नेशनल डेस्क। प्रधानमंत्री मोदी BRICS Summit को अटेंड करने के लिए मंगलवार की सुबह साउथ अफ्रीका के लिए रवाना हो गए हैं। ‌ यह समिट 22 से 24 अगस्त के बीच आयोजित की जा रही है। यह इसलिए भी खास है क्योंकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी इसका हिस्सा होंगे। जबकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसमें वर्चुअल तौर पर हिस्सा लेंगे।

भारत के लिए क्या है BRICS Summit के मायने?

साउथ अफ्रीका में होने वाला यह सम्मेलन भारत के लिए काफी अहम है क्योंकि वैश्विक स्तर पर अमेरिका को चुनौती देने और यूरोपीय देशों में अपनी ताकत का दिखावा करने के लिए चीन ब्रिक्स का विस्तार करने की पैरवी कर रहा है जबकि भारत और ब्राजील द्वारा इसका विरोध किया गया है।

ब्रिक्स के विस्तार पर भारत की ओर क्यों टिकी है निगाहें ?

इस सम्मेलन में ब्रिक्स के विस्तार को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा होगी जिसको लेकर कई देशों के बीच माथापच्ची होना तय है।‌ बता दे, चीन ब्रिक्स के विस्तार पर जोर दे रहा है तो वही भारत और ब्राजील इसका विरोध कर रहे हैं। कारण है चीन के द्वारा उन देशों को ब्रिक्स में शामिल करवाने की पैरवी करना जो हर मुद्दे पर चीन का साथ देते हैं जैसे पाकिस्तान और सऊदी अरब।‌ वहीं कई रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि चीन उन देशों को ब्रिक्स में शामिल करवाना चाहता है जो उसके पाले में है या फिर उसके पाले में आ सकते हैं। दूसरी ओर इस संगठन के विस्तार के लिए चीन ने भारत के प्रति नरम रुख अपनाया है। चीनी सरकार के सरकारी मीडिया आउटलेट ग्लोबल टाइम्स की ओर से कहा गया है कि पश्चिमी देश नहीं चाहते,ब्रिक्स ग्रुप मजबूत होकर उभरे।

लोकतांत्रिक देशों को शामिल करने के पक्ष में भारत

 इरान, सऊदी अरब, इंडोनेशिया समेत 20 से ज्यादा देश दुनिया  की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह में शामिल होना चाहते हैं  इतना ही नहीं 40 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जाहिर की है। ब्रिक्स‌ के विस्तार से भारत को कोई एतराज नहीं है हालांकि भारत का कहना है इस संगठन में वंशीवादी और निरंकुश शासन वाले सऊदी अरब और यूएई जैसे देश के अलावा उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ अर्जेंटीना और नाइजीरिया जैसे देशों को शामिल करना चाहिए। भारत सऊदी अरब की जगह इंडोनेशिया को इस ग्रुप का भाग बनाना चाहता है क्योंकि इंडोनेशिया भी भारत और अमेरिका की तरह indo-pacific में चीन की हरकतों को लेकर चिंता जाहिर करता है।

ब्रिक्स है क्या? कैसे हुई इसकी शुरुआत?

साल 2001 में अर्थशास्त्री ओ नील ने ब्राजील, रूस, भारत और चीन में आने वाले समय पर मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए BRIC शब्द का इस्तेमाल किया था। ओ नील ने भविष्यवाणी की थी 2050 तक ब्रिक देशों की संयुक्त अर्थव्यवस्था अमीर देशों की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ देगी। जिसके बाद ब्रिक देशों की ओर लोगों की निवेश करने की संभावनाएं बढ़ गई और ऐसे में इन चारों देशों ने एक ऐसे संगठन पर विचार किया जो इनकी अर्थव्यवस्था को मजबूती दे। उसी आधार पर BRIC संगठन का गठन हुआ। इस संगठन की पहली बैठक 2006 में दूसरी बैठक 2009 में हुई। वही पहले साउथ अफ्रीका इसका भाग नहीं था 2010 में साउथ अफ्रीका को इसमें शामिल किया गया और यह BRICS हो गया।

क्या करता है ब्रिक्स?

आपके मन में एक सवाल यह होगा कि ब्रिक्स संगठन करता क्या है? तो बता दे इस संगठन की सबसे बड़ी उपलब्धि न्यू डेवलपमेंड बैंक की स्थापना है। जिसमें इन पांच देशों ने 100 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा जमा करने की सहमति बनाई है ताकि इमरजेंसी पड़ने पर एक दूसरे को सहायता प्रदान की जा सके। कोविड-19 महामारी के दौरान साउथ अफ्रीका ने न्यू डेवलपमेंड किसी एक मिलियन डॉलर का कर्ज लिया था। इतना ही नहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि ब्रिक्स देशों में दुनिया की कुल 40% आबादी निवास करती है वहीं कुल जीडीपी का 23% हिस्सा भी ब्रिक्स देश के पास है जबकि 26 प्रतिशत क्षेत्रफल ब्रिक्स देशों के हिस्से में आता है।

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