अशोक गहलोत और कमलनाथ भले ही केन्द्र सरकार को जितनी भी गालियां दें लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान में एक ही महीने पहले जरुरत से ज्यादा यूरिया उपलब्ध था। लेकिन इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के सरकार संभालते ही किसानों के बीच यूरिया के लिए हाहाकार मच गया। 
माय नेशन के हाथ मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक एक पत्र लगा है। जो कि मात्र कुछ ही दिनों पुराना है। जिसमें वह केन्द्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को संबोधित किया गया है। इसमें वह मध्य प्रदेश को जरुरत से ज्यादा यूरिया पहुंचाने के लिए केन्द्रीय मंत्री को धन्यवाद दे रहे हैं। यह पत्र पांच दिसंबर को लिखा गया था। 

शिवराज ने अपने पत्र में लिखा है कि ‘2018 में आपने भारत सरकार की ओर से मध्य प्रदेश को 3.70 मीट्रिक टन यूरिया दिया। आपके प्रयासों के कारण नवंबर 2018 तक 3.77 लाख मीट्रिक टन यूरिया की बजाए मध्य प्रदेश में 4.31 लाख टन यूरिया पहुंचा। मैं अपने राज्य के किसानों की ओर आपको धन्यवाद देता हूं’

अब चुनाव खत्म हो चुके हैं। राजस्थान और एमपी में कांग्रेस सत्ता में आ चुकी है। इसके साथ ही कांग्रेस के किसान समर्थक चेहरे की कलई खुलने लगी है। गहलोत और कमलनाथ की सरकारें यूरिया मांगने वाले किसानों पर लाठियां बरसा रही हैं। 
वहीं दोनों मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार पर दोषारोपण करने मे जुटे हुए हैं। मध्य प्रदेश के गुना, रायसेन, देवास और नीमच में यूरिया की मांग कर रहे किसानों और पुलिस के बीच गंभीर झड़पें हुई। क्योंकि किसानों को गेहूं की पहली सिंचाई के दौरान यूरिया की जबरदस्त जरुरत है। इसलिए वह बेचैन हो रहे हैं।


लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर जिन राज्यों में यूरिया की सप्लाई जरुरत से ज्यादा थी। वह अचानक कहां गायब हो गया। क्या 1996 की ही तर्ज पर इन दोनों  राज्यों में एक और यूरिया घोटाला आकार ले रहा है।   
दिलचस्प यह भी है कि बीजेपी काफी पहले यानी यूपीए सरकार के शासनकाल से ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाई पर यूरिया की कालाबाजारी का आरोप लगाती आ रही है। उसका कहना है कि गहलोत के भाई किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी वाला यूरिया लेकर उसे विदेशी कंपनियों को बेच देते हैं। 
गहलोत और कमलनाथ केन्द्र सरकार के खिलाफ जिन आरोपों को हवा दे रहे हैं। उसे खत्म करते हुए उर्वरक और रसायन मंत्रालय ने आंकड़ों पर आधारित एक रिलीज जारी की है। 
“मध्य प्रदेश के लिए, दिसंबर के चालू महीने में, 3.50 LMT (लाख मीट्रिक टन) की मासिक आवश्यकता को देखते हुए विरुद्ध, DoF (उर्वरक विभाग) ने 3.70 LMT की आपूर्ति योजना तैयार की। जिसमें से 23 दिसंबर तक 2.75 LMT (लाख मीट्रिक टन) की आपूर्ति की जा चुकी है। राज्य स्तर पर अभी तक 1.85 लाख टन ही यूरिया बिका है। इसलिए राज्य के पास पर्याप्त मात्रा में यूरिया होना चाहिए।”
‘वहीं राजस्थान में दिसंबर के चालू महीने में 2.70 LMT (लाख मीट्रिक टन) की आवश्यकता को देखते हुए 2.89 LMT (लाख मीट्रिक टन) सप्लाई की योजना बनाई। जिसमें से 23 दिसंबर तक 2 लाख मीट्रिक टन की जरुरत को देखते हुए 2.57 LMT (लाख मीट्रिक टन) यूरिया की सप्लाई की जा चुकी है, जिसमें 0.03 लाख मीट्रिक टन का ओपनिंग स्टॉक भी शामिल है। जिसमें से 2.31 लाख मीट्रिक टन यूरिया बिका है’
उर्वरक विभाग ने रेलवे बोर्ड से भी आग्रह किया है कि वह प्राथमिकता से इन दोनों राज्यों के ढुलाई के आंकड़े जारी करे।   

और इससे भी अधिक, जबकि केंद्र द्वारा राज्यों को भेजे जाने के बाद यूरिया का स्थानीय रुप से वितरण राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। इसलिए कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा केन्द्र सरकार को दोष देना बेकार है। 
यही प्रश्न एक बार फिर से सामने आता है कि इन दोनों राज्यों में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के शासनकाल में इतनी बड़ी मात्रा में यूरिया आखिर गया कहां?