र से गुजर रहे तेल के दो टैंकरों में आग लग गई। ये टैंकर कतर से ताइवान जा रहे थे। पहली घटना में 1 लाख 11 हजार टन क्षमता वाले  नॉर्वे के फ्रंट अल्टेयर टैंकर जहाज पर आग लग गई। उसमें मौजूद 23 क्रू मेम्बर पानी में कूद गए जिन्हें बेहद मशक्कत से नौसेना ने बचाया। 

इस के एक घंटे बाद  जापान के टैंकर कोकुका करेजियस में भी आग लग गई। यह दोनों घटनाएं दुनिया के सबसे व्यस्त तेल मार्ग ओमान की खाड़ी हरमुज के पास हुईं। 

अमेरिका ने इन दोनों घटनाओं के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया है और इस मार्ग पर तेल वाहक जहाजों की सुरक्षा के लिए अपने एक हजार(1000) और सैनिक तैनात करने का फैसला किया है। अपने दावे के सबूत के तौर पर अमेरिका ने कुछ सैटेलाइट तस्वीरें भी जारी की हैं। जिसमें ईरानी सैनिक जापान के जहाज के पास दिखाई दे रहे हैं। लेकिन ईरान का कहना है कि उसके सैनिक जहाज पर मदद के लिए गए थे। 

ईरान का दावा है कि उसकी नौसेना ने ही जान बचाने के लिए पानी में कूदे जहाज क्रू मेंबर्स को बचाया है। लेकिन अमेरिका का कहना है कि बचाव का काम उसकी नौसेना ने किया है। 

इसी इलाके में पिछले मई के महीने में भी यूएई के चार टैंकरों पर हमला किया गया था। इसका दोष भी अमेरिका ने ईरान पर ही लगाया था। तब भी दोनों देशों के बीच तनाव बहुत गहरा हो गया था। 

तेल के टैकरों पर हो रहे इन हमलों को देखते हुए अमेरिका के कार्यवाहक रक्षा मंत्री पैट्रिक शेनहन ने सोमवार को बयान दिया कि 'ट्रम्प प्रशासन ने पश्चिम एशिया में अपने एक हजार अतिरिक्त सैनिक तैनात करने का फैसला किया है। अमेरिका की सेंट्रल कमान की ओर से अतिरिक्त सैनिकों की मांग को देखते हुए और ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ तथा व्हाइट हाउस से सलाह के बाद यह फैसला लिया गया। मैंने मध्यपूर्व में वायुसैनिक, नौसैनिक समेत तमाम रक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए लगभग एक हजार अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती को मंजूर किया है'।

अमेरिका और ईरान के बीच लगातार गहराते तनाव से पूरी दुनिया पर युद्ध का खतरा मंडराने लगा है। क्योंकि सोमवार को ही ईरान की परमाणु एजेन्सी के प्रवक्ता ने भी यह बयान दिया है कि 'तेहरान वैश्विक शक्तियों के साथ उसके परमाणु समझौते द्वारा तय यूरेनियम भंडारण सीमा को अगले कुछ दिनों में तोड़ देगा। ईरान को 20 प्रतिशत तक संवर्धित यूरेनियम की जरूरत है जो हथियार बनाने से एक कदम पहले का स्तर है। '

टैंकरों पर हमला और परमाणु हथियारों के संवर्द्धन से यह साफ दिखने लगा है कि मध्य पूर्व में अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ रहा तनाव कभी भी गंभीर रुख ले सकता है।