रकबर अपने साथी के साथ दो गायों को लेकर अलवर से हरियाणा के पड़ोसी जिले मेवात के अपने गांव जा रहा था। वारदात को 20 की रात को अंजाम दिया गया था। मीडिया में आ रही रिपोर्ट्स के उलट पीड़ित के पड़ोसियों ने बताया कि रकबर को पुलिस ने नहीं मारा है, इसका उन्हें विश्वास नहीं है। मामले में बड़ी बात ये कि रकबर के साथी असलम और रकबर के भाई और पड़ोसियों के बयान में एकरूपता नहीं है।

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रकबर के भाई अकबर का कहना है कि दक्षिणपंथी संगठनों के लोगों ने उसके भाई को मारा है।

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वहीं रकबर के साथ वारदात के वक्त मौके पर मौजूद उसके साथी असलम ने बताया कि उसने हमला होते तो देखा लेकिन बता नहीं सकता कि हमलावर कौन थे।

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असलम और रकबर गायों को रात के वक्त इसलिए ला रहे थे क्योंकि दिन के उजाले में गायें बिदक जाती हैं। इतनी एहतियात के बावजूद मोटरसाइकिल की आवाज़ सुनकर गाय खेतों में भाग गई। रकबर उसको लाने के लिए खेतों में गया। इसके आगे असलम बताता है कि उसे फायरिंग की आवाज़ भी सुनाई दी।

इधर वारदात के वक्त की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं, जिसमें दिख रहा है कि रकबर घायल तो है लेकिन उसको लगी चोट जानलेवा नहीं है।
इसी बीच इंडिया टूडे ने एक चश्मदीद नवल किशोर के हवाले से बताया कि किसी भीड़ के हमले से रकबर की मौत नहीं हुई थी बल्कि रकबर की मौत पुलिस की हिरासत में हुई है।