माय नेशन-जन की बात’ के सर्वे में सीटों को लेकर कोई आंकलन नहीं है। यह महज ट्रेंड का पता लगाने की कोशिश है। जमीनी स्तर पर सामने आए तीन ट्रेंड से एक बात स्पष्ट है कि मोदी विरोधी मोर्चे के लिए उन्हें सत्ता से बेदखल करना आसान नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि महागठबंधन में पीएम मोदी को चुनौती देने की क्षमता है। लगभग 47% लोग मानते हैं कि महागठबंधन की स्थिति में भाजपा को कड़ी चुनौती मिलेगी। 24.54% लोग मानते हैं कि महागठबंधन से ही मोदी को हटाया जा सकता है। 4% लोगों का मानना है कि इस तरह का गठजोड़ बनने से मोदी और मजबूत हो जाएंगे।

खास बात यह है कि महागठबंधन के समर्थक भी मानते हैं 2018 के बाद जब राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार में जुटेंगी तो सिर्फ मोदी के विरोध से ही उन्हें पर्याप्त वोट नहीं मिलेंगे। कुछ और कारणों से भी यह धारणा मजबूत होती है। पहला यह कि विपक्ष का नकारात्मक प्रचार काम आने वाला नहीं है। सर्वे में शामिल 65% लोगों ने महागठबंधन को खारिज कर दिया। वहीं वोट शेयर में बढ़ोत्तरी का सीटों की संख्या में इजाफा होने से कोई सीधा संबंध नहीं है। 

भाजपा को यूपी-बिहार में मिलेगी कड़ी चुनौती 

यूपी और बिहार दो ऐसे राज्य हैं, जहां पर भाजपा को कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है। इन दोनों राज्यों में लगभग 50% लोगों का मानना है कि 2019 में महागठबंधन मोदी के खिलाफ एक बड़ी ताकत बनकर खड़ा हो सकता है। राष्ट्रीय, स्थानीय, राज्य से जुड़े मुद्दे चुनाव पर असर डालेंगे।

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और मायावती दो बड़े क्षेत्रीय क्षत्रप हैं। दोनों का अपना-अपना वोट बैंक है। दोनों एक साथ चुनाव मैदान में उतरे तो भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। भाजपा के लिए अखिलेश से बड़ी चुनौती मायावती हैं। दलित वोट बैंक पर मायावती की पकड़ फिर मजबूत होना महागठबंधन को मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती बना सकता है।

बिहार में नीतीश कुमार के बाद तेजस्वी यादव तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। युवाओं में उन्हें लेकर आकर्षण है। बिहार में महागठबंधन में राजद एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। हालांकि इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की स्वीकार्यता बहुत कम है। 2019 में कांग्रेस के लिए इन दोनों राज्यों में खुद को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी।

महागठबंधन के समर्थक भी असमंजस में

मोदी विरोधी गठजोड़ में भले ही कई बड़े क्षेत्रीय नेता हों, लेकिन एक वैकल्पिक एजेंडे की अनुपस्थिति में महागठबंधन का समर्थन करने वाले भी 2019 के बाद एक अलग सरकार को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। 79% लोगों को इस बात में संदेह है कि मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप पांच साल तक एकसाथ चल पाएंगे। इस तरह के गठजोड़ में सबको पांच साल तक साथ लेकर चलने वाले मजबूत लोकप्रिय नेता का न होना भी महागठबंधन की राह मुश्किल करता है। सर्वे में शामिल 60% लोग मानते हैं कि ऐसे गठजोड़ को साथ रखने में कांग्रेस अहम भूमिका निभा सकती है। हालांकि कांग्रेस की स्थिति को लेकर भी लोगों के मन में संदेह है।

राहुल की लोकप्रियता घटकर 13% पर आ गई है। अलबत्ता, महागठबंधन के समर्थकों में से 47% का मानना है कि राहुल के पीएम पद का चेहरा होने की संभावना अधिक है, पर यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस की गठबंधन में क्या भूमिका होगी।  

भाजपा के लिए कुछ ऐसा होगा सीटों का गणित

314 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा ने 2014 में बेहतरीन प्रदर्शन किया था। अब इन पर उसका प्रदर्शन गिरने की आशंका है। वहीं 209 सीटें ऐसी हैं, जहां उसका विस्तार हो सकता है। पिछली बार भाजपा ने इनमें से महज 14 प्रतिशत सीटें ही जीती थीं। इन दोनों तरह की सीटों का गणित ही भाजपा और महागठबंधन का भविष्य सुनिश्चित करेगा।