कांग्रेस की ओर से राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर लगाए जा रहे आरोपों से बेपरवाह वायुसेना के एक उच्चस्तरीय टीम अगले सप्ताह फ्रांस के दौरे पर जा रही है। यह टीम वहां दसॉल्ट एविएशन को दिए गए 36 राफेल विमानों के निर्माण ऑर्डर का जायजा लेगी और वायुसेना के पायलटों की ओर से किए गए फ्लाइंग टेस्ट एवं प्रशिक्षण का मूल्यांकन करेगी। 

मोदी सरकार ने 60,000 करोड़ रुपये में फ्रांस सरकार के साथ 36 राफेल विमानों का सौदा किया है। ये विमान सितंबर 2019 से भारत को मिलने लगेंगे। 2021-22 तक राफेल विमानों का पूरा बेड़ा भारत को मिल जाएगा। 

सरकार के सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया,  'उपवायुसेना प्रमुख एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय टीम 15-22 सितंबर के  बीच फ्रांस के दौरे पर होगी। वहां विमानों को लेकर चल रहे प्रशिक्षण की निगरानी और फ्लाइट टेस्ट का मूल्यांकन करेगी। यह टीम उस हथियार प्रणाली की भी जांच करेगी, जिसे भारत के लिए तैयार किए जा रहे विमानों में लगाया जाना है। इनमें स्कैल्प और मैट्योर मिसाइलें शामिल हैं।'

वायुसेना के लड़ाकू विमानों के बेड़े की संख्या लगातार घट रही है। लंबी देरी के बाद भारत को फ्रांस से राफेल विमानों की आपूर्ति सितंबर 2019 से होने लगेगी। भारत को लड़ाकू विमानों के 42 स्क्वॉड्रन की आवश्यकता है। वायुसेना के पास अभी सिर्फ 31 स्क्वॉड्रन हैं। यह संख्या आने वाले समय में और घट सकती है, अगर नई खरीद को जल्दी अमली जामा न पहनाया गया। अगले चार से पांच साल में वायुसेना को मिग-21 और मिग-27एस के 11 स्क्वॉड्रन को चरणबद्ध तरीके से सेवा से हटाना है। 

वायुसेना ने भी राफेल खरीद प्रक्रिया का बचाव किया है। उसका कहना है कि इसमें पूरी पारदर्शिता रही है। एयर मार्शल नांबियार ने हाल ही में साफ कर दिया है कि मोदी सरकार इन विमानों को उस कीमत से 40 प्रतिशत कम में खरीद रही है, जिसके लिए यूपीए सरकार के समय में वार्ता हो रही थी। उन्होंने इस सौदे में किसी भारतीय कंपनी का पक्ष लिए जाने के आरोपों को भी खारिज किया है। 

देखें वीडियो - वायुसेना ने किया राहुल गांधी के 'झूठ' का पर्दाफाश

"

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत उनकी पूरी पार्टी राफेल सौदे पर सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार द्वारा 2016 में किया गया 36 विमानों की खरीद का सौदा एक 'घोटाला' है। इस सौदे में प्रत्येक विमान के लिए 1,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त चुकाए गए हैं। 

वायुसेना का कहना है कि इस सौदे में पारदर्शिता की कमी के आरोपों में कोई दम नहीं है। पूरी वार्ता प्रक्रिया वायुसेना के अधिकारियों द्वारा चलाई गई है। इस दौरान पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। 

लगातार घटती जा रही लड़ाकू विमानों की संख्या से निपटने के लिए वायुसेना और राफेल विमान खरीदे जाने के पक्ष में है।