अनुच्छेद 35A को चुनौती देने वाली याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की पीठ आज की सुनवाई में तय करेगी कि क्या इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं। इससे पहले 6 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई में जजों की पीठ ने इस पर कई तरह के सवाल पूछे थे।

35A का मुद्दा हमेशा से ही संवेदनशील रहा है, यही कारण है कि पिछली सुनवाई के दौरान अलगाववादियों ने घाटी में बंद बुलाया था। अलगावावदी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस पहले ही 35-ए को लेकर खून-खराबे की धमकी दे चुका है। हुर्रियत नेताओं ने इसके विरोध में पांच और छह अगस्त को घाटी में बंद बुलाया था। इतना ही नहीं, कई संगठनों ने इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आंदोलन भी किया।

क्या है अनुच्छेद 35(A) ?

अनुच्छेद 35(A) भारतीय संविधान का वह हिस्सा है जो संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। इसी अनुच्छेद को समाप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएँ दाखिल की गई हैं। पहली याचिका वी द सिटीज़न और वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूज़ी एक्शन कमेटी नाम की संस्थाओं ने दाखिल की है। दूसरी याचिका चारुवली खन्ना और सीमा राजदान भार्गव नाम की महिलाओं ने दाखिल की है जिसमें गैर-कश्मीरी से शादी करने के चलते होने वाले भेदभाव का मसला उठाया गया है। उन्होंने इसे सीधे-सीधे संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का हनन बताया है।

यह प्रावधान कैसे लाखों लोगों के जीवन पर असर डालता है

आर्टिकल 35(A) ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा को यह अधिकार दे दिया की वह राज्य में रहने वाले लोगों की नागरिकता और उससे जुड़े अधिकार और कर्तव्य तय कर सके। लेकिन इसी ने लाखों लोगों को शरणार्थी बना कर रख दिया है।
•    1947 में हुए भारत-पाक बँटवारे के समय लाखों लोग शरणार्थी बनकर भारत आए और यहां के नागरिक बन गए। लेकिन जम्मू-कश्मीर के मामले में ऐसा नहीं हुआ। बँटवारे के समय लगभग 5,764 हिन्दू परिवार आकर यहां बसे थे लेकिन विडंबना देखिए कि आज भी इन लोगों को वहाँ पर शरणार्थी ही माना जाता है। ये लोग तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।

•    यह केवल पाकिस्तान से आये परिवारों के साथ ही नहीं हुआ बल्कि इनमें गोरखा समुदाय के वे लोग भी शामिल हैं जो बीते कई सालों से जम्मू-कश्मीर में रह तो रहे हैं लेकिन यहां के नागरिक नहीं हैं।

•    इन सबसे बुरा उन दलित परिवारों के साथ हुआ जिन्हें 1957 में सफाई कर्मचारी बनाकर पंजाब से लाया गया था। बीते 60 सालों से ये लोग यहां सफाई का ही काम कर रहे हैं। इन्हें आज भी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना जाता।

•    35(A) की एक और सबसे बड़ी त्रासदी देखिए कि यहां गैर कश्मीरी से शादी करने वाले कश्मीरी पुरुष के बच्चों को स्थायी नागरिक का दर्जा और तमाम अधिकार मिलते हैं वहीं राज्य के बाहर शादी करने वाली महिलाओं की नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। इस तरह लैंगिक विषमता को जम्मू-कश्मीर में क़ानूनी वैधता प्राप्त है।

•    यह सबसे बड़ी विडंबना है कि ये सभी परिवार भारत के नागरिक तो हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं हैं। इन लोगों को लोकसभा चुनाव में वोट देने का अधिकार है लेकिन राज्य विधानसभा और पंचायत चुनाव में भाग नहीं ले सकते और नहीं वोट दे सकते हैं! इन परिवारों के बच्चों के सरकारी स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता। और तो और, सरकारी संस्थानों में भी ये काम नहीं कर सकते।

कैसे आया अनुच्छेद 35(A)

अनुच्छेद 35(A) दरअसल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा है। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है जो अन्य राज्यों से भिन्न है। अनुच्छेद 370 के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।

अनुच्छेद 35(A) को संविधान में शामिल करने के लिए इसे संसद से पारित नहीं करवाया गया बल्कि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सीधे राष्ट्रपति सें इस पर हस्ताक्षर करा लिया और उसके बाद इसे अनुच्छेद 370 के उपबंध के रूप में जोड़ दिया गया। लेकिन सरकार ने सीधे-सीधे इसका ज़िक्र संविधान में नहीं करते हुए परिशिष्ट में किया ताकि इसको लोगों की नज़रों से बचाया जा सके। यह देश की संसद, नागरिकों और संविधान के साथ धोखा है।

कैसे हटाया जा सकता है अनुच्छेद 35(A)

भारत के संविधान में कोई भी संशोधन होता है तो उसे संसद के दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पास कराया जाता है लेकिन 35(A) के लिये ऐसा नहीं किया गया जो सीधे-सीधे संविधान का उल्लंघन है। बहरहाल, अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इसी को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होनी है। उसके बाद ही यह तय हो पाएगा की भारत के संविधान के साथ हुए इस सबसे बड़े धोखे का क्या हश्र होगा।