एक और 19 जनवरी आ गई और चली गई। एक और वर्ष, जब हमारे दर्द को अनदेखा किया गया, उसके उपर मुलम्मा चढ़ाया गया। 

उनकी हिंसा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है
लेकिन हमारी दर्द की अभिव्यक्ति असहिष्णुता है

कश्मीर में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) का जातीय सफाया, और उनके भीषण अत्याचारों के प्रति दुनिया की निरंतर उदासीनता, मानवता की आत्मा पर एक सामूहिक बोझ है। जो लोग कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) के शारीरिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक नरसंहार को मूकदर्शक बनकर देखते रहे, चाहे इसकी वजह अज्ञान हो या असंबद्धता, शायद वो अभी इसका एहसास नहीं कर पा रहे हैं,  लेकिन कुछ दिनों बाद या शायद जल्दी ही कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीर में निर्दोष हिंदुओं का बहाया गया खून अपना हिसाब और प्रायश्चित की मांग करेगा।

30 साल बीच चुके हैं जब कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) को धर्मपरिवर्तन, पलायन या मरने के विकल्प दिए गए थे। आश्चर्य से अधिक मैं इस बात को सोचकर सिहर जाती हूं कि आखिर क्यों कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) के अंजाम से भारत के प्रत्येक नागरिक ने सबक नहीं सीखा?

 दुनिया भर में इस्लामवादी कट्टरवाद के बारे में चेतावनी भरा संदेश क्यों नहीं फैलाया गया। जबकि घाटी में कट्टरपंथियों का खूनी खेल चल रहा था। 

ऐसा क्यों है कि 125 करोड़ लोगों के देश में, कुछ लाख लोग भी इस तबाही के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते?

जब हम जबरन निर्वासन के 30 वें वर्ष में चले गए, तो इस लेख के माध्यम से मैं दुनिया को यह याद दिलाना चाहती हूं कि इस्लामी फासीवादियों द्वारा नरसंहार के जरिए कश्मीरी हिंदुओं की जातीय सफाई को भुलाने की कोशिश की जा रही है। 

आपको दिखाते हैं यह कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) के खिलाफ दर्ज कुछ अपराधों की सूची। जिसके बारे में लोग या तो नहीं जानते हैं या फिर जानना नहीं चाहते हैं। 


14 मार्च 1989 बडगाम जिले के चौराहा नवागढ़ी की प्रभावती को हरि सिंह हाई स्ट्रीट पर 14 मार्च 1989 को मार डाला गया। 
•  14 सितंबर 1989 को प्रख्यात कश्मीरी पंडित सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता पं. टीका लाल तपलू की हब्बा कदल में उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
अक्टूबर 1989 न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) नीलकंठ गंझू की करीब से गोली मारकर हत्या कर दी गई।
31 अक्टूबर 1989 को दलहसनियार की 47 साल की शीला कौल (टिकू) की मौत सीने और सिर में गोली लगने से हुई।
1 दिसंबर 1989 को महाराजगंज, श्रीनगर के निवासी अजय कपूर को सार्वजनिक रुप से आतंकवादियों द्वारा गोलियों से छलनी कर दिया गया था।
27 दिसंबर 1989 को 57 साल की उम्र में अनंतनाग के एडवोकेट प्रेम नाथ भट्ट कई लोगों के सामने मारे गए।

15 जनवरी 1990 को एक सरकारी कर्मचारी एम.एल. भान को श्रीनगर के खोनमोह में मार डाला गया था। श्रीनगर के लाल चौक में एक संचालक बलदेव राज दत्ता का अपहरण कर लिया गया था और चार दिन बाद 19 जनवरी, 1990 को श्रीनगर के नई सड़क पर उनकी क्रूरतापूर्वक क्षत-विक्षत की गई लाश मिली। 
25 जनवरी 1990 को स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना और उनके कुछ सहकर्मी एयरपोर्ट जाने के लिए रावलपुरा बस स्टैंड पर भारतीय वायु सेना की बस का इंतजार कर रहे थे।  जब एक मारुति जिप्सी और एक दोपहिया वाहन पर सवार चार-पांच जेकेएलएफ आतंकवादियों ने उन्हें घेर लिया और उनपर एके-47 से गोलियों की बौछार कर दी। 
स्क्वैड्रन लीडर खन्ना और दूसरे 13 भारतीय वायुसेना के कर्मचारी जमीन पर गिर गए। इस हमले में खन्ना के साथ तीन लोगों की मौत हो गई और 10 घायल हो गए। 
बाद में यासीन मलिक ने टिम सेबेस्टियन के साथ एक साक्षात्कार में इस हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि तब वह मुख्य कमांडर इशफाक वानी के अधीन काम कर रहा था और जेकेएलएफ का एरिया कमांडर था। यासीन ने इन हत्याओं का बचाव करते हुए कहा कि भारतीय वायुसेना के जवान निर्दोष नहीं थे बल्कि 'दुश्मन' के एजेंट थे।
1 फरवरी 1990 को एक केंद्रीय सरकारी कर्मचारी कृष्ण गोपाल बेरवा और राज्य सरकार के एक कर्मचारी रोमेश कुमार थुस्सू को कुपवाड़ा के त्रेहगाम में गोली मार दी गई थी।
2 फरवरी 1990 को एक युवा कश्मीरी पंडित सतीश कुमार टिकू को फारूक अहमद डार (उर्फ बिट्टा कराटे) के नेतृत्व में हत्यारों के एक समूह ने पॉइंट ब्लैंक रेंज पर गोली मार दी।
13 फरवरी 1990 को निर्देशक दूरदर्शन लसा कौल की हत्या कर दी गई थी। उनकी गतिविधियों की जानकारी कथित तौर पर उनके एक सहयोगी ने ही लीक कर दी थी। उसी दिन सैन्य इंजीनियरिंग सेवा (एमईएस) में काम कर रहे रावलपोरा के रतन लाल भी मारे गए थे।
16 फरवरी 1990 को अनिल भान की हत्या फारुख अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे ने कर दी। फारुख पर चौंतीस कश्मीरी पंडितों की हत्या का इल्जाम था। 
23 फरवरी 1990 को अशोक काजी को घुटनों में गोली मारी गई और उन्हें लात मारकर नाले में फेंक दिया गया। उनपर पेशाब भी किया गया। जब वह तड़प-तड़प कर अपनी मौत का इंतजार कर रहे थे, तो उनपर और गोलियां दागी गईं। 
27 फरवरी 1990 को नवीन सप्रू को हब्बा कदल पुल के पास गोली मार दी गई थी। हत्यारों ने फिर उसके चारों ओर पाशविक नृत्य किया। जब वह अपनी आखिरी सांसें ले रहा था तो उसे ऐसे झकझोरा गया जैसे वह मर चुका हो। 
1 मार्च 1990 को सूचना विभाग के पी एन हांडू की हत्या कर दी गई और बडगाम के तेज किशन को फांसी पर लटका दिया गया।
18 मार्च 1990 राज्यपाल के निजी सहायक आर.एन. हंडू को नरसिंहगढ़, श्रीनगर में उनके घर के गेट के बाहर मार दिया गया था। उस समय वह अपने कार्यालय जाने के लिए आधिकारिक वाहन पर सवार होने वाले थे।

•    19 मार्च 1990 बी के गंजु को तब मार दिया गया था जब उसके मुस्लिम पड़ोसी ने उनके छुपने के ठिकाने की खबर आतंकवादियों को दे दी थी। 
•    20 मार्च 1990 ए के रैना, उप निदेशक, खाद्य और आपूर्ति, की श्रीनगर में उनके कार्यालय में हत्या कर दी गई थी। जब उनकी मौत हो रही थी तो उनके मातहत कर्मचारी चुपचाप उन्हें देख रहे थे। 

10 अप्रैल 1990 एच एल खेरा, एच.एम.टी. के महाप्रबंधक को श्रीनगर में आतंकवादियों द्वारा गोली मार दी गई थी।
19 अप्रैल, 1990 को सरला भट ने कई मुस्लिमों के साथ सामूहिक बलात्कार किया। उसे नग्न करके निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी। उसका शव जनता के बीच सार्वजनिक रुप से सड़क के किनारे फेंक दिया गया। 
•  24 अप्रैल, 1990 को गुलाब बाग, श्रीनगर के 45 वर्षीय बंसी लाल सप्रू को उनके पड़ोसियों ने घेर लिया और करीब तीन गोलियां मारकर उनकी हत्या कर दी।
24 अप्रैल, 1990 को अनंतनाग के मट्टन के रविन्द्र कुमार पंडिता की घर लौटते हुए करीब से गोली मारकर हत्या कर दी गई। जब वह मर गए, तो  हत्यारों ने उसके शव के चारो तरफ खुशी से नृत्य किया। 
27 अप्रैल, 1990 को साधु गंगा, कुपवाड़ा में अपने घर से अगवा किए गए बृज नाथ शाह की लाश दो दिनों के बाद मिली। उनके होठों के सिरे सिल दिए गए थे। 
30 अप्रैल 1990 सर्वानंद कौल `प्रेमी’ और उनके बेटे वीरेंद्र कौल को उनके घर से अगवा कर लिया गया और दो दिन बाद उनके शव लटके पाए गए। उनके अंग टूटे हुए थे, बाल उखड़े हुए थे, और उनकी त्वचा के कुछ भाग जले हुए पाए गए। 
मई 1990 को अनंतनाग के चिरागाम से श्याम लाल का अपहरण करने के बाद उसके हाथ पैर और सिर को काट दिया गया। उसके अवशेषों को बोरे में भरकर उसके घर की दहलीज के बाहर रख दिया गया। 
2 मई 1990 प्रोफेसर केएल गंजू के शरीर में छह गोलियां मारी गईं। उनकी लाश को रात भर के लिए स्थानीय मस्जिद में रखा गया और फिर नदी में फेंक दिया गया। बाद में गिरफ्तार किए गए हत्यारों में से एक के मुताबिक श्रीमती गंजू को भी बेरहमी से मार दिया गया था और उसकी लाश को एक पत्थर से बांधकर झेलम में फेंक दिया गया था। लेकिन चूंकि उसका शव कभी नहीं मिला था, इसलिए यह पता नहीं लगाया जा सका कि उनके साथ क्या किया गया था। 

2 मई 1990 23 साल के सुरिंदर कुमार रैना पुत्र जिया लाल रैना के बेटे को सार्वजनिक रुप से जश्न मनाती हुई भीड़ के सामने से अगवा कर लिया गया। बाद उन्हें अली जान रोड पर मार दिया गया।
13 मई, 1990 पुलवामा से भास्कर नाथ के 27 साल के बेटे अशोक कुमार का हिजब के आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था। उसके हाथ-पैर तोड़ दिए गए। लोहे के सरिए से उसकी आंखें फोड़ दी गईं और शहर के मुख्य चौराहे पर गोलियों की बौछार करके उनकी हत्या कर दी गई। वहां पर सैकड़ों उत्साही दर्शकों की भीड़ मौजूद थी। जो कि "इस्लाम शानदार और महान है" के नारे लगा रही थी। उसी दिन, घाटी के एक अन्य हिस्से में, शोपियां में तैनात राज्य सिंचाई विभाग में एक जूनियर इंजीनियर, डी.एन.भट के बेटे वीर जी भट को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। खून बहने के बावजूद उसने एक आतंकवादी को पकड़ लिया। लेकिन तब तक दूसरे आतंकवादी ने उसपर गोलियों की बौछार कर दी। 
16 मई, 1990 को कुलगाम, अनंतनाग के एक सरकारी कर्मचारी और अम्नू गाँव के निवासी श्रीधर कौल के बेटे बसन लाल कौल को हिज्बुल मुजाहिदीन आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था और स्टील के तार से गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी।
18 मई, 1990 27 साल के मनमोहन बछलो, जो कि काजी बड़मुल्ला के जानकी नाथ बछलो के बेटे थे। वह बारामूला में डाक विभाग कार्यरत थे और छुट्टियों में घर आए थे। उनके बचपन का एक दोस्त उन्हें चाय पिलाने के लिए बाहर की दुकान पर ले गया जहां उसने अपने साथियों के साथ मिलकर प्वाइंट ब्लैंक रेंज से उन्हें गोली मार दी।
19 मई, 1990, शोपियां के मोहन लाल के बेटे दिलीप कुमार को शोपियां अपने घर से कुछ आतंकवादियों ने खींच लिया था। दिलीप के दाँत निकाल लिए गए थे और उन्हें बारह गोलियां मारी गईं। उसके शव को पेड़ से लटका दिया गया था और उसके सीने पर एक चिट्ठी चिपकाई गई कि अगर किसी को भी इसे उठाने की हिम्मत हो और उसे एक लाख रुपए का ईनाम मिल सकता है। 
27 मई 27 1990 को अनंतग जिले के उत्तरासू के प्रेम नाथ का अपहरण किया गया और बाद में उनकी छाती और पैरों में कील ठोंक दी गई। 
4 जून 1990 को बांदीपोरा में गिरिजा टिक्कू को अगवा कर लिया गया और उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई। फिर चार लोगों ने उनके साथ बलात्कार किया। जब उन्होंने उसमें से एक की आवाज से उसे पहचान लिया तो पहचान के डर से लोग उसे एक लकड़ी की फैक्ट्री में ले गए और मार डाला। कुछ समय बाद पुलवामा की कुमारी बबली और उसकी माँ श्रीमती रूपवती के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
जून 1990 में आतंकवादियों की गोलियों से घायल अश्विनी कुमार को अस्पताल ले जाने के लिए वाहन देने से मना कर दिया गया था। जब अंत में किसी तरह उन्हें अस्पताल ले जाया गया, तो डॉक्टरों ने उनका इलाज करने से इनकार कर दिया और उन्होंने दम तोड़ दिया।

•  22 जून, 1990 को हब्बा कदल में रहने वाले कृषि विभाग के एक अधिकारी बालकृष्ण टूटू को आतंकियों ने गोली मारकर गंभीर रुप से घायल कर दिया। बाद में उनके भाई का अपहरण करने के लिए आतंकी उनके घर में घुस गए। समय पर ईलाज न मिलने की वजह से बालकृष्ण ने भी दम तोड़ दिया। उसी दिन बड़गाम जिले के खान साहिब में एक डिस्पेंसरी में तैनात खानयार निवासी 52 वर्षीय माखन लाल रैना को अपहरण कर लिया गया। उन्हें क्रूरतम तरीके से प्रताड़ना दी गई और आखिरकार गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। उनके बुरी तरह क्षत विक्षत शरीर को बडगाम के दारपोरा से बरामद किया गया।
30 जून 1990 59 साल के राज नाथ धर पुत्र दीनानाथ धर जो कि कुतुब-उद-दीन पोरा, अलिकदल, श्रीनगर निवासी थे, उन्हें गोली मार दी गई। चिकित्सा सहायता न मिलने के कारण उनकी मौत हो गई। 
7 जुलाई 1990, मणिगाम के गोविंद राम रैना के पुत्र गोपी नाथ रैना को मुखबिर बताते हुए हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकियों द्वारा उनकी ही दुकान में गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसी दिन, फतह कदल के मुस्लिम युवाओं को शिक्षित करने की दिशा में योगदान देने वाले एक 70 वर्षीय थियोसोफिस्ट दीना नाथ मुजू को आतंकवादियों ने बेरहमी से चाकू मार दिया था, जो रात में धोखे से उनके घर में घुस गए थे। 
15 जुलाई, 1990 को अनंतनाग कुलगाम के अशमूजी में राधा कृष्ण कौल के बेटे शिबन किशन कौल का उनके पैतृक गांव में करीबी पड़ोसियों न कत्ल कर दिया। अगले दिन उनके पिता की भी हत्या कर दी गई थी।
26 जुलाई 1990 को कश्मीर के कुलगाम जिले के सैमनू के फतेह सिंह के पुत्र 26 वर्षीय पूर्व सैनिक अवतार सिंह, जिनपर आतंकियों को मुखबिर होने का शक था, सशस्त्र मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
१३ अगस्त १ ९९ ०, सोपोर की बबली रैना, जो कि पेशे से शिक्षिका थीं, उनके साथ उनके परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में सामूहिक बलात्कार किया गया था।
17 अगस्त, 1990 चांद जी खेर, जो कि दीना नाथ खेर के किशोर पुत्र थे, उसके मुसलमान दोस्तों ने उसे घर से बाहर बुलाया और हत्या कर दी। 
6 अक्टूबर 1990, कानी कदल के दामोदर खजांची के पुत्र डीपी खजान्ची को तीन गोलियां मारी गईं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। उसी दिन, बागपतपोरा, हंदवाड़ा के प्रकाश राम पंडिता के पुत्र जिंदा लाल पंडिता का उनके निवास से अपहरण कर लिया गया था और जेकेएफएफ के हत्यारों द्वारा पास के बाग में स्टील के तार से गला काटकर उनकी निर्मम हत्या कर दी गई।

7 अक्टूबर 1990, बागपतपोरा, हंदवाड़ा के गणेश नाथ पंडिता के पुत्र जगन्नाथ पंडिता का उनके घर से अपहरण कर लिया गया और उन्हें उनके अपने बागीचे में ले जाया गया, जहाँ उनका भी स्टील के तार से गला घोंट दिया गया। उनकी हत्या 7 और 8 अक्टूबर 1990 की मध्यरात्रि में हुई थी।
12 अक्टूबर 1990 पुलवामा जिले के खोनमुहा के निवासी 47 वर्ष के पुष्कर नाथ राजदान, जो कि टीका लाल राजदान के पुत्र थे, उनकी हत्या  जिहादियों द्वारा घर में घुसकर हत्या कर दी गई।
15 अक्टूबर 1990 जाना भट्ट के पुत्र महेश्वर नाथ भट्ट की हत्या उनके घर में घुसे आतंकवादियों ने कर दी। आतंकवादी उनके दामाद की तलाश कर रहे थे, जो कि घर में छिपा हुआ था। यह घटना श्रीनगर के हजूरी बाग़ की है। 
2 जनवरी 1991 ओंकार नाथ वली जो कि अनंतनाग जिले के चाक-ए-राजवती के निवासी थे। वह पुलिस में सहायक उप निरीक्षक थे, जो जिला पुलिस लाइंस, अनंतनाग में तैनात थे। उन्हें अगवा करके गोली मार दी गई थी। बाद में पता चला कि पुलिस विभाग में उनके ही सहयोगियों ने जेकेएलएफ के आतंकवादियों के साथ मिलकर उनकी हत्या की साजिश रची थी।
8 अगस्त 1991 को आशा कौल को अचाबल, अनंतनाग से अगवा कर लिया गया और श्रीनगर में एक कश्मीरी पंडित के खाली घर में रखा गया। जहाँ उसके साथ कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया और फिर उसे मौत के घाट उतार दिया गया। उसका शव बाद में 26 अगस्त 1991 को उसी घर में एक बुरी हालत में पाया गया था।
26 अगस्त 1991, बटवाकुंड, हंदवाड़ा के 20 साल के सुरिंदर कुमार कौल को उनके दोस्तों ने अगवा कर लिया था और अंतहीन यातना के बाद गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी।
•  18 अक्टूबर 1991, पाजीपोरा, बांदीपुरा के कंठराम पेशीन के पुत्र, कन्या लाल पेशीन, जो कि एक गरीब किसान थे और अपनी औसत आय पर मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते थे, उनका घर से सुबह 9 बजे अपहरण कर लिया गया था और अपने गाँव से तीन किलोमीटर दूर ले गया जहाँ उसके साथ क्रूर अत्याचार किया गया। उनके नाखून में कीलें ठोंक दी गईं। आखिरकार कपड़े की एक मीटर लंबाई का टुकड़ा उनके मुंह में भर दिया गया, जिससे उनकी मौत हो गई। उनका मृत शरीर बाद में अजर, बांदीपोरा में पाया गया था।
31 मार्च 1992 को नाइक, श्रीनगर की बिमला ब्रारु, और उनकी बेटी, अर्चना का बलात्कार उनके पति सोहन लाल की उपस्थिति में किया गया, इसके बाद उन तीनों को मार डाला गया। 
24 जून 1990 शंभू नाथ गरियाली के 25 वर्षीय अश्वनी गरियाली पर मुखबिरी का आरोप लगाकर सेना की वर्दी में आए 5 नकाबपोश घुसपैठियों ने गोली मार दी। चिकित्सा देखभाल से वंचित होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

•  16 जून 1991, शोपियां के बटपोरा में राजिंदर टिकू, जो शोपियां अस्पताल के वित्त विभाग में काम करते थे। उनको चार गोलियां मारी गईं। उनका अंतिम संस्कार उनके पिता ने स्वयं किया था क्योंकि कोई पुजारी उपलब्ध नहीं था।
जून 1991 में, हरमन, शोपियां के गाँव के बृजलाल कौल और उनकी पत्नी छोटी को एक जीप के पीछे बांध दिया गया और घसीटा गया और फिर गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनके शव 10 किलोमीटर दूर बरामद किए गए
21 - 22 मार्च 1997 बडगाम के संगरम्पोरा गाँव में रात के दौरान सात कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया। आतंकवादियों ने उन्हें उनके घरों से बाहर निकाला और उन्हें मार दिया।
25 जनवरी 1998 को वंधामा गाँव में 23 कश्मीरी पंडितों, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे, को गोली मार दी गई।
24 मार्च 2003 नाड़ीमार्ग गांव में शिशुओं सहित 24 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई।

1990 में कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) का सातवां जबरन निर्वासन शुरु हुआ। इस दौरान कई निर्दोष लोगों को निर्दयता से मार दिया गया। झेलम नदी में तैरते हुए कई कश्मीरी पंडितों के शव पाए गए। हाथ और पैर बंधे हुए कई शवों को घाटी के विभिन्न हिस्सों से बरामद किया गया था। अत्याचार के उदाहरण के तौर पर कई पीड़ितों को जीते जी पिछले लोहे से नहलाया गया या उनकी आंखें फोड़ दी गई थीं। यह सभी जघन्य हत्याएं नरसंहार के माध्यम से जातीय सफाई की सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति का एक हिस्सा थीं।

यह बिल्कुल सही समय है जब दुनिया को मानवाधिकारों के इस बड़े उल्लंघन पर गौर करना होगा। जिसपर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया। 

यह भी जरूरी है कि हम उन लोगों से सवाल करें जो इस्लामवादी कट्टरवाद को मुसलमानों के प्रति नफरत बताते हुए सावधानी बरतते हैं? 

कट्टरपंथी इस्लाम के बारे में उनके पीड़ितों द्वारा आवाज उठाना इस्लामोफोबिया नहीं है। सदियों से भारत और दुनिया भर में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा किए जा रहे अपराध निश्चित तौर पर संपूर्ण मानवता के खिलाफ किया जा रहा एक घोर अपराध है। 

एक कश्मीरी हिंदू (पंडित) के रूप में, मेरे पास इस्लामवादी कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण मौजूद हैं और जब तक मैं जीवित हूं, तब तक यह अधिकार मेरे पास रहेगा। और हां इसका मतलब यह नहीं है कि मैं मुसलमानों से नफरत करती हूं। मैं ऐसा इसलिए नहीं करती, क्योंकि मैं लोगों के साथ उनके धर्म के आधार पर संबंध नहीं विकसित करती हूं। मैं इस आधार पर उनके साथ संलग्न होती हूं कि वह वास्तव में कौन हैं। उनके अंदर के विचार क्या हैं। लेकिन मैं इस्लामिक वेशभूषा वाले व्यक्ति से सावधान रहती हूं। और मैं हमेशा रहूंगी क्योंकि मैने इसको झेला है।  

जो लोग धारणाएं तैयार करते हैं उन्हें इस ग्लानिभाव से बाहर निकलना चाहिए। इस्लामिक अतिवाद की आलोचना करते हुए भी मुसलमानों से अच्छे संबंध बनाए रखना संभव है। 


इसे प्रचारित और उजागर करने की आवश्यकता है कि हिंदू धर्म, हिंदुत्व, सनातन, धर्म इन सभी में बहुलता आंतरिक रूप से अंतर्निहित है। सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली भारतीय परंपराओं को दूसरे धर्मों के प्रति सम्मान और विविधता को प्रदर्शित करने की जरुरत नहीं है। यह स्वयं में स्पष्ट है कि हमने अपने आप को दुनिया में कैसे स्थापित कर रखा है। 


मैं साथी भारतीयों से आग्रह करना चाहूंगी कि वह पूछें कि कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) के साथ क्या हुआ था और 19 जनवरी हमारे जबरन निर्वासन का प्रतीक दिवस है। यह दिन हमारे कच्चे घावों को याद करने का क्यों है?
 
हम कायर नहीं हैं। हमने अपने विश्वास के लिए अपना सब कुछ गंवाया। ऐसा करने के लिए हिम्मत चाहिए! इसके बारे में सोचिए !

मुझे अपने समुदाय पर गर्व है कि उसने सारे जुल्मों सितम के बावजूद हिंदू के रूप में अपनी पहचान को बरकरार रखा है। दुनिया को भी इसे समझना चाहिए। 

और, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे साथ जो कुछ भी हुआ उससे मानवजाति को सीख हासिल करनी चाहिए। जिससे कि हम एक ऐसा समाज बना सकें, जहां ऐसी घटनाएं दोहराने अनुमति न हो - कभी भी!

-डिम्पल कौल

References
1.    Jagmohan, “My Frozen Turbulence in Kashmir’’, Published by South Asia Books, 6th Edition.
2.    Tej K. Tikoo, “Kashmir: Its Aborigines and their Exodus’’, Published by Lancer Publishers LLC
3.    Rahul Pandita, “Our Moon Has Blood Clots: The Exodus of the Kashmiri Pandits’’ Published by Random House India
4.    “Abductions and Killings of Prominent Personalities”http://ikashmir.net/atrocities/4.html
5.    GD Bakshi, “Kishtwar Cauldron: The Struggle Against Isis Ethnic Cleansing’’, Published by Pentagon Press
6.    Muzamil Jaleel , Muzamil Jaleel, “209 Kashmiri Pandits killed since 1989, say J-K cops in first report” http://archive.indianexpress.com/news/209-kashmiri-pandits-killed-since-1989-say-jk-cops-in-first-report/305457/
7.    Kashmir News Network , “Kashmir Terrorist Visits New York”, http://www.prnewswire.com/news-releases/kashmir-terrorist-visits-new-york-says-knn-74341697.html
Nancy Kaul, “ In defence of my country undeterred I stand, in return I get betrayal – II“ http://www.vija