छात्रों का आंदोलन यूनिवर्सिटी से वीसी को हटाए जाने को लेकर है, जिसका समर्थन विश्विद्यालय के अध्यापक भी कर रहे हैं।
यूनिवर्सिटी लगातार कई दिनों से बंद है, कोई अकादमिक गतिविधि नहीं हो रही है। छात्रों की तरफ से जो आंदोलन शुरू हुआ वो धीरे-धीरे नागरिक आंदोलन में तब्दिल हो रहा है। वैसे तो आंदोलन 30 मई से शुरू हुआ लेकिन माय नेशन से बातचीत में यूनिवर्सिटी के छात्र नेताओं का कहना है कि दरअसल ये पूरा असंतोष तब से है जब 2016 में आद्या प्रसाद पांडे ने उपकुलपति का पदभार संभाला था।
मणिपुर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष दयामन मंगांग ने माय नेशन को बताया कि “पांडे ने आते ही हर स्तर पर धांधली शुरू कर दी और उनकी कारस्तानियों को बताना कहां से शुरू करें। उदाहरण के तौर पर आप ये ले सकते हैं कि परीक्षाओं के लिए जो आंसर शीट 5 रुपये में मणिपुर में ही उपलब्ध है, वो 15-15 रुपये के हिसाब से लखनऊ से मंगाए गए। वो भी विश्वविद्याल की संचालन निकायों से मशविरा किए बगैर”।
हालात ये हैं कि अब मणिपुर यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन (मूटा) और मणिपुर यूनिवर्सिटी स्टाफ एसोसिएशन (मूसा) भी छात्रों के आंदोलन को समर्थन दे रहा है ताकि कुलपति को यूनिवर्सिटी से हटाया जा सके।
सूत्र इस बात की तस्दीक करते हैं कि विश्विद्यालय में टीचिंग स्टाफ के 115 पद खाली पड़े हैं और बार-बार इस संबंध में आग्रह करने के बावजूद इस मसले पर कोई सुनवाई नहीं हुई। अध्यापक इस माहौल से बेदह निराश और दुखी हैं। यूनिवर्सिटी के 32 अध्यापन विभागों के अध्यक्षों में से 29 ने छात्रों की मांगों के समर्थन में इस्तीफा दे दिया है।
मामला तो तब और उलझ गया जब छात्रों के इस आंदोलन को डेमोक्रेटिक स्टूडेंट एलायंस ऑफ मणिपुर ने अपना समर्थन दे दिया जो अब राज्य में नागरिक आंदोलन में बदलता जा रहा है।
छात्र संघ की तरफ से बुलाई गई हड़ताल के दौरान हिंसा भी हुई जिसको काबू करने के लिए पुलिस बल का सहारा लेना पड़ा। 17 से 19 जुलाई तक चली हड़ताल के दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग तक पर उतारू हो गई। इसके बाद तो सिविल सोसाइटी के लोग छात्रों के समर्थन में कैंडल लाइट मार्च के साथ मणिपुर की सड़को पर उतर आए। आद्या प्रसाद पांडे के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी हुई।

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हड़ताल के इन तीन दिनों के दौरान सड़कों से गाड़ियां गायब रहीं तो दवा की दुकानों और अस्पतालों को छोड़कर दुकानों, प्रतिष्ठानों पर ताले लटके रहे। शनिवार से पूरे राज्य में इंटरनेट सेवाएं रोक दी गई है ताकि सोशल मीडिया के सहारे वीडियो और मैसेज सर्कुलेट ना हो सकें।

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इस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने पिछले हफ्ते मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से दिल्ली में मुलाकात भी की। सीएम और केंद्रीय मंत्री की मुलाकात के पांडे के खिलाफ लगे अनियमितताओं की जांच के लिए कमेटी का गठन भी हुआ, जिसमें यूजीसी के अधिकारी जेके त्रिपाठी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्च पदस्थ सूरत सिंह शामिल किए गए लेकिन इस कमेटी पर छात्रों को भरोसा नहीं है। उनका मानना है कि इन अधिकारियों का आद्या पांडे से पुराना वास्ता रहा है।
राज्य और राजधानी में जारी बवाल के बीच यूनिवसर्सिटी के छात्र संघ अध्यक्ष मंगांग का कहना है कि “कुलपति पांडे की अकड़ और जलवा सातवें आसमान पर होता है। उनको वाई श्रेणि की सुरक्षा हासिल है और कैंपस में भी गार्ड्स के साथ घूमते हैं। जैसे कि हम कोई आतंकवादी हों और उनको हमसे जान का खतरा है। कैंपस में वो बुलेट प्रूफ कार में घूमते हैं। दरअसल वो मणिपुर यूनिवर्सिटी एक्ट 2005 का उल्लंघन कर रहे हैं, जो ये सुनिश्चित करता है कि कुलपति 6 महीने में एक बार छुट्टी ले सकता है। यहां तो मामला ही उल्टा है वो महीने में 10 दिन कैंपस में आते हैं। ऊपर से अखरने वाली बात ये कि वो कैंपस में रहते भी नहीं। उन्हें इस जगह से प्यार ही नहीं है”।
मंगांग झल्लाते हुए कहते हैं कि ये बातें हर मणिपुरी छात्रों को चुभती है। 
चिंता की बात तो ये कि आद्या प्रसाद पांडे ने साफ-साफ कह दिया है कि वो इस्तीफा नहीं देंगे तो दूसरी तरफ छात्र भी अपनी मांग पर अड़े हैं और हालात धीरे-धीरे बिगड़ते जा रहे हैं। चिंता की बात ये है कि छात्रों की इस लड़ाई मे आम मणिपुरी भी कूद पड़े हैं।