लखनऊ। उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंकों को लुभाने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में जंग फिर से शुरू हो गई है। छह दिसंबर को डा. भीमराव आम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस के जरिए दोनों दल दलितों को अपने पक्ष में करना चाहते हैं। वहीं भाजपा इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहती है। बसपा से अलग होने के बाद सपा इस दिवस को जोरशोर से मना रही है और प्रदेश में साइकिल यात्रा कर रही है तो सपा की तेजी को देखते हुए बसपा ने इस दिवस को यूपी के साथ ही अन्य प्रदेशों में मनाने का फैसला किया है।

असल में इस साल की शुरूआत में सपा के बैनर और पोस्टरों में आम्बेडर और काशीराम की तस्वीरें दिखाई दी थी तो बसपा के पोस्टर में राममनोहर लोहिया की तस्वीरें दिखाई गई थी। क्योंकि लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन हुआ था। दोनों दलों ने लोकसभा चुनाव साथ लड़ा था। लेकिन चुनाव के बाद आए परिणाम में बसपा को दस और सपा को पांच सीटें मिली। इसके बाद बसपा और सपा के बीच दूरियां बन गई और बसपा प्रमुख मायावती ने सपा के साथ चुनावी गठबंधन को खत्म कर दिया।

हालांकि जब गठबंधन हुआ था तो उस वक्त कहा गया था कि ये गठबंधन 2022 के लिए भी है। इसके बाद राज्य की 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में सपा ने तीन सीटों पर जीत हासिल की जबकि बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। यहां तक बसपा को अपनी परंपरागत सीट को गवांना पड़ा। फिलहाल दो साल बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। ये दोनों दल दलित डा. भीमराव आम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस के जरिए दलितों को साधने में जुट गई हैं।

दलितों को अपने तरफ जोड़ने के लिए सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आगामी 6 दिसम्बर को हर जिले में भव्यता से परिनिर्वाण दिवस मनाने का फैसला लिया है। हालांकि इस कार्यक्रम के लिए सपा की तेजी को देखते हुए बसपा सुप्रीमो ने भी आनन-फानन में पार्टी नेताओं की एक दिसम्बर को बैठक बुलायी। जिसमें इस कार्यक्रम को बड़े स्तर पर मनाने का आदेश  दिया है। बसपा इस कार्यक्रम को न केवल यूपी बल्कि अन्य राज्यों में भी आयोजित करेगी।