Election Security Deposit: भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव एक अहम प्रक्रिया है, जहां उम्मीदवार जनता का विश्वास जीतने के लिए चुनावी मैदान में उतरते हैं। लेकिन, हर उम्मीदवार जीत नहीं पाता। कई बार कुछ उम्मीदवार इतने कम वोट पाते हैं कि उनकी "जमानत जब्त" हो जाती है। इससे उम्मीदवार के आत्मविश्वास को झटका लगता है। साथ ही उनका आर्थिक नुकसान भी होता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि जमानत जब्त होने का क्या मतलब है, इसके नियम क्या हैं, और यह उम्मीदवार पर कैसे असर डालता है?

जमानत जब्त होने का मतलब क्या?

जब कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ता है, तो उसे नामांकन के समय एक निश्चित धनराशि चुनाव आयोग के पास जमा करनी होती है। इसे "जमानत राशि" कहा जाता है। यदि उम्मीदवार को चुनाव में निर्धारित न्यूनतम वोट प्रतिशत नहीं मिलता, तो उसकी यह जमानत राशि वापस नहीं की जाती। इसे ही "जमानत जब्त होना" कहते हैं। यह प्रावधान चुनावी प्रक्रिया में उम्मीदवारों को गंभीरता से भाग लेने के लिए इंस्पायर करता है।

जमानत राशि के नियम क्या हैं?

भारतीय चुनाव आयोग ने चुनावी प्रक्रिया में जमानत राशि से संबंधित नियम बनाए हैं। लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार को कुल डाले गए वैध वोटों का कम से कम 6% वोट प्राप्त करना होता है। यदि वह यह आंकड़ा नहीं छू पाता, तो उसकी जमानत राशि जब्त हो जाती है। वहीं विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार को न केवल 6% वोट प्राप्त करने होते हैं, बल्कि उसे छह उम्मीदवारों से अधिक वोट पाने की शर्त भी पूरी करनी होती है। इन दोनों शर्तों में फेल होने पर उसकी जमानत राशि जब्त हो जाती है।

जमानत राशि कितनी होती है?

चुनावों में जमानत की राशि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए अलग-अलग होती है। यह उम्मीदवारों की कैटैगरी पर भी निर्भर करता है। लोकसभा चुनाव में जनरल कैटैगरी के कैंडिडेट को 25,000 रुपये जमानत राशि जमा करनी होती है, जबकि अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) के कैंडिडेट को सिर्फ 12,500 जमा करने होते हैं। विधानसभा चुनाव में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार 10,000 रुपये और अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) के कैंडिडेट को 5,000 रुपये जमा करने होते हैं। यह राशि उम्मीदवार के नामांकन के समय जमा की जाती है और जीत या न्यूनतम वोट प्रतिशत हासिल करने पर वापस कर दी जाती है।

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