भारत के रूस से एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने से अमेरिका की चिंता बढ़ गई है। उसने भारतीय रक्षा मंत्रालय से पेंटागन को इस मिसाइल प्रणाली की जानकारी देने का अनुरोध किया है। भारत अमेरिका के चिरप्रतिद्वंद्वी रूस से यह प्रणाली खरीद रहा है। इसलिए अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि इस सौदे से भारतीय सैन्य बलों द्वारा इस्तेमाल की जा रही उसकी प्रणालियों के साथ कोई समझौता नहीं होगा। 

अमेरिका की ओर से जानकारी ऐसे समय मांगी गई है जब उसने रूस के साथ सैन्य साजोसामान की खरीदारी करने पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून लागू किया है। इस कानून को नजरअंदाज कर भारत रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीद रहा है। 

सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने 'माय नेशन' को बताया, 'अमेरिकी चिंताओं को दूर करने के लिए रक्षा मंत्रालय और वायुसेना के वरिष्ठ एयर मार्शल समेत एक उच्च स्तरीय टीम अगस्त के मध्य में वाशिंगटन जाएगी। अमेरिका को आशंका है कि भारतीय वायुसेना में एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली को शामिल करने से उसका मिलिट्री हार्डवेयर संबंधी डाटा रूस तक पहुंच जाएगा।'

अधिकारियों के मुताबिक, 'भारतीय दल अमेरिकी अधिकारियों को यह समझाएगा कि भारत के लिए एस-400 मिसाइलों की जरूरत क्यों है। साथ ही उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया जाएगा कि अमेरिकी प्रणालियों और विमानों से संबंधित कोई भी डाटा रूस समेत किसी भी तीसरे पक्ष तक नहीं पहुंचेगा। '

रूस की एस-400 मिसाइल प्रणाली को भारतीय वायुसेना के लिए गेम चेंजर माना जा रहा है। एक बार तैनात होने के बाद इस प्रणाली की पांच यूनिट देश के सुरक्षा कवर के तौर पर काम करेंगी। यह प्रणाली किसी भी मिसाइल या दूसरे हवाई हमलों को नाकाम कर देगी। यह बैलेस्टिक मिसाइल के हमले से भी बचाएगी। इस प्रणाली के आ जाने से भारत को अपने दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों चीन और पाकिस्तान पर सामरिक बढ़त मिल जाएगी। 

अमेरिका की ओर से सीएएटीएसए (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवरसरीज थ्रू सेंक्शन एक्ट) के तहत भारत पर प्रतिबंध लगाए जाने की चेतावनी के बावजूद भारत इस प्रणाली को खरीदना चाहता है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पहले ही साफ कर चुकी हैं कि अमेरिकी प्रतिरोध के बावजूद भारत हर हाल में इस प्रणाली को खरीदेगा। 

भारत अपनी हवाई रक्षा प्रणाली को पुख्ता बनाने के लिए लंबी दूरी की मिसाइल प्रणाली खरीदना चाहता है। खासतौर पर 4,000 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा की सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए भारत को ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है। इस मिसाइल प्रणाली का निर्माण एलमाज-एंटे द्वारा किया जाता है। रूस इस प्रणाली का उपयोग 2007 से कर रहा है। 

रूस के साथ दो सरकारों के बीच समझौता करने वाला सबसे पहले विदेशी खरीदार चीन था। 2014 में उसने रूस से इस खतरनाक मिसाइल प्रणाली को खरीदा था। मास्को ने चीन को एस-400 मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति शुरू कर दी है। हालांकि रूस उसे कितनी मिसाइल प्रणाली दे रहा है, इसकी संख्या के बारे में जानकारी नहीं है।