नई दिल्ली। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार में एक बार मुस्लिम आरक्षण को लेकर मतभेद दिख रहे हैं। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। क्योंकि सीएए और एनआरपी को ले लेकर भी पहले महाराष्ट्र सरकार के सहयोगी दलों के बीच मतभेद देखने को मिल रहे हैं। दो दिन पहले ही राज्य के अल्पसंख्यक मंत्री नवाब मलिक ने राज्य में मुस्लिमों को पांच फीसदी आरक्षण देने की ऐलान किया था। लेकिन अब राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का कहना है कि मुस्लिम आरक्षण का प्रस्ताव उनके सामने पेश नहीं हुआ है। ये प्रस्ताव जब पेश किया जाएगा तब इस पर फैसला किया जाएगा।

माना जा रहा है कि मुस्लिम आरक्षण को लेकर ठाकरे सरकार में सहयोगी दलों के बीच एक राय नहीं है। लेकिन आज ठाकरे  के बाद एक बात साफ हो गई है कि महाराष्ट्र सरकार में सहयोगी दल अपने मनमुताबिक फैसला कर इसे राज्य सरकार फैसला बता रहे हैं। दो दिन पहले ही महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा था कि राज्य सरकार राज्य में मुस्लिमों को शिक्षा और शिक्षण संस्थानों में पांच फीसदी आरक्षण देगी। एनसीपी ने अपने घोषणा पत्र में इसका जिक्र किया हुआ था।  

लेकिन आज राज्य के सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनके सामने अभी तक ये प्रस्ताव नहीं आया है और न ही इस पर सहमति बनी है। मलिक ने कहा था कि कांग्रेस और एनसीपी की पिछली सरकारों में मुस्लिमों को  शिक्षण संस्थाओं में पांच फीसदी आरक्षण दिया गया था। जिसके बाद राज्य की उद्धव ठाकरे में भी इसे लागू किया जाएगा। नवाब मलिक के ऐलान के बाद राज्य के मुस्लिमों में खुशी की लहर थी। लेकिन आज सीएम के बयान के बाद साफ हो गया है कि राज्य में मुस्लिम आरक्षण को सरकार ठाकरे सरकार के सहयोगी दलों के बीच आम राय नहीं है। असल में मुस्लिम आरक्षण को लेकर राज्य के विपक्षी दलों का शिवसेना पर जबरदस्त दबाव था।

 विपक्ष ने शिवसेना से पूछा था कि क्या वह मुस्लिम आरक्षण के पक्ष में है। वहीं शिवसेना को लग रहा था कि मुस्लिम आरक्षण के कारण राज्य में उसका जनाधार कम हो सकता है। क्योंकि शिवसेना के समर्थक इसको लेकर पार्टी से नाराज होंगे। जिसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। हालांकि भाजपा नवाब मलिक के बाद उद्धव ठाकरे को घेर रही थी और आरोप लगा रही थी कि मुस्लिम आरक्षण को लेकर उनका स्टैंड साफ नहीं है। जिसको लेकर उद्धव ठाकरे सरकार पर दवाब था।