नई दिल्ली- महाराष्ट्र पुलिस द्वारा शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी के साथ कांग्रेस इन लोगों को बुद्धिजीवी बताने में जुट गई है। वामपंथी और लिबरल मानसिकता के इन लोगों पर कांग्रेस का कहना है कि यह लोग इंदिरा गांधी के जमाने से बौद्धिक कार्यों में जुटे हुए हैं। सरकार की कार्रवाई को कांग्रेस अघोषित आपातकाल करार दे रही है। लेकिन सचाई यह है कि इन लोगों की गिरफ्तारी यूपीए के शासनकाल में शुरु हुई कार्रवाई के आधार पर की गई है।

वकील और कथित मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फेरेरा इससे पहले 2007 में कांग्रेस कार्यकाल में गिरफ्तार हुए थे। इस तथाकथित राजनीतिक कार्यकर्ता को पहले बांद्रा नक्सलाइट के नाम से जाना जाता था और इनके उपर आतंकवाद के दस मामले दर्ज कराए गए थे। माना जाता है कि यह अतिवादी संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(माओवादी) की संचार शाखा के प्रभारी थे।

वर्नोन गोंजाव्लेस भी इससे पहले 2007 में गिरफ्तार हो चुके हैं। उनके उपर अनलॉफुल एक्टिविटिज प्रिवेन्शन एक्ट(UAPA) के तहत मामला दर्ज कराया गया था। यह एक्ट बाद में प्रिवेंशन ऑफ टेरोरिज्म ऑर्डिनेन्स(POTO) और टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविजिट एक्ट(TADA) से बदल दिया गया। वर्नोन को खतरनाक नक्सलियों की श्रेणी में माना जाता है।

गौतम नवलखा को साल 2011 में, जब यूपीएस सत्ता में थी, तब श्रीनगर एयरपोर्ट पर हिरासत में लिया गया और उन्हें नई दिल्ली का रिटर्न टिकट लेकर वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया गया। तब तक के लिए उनको पुलिस कस्टडी में रखा गया।
 
जेएनयू के पूर्व छात्र रोना विल्सन, जो कि एसएआर गिलानी का करीबी सहयोगी है, वह सबसे पहले 2005 में सुरक्षा एजेन्सियों की निगाह में आया था। एसएआर गिलानी वही शख्स है, जिसे 2001 में हुए संसद हमले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था। उसे साल 2016 में भी मृत्युदंड की सजा पाए कुख्यात आतंकवादी अफजल गुरु की वध तिथि के मौके पर कार्यक्रम आयोजित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। रोना विल्सन ने इसी एसएआर गिलाने के लिए ऑल इंडिया डिफेन्स कमिटी का गठन किया था।

शहरी नक्सली बिनायक सेन को 2007 में गिरफ्तार किया गया और उसपर अनलॉफुल एक्टिविटिज प्रिवेन्शन एक्ट(UAPA) के तहत मामला दर्ज कराया गया। बाद में उसे राष्ट्रद्रोह के आरोप में 2010 में सजा भी सुनाई गई। यहां तक कि साल 2011 में भी जब तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु बिजलीघर के खिलाफ प्रदर्शन शुरु हुआ, तब जयललिता सरकार ने 1800 लोगों के उपर राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज कराया था। उस समय केन्द्र में यूपीए की ही सरकार थी।

इन सबके बावजूद कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का कहना है कि देश में असहमति की आवाज उठाने वालों को कुचलने का की प्रवृत्ति विकसित हो रही है। उन्हें शायद अपनी पार्टी के शासनकाल में हुई इन गिरफ्तारियों की याद नहीं है, या फिर राजनीतिक फायदे के लिए वह इसे भुला देना चाहते हैं।