06 अप्रैल 2010 को माओवादियों द्वारा छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में किए गए हमले में 76 केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल या सीआरपीएफ जवान अवश्य शहीद हुए थे। जम्मू कश्मीर के आतंकवाद में ऐसा कभी नहीं हुआ था। जरा सोचिए,केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के 40 से ज्यादा जवानों के परखचे सेकेण्ड में उड़ जाएं, जिस बस में वे चले रहे हैं वो ध्वस्त हो जाए तो वह कितना बड़ा हमला रहा होगा। पहले की सूचना थी कि 12 किलोमीटर तक विस्फोट की आवाज सुनी गई। अब पता चला है कि पुलवामा से सटे श्रीनगर के कुछ इलाकों में भी धमाके की आवाज स्थानीय नागरिकों ने सुनी। यह इलाका हमले की जगह से करीब 20 किलोमीटर दूर है। 

जाहिर है, विस्फोट अत्यंत तगड़ा था। इसमें तो दो राय हो ही नहीं सकती कि हमला सुनियोजित थी और इसकी साजिश रचने वालों को पता था कि हाईवे से सीआपीएफ का बड़ा काफिला गुजरने वाला है। 78 गाड़ियों के काफिले में 2547 जवान जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे। जो सूचना है इनमें से अधिकतर जवान छुट्टियां बिताने के बाद ड्यूटी पर लौट रहे थे। घंटे-मिनट में तो ऐसे हमले की तैयारी हो नहीं सकती। जम्मू कश्मीर हाईवे पर अवंतिपोरा इलाके में विस्फोटकों से लदी गाड़ी लेकर प्रतीक्षा करने का अर्थ है कि उन्होंने पहले से इसकी तैयारी कर रखी थी। जैसे ही बसें आईं आतंकवादी ने गलत दिशा से लाकर सीधे बस से भिड़ा दिया। हालांकि उसकी योजना एक गाड़ी को उडा़ने की नहीं रही होगी। यह संयोग है कि दूसरी गाड़ियों को विस्फोटकों ने इस तरह अपनी चपेट में नहीं लिया, अन्यथा और जवान शहीद हो सकते थे। 


देश की सामूहिक सोच बिल्कुल स्पष्ट है कि इस तरह अपने जवानों के बलिदान को हम चुपचाप सहन नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री ने देश को बता दिया है कि सेना को कार्रवाई की पूर्ण स्वतंत्रता दे दी गई है। वह कार्रवाई कब, कहां और कैसे करेंगे यह सेना तय करेगी। इसका मतलब बहुत गंभीर है। सेना को कार्रवाई का आदेश राजनीतिक नेतृत्व से मिलता है। 

प्रधानमंत्री के वक्तव्य का मतलब यह है कि सेना को हरी झंडी दे दी गई है। उसे कार्रवाई के लिए राजनीति नेतृत्व से अलग से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है। चूंकि यह बयान सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक के बाद आया है, इसलिए यह माना जा सकता है कि कुछ फैसला वहां अवश्य हुआ है। हमें उसके बारे में कोई अटकलें लगाने से बचते हुए थोड़ी प्रतीक्षा करनी चाहिए। 

प्रधानमंत्री अगर यह कह रहे हैं कि पुलवामा के हमलावरों और उसके सजिशकर्ताओं को सजा अवश्य मिलेगी तो फिर मिलेगी। जिस तरह सभी राजनीतिक दलों ने अपने तीखे मतभेद भूलकर एकता दिखाई है वह निश्चय ही पूरे देश को आश्वस्त करता है कि ऐसी घड़ी में हमारे राजनीतिक दल जिम्मेवार भूमिका निभाएंगे। 

सरकार ने सर्वदलीय बैठक में नेताओं से केवल सलाह मशविरा ही नहीं किया होगा, सरकार के निर्णयों से भी अवगत कराया होगा। किंतु किसी कार्रवाई के लिए तैयारी करनी पड़ती है। भारत की सेना की ओर से जो कार्रवाई होगी उसका पाकिस्तान किस तरह का जवाब दे सकता है इन सबका पूर्वानुमान लगाते हुए उसका सामना करने के लिए हर पहलू से तैयार रहने की जरुरत होती है। 

आक्रोश तो स्वाभाविक है। जिस देश और समाज का खून जम गया हो वही ऐसी हिंसक दुस्साहस पर आक्रोशित नहीं होगा। बावजूद बिना पूर्ण तैयारी के कोई कार्रवाई अपेक्षित परिणाम नहीं दे सकता। 

भारत का पहला लक्ष्य तो यही है कि सीमा पार से आतंकवाद का प्रायोजन बंद हो। यह बड़ा लक्ष्य है। भारत के साथ इस समय लगभग पूरी दुनिया है। अमेरिका ने इस घड़ी में भारत के साथ खड़े होने का संदेश देते हुए पाकिस्तान को भी परोक्ष चेतावनी दी है। अमेरिका के राष्ट्रपति भवन की तरफ से पाकिस्तान को नाम लेकर चेतावनी दी गई है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता सारा सैंडर्स ने कहा कि पाक तुरंत अपनी जमीन से चलने वाले आतंकी संगठनों को समर्थन देना बंद करे। यह सिर्फ क्षेत्र में हिंसा और आतंक को बढ़ावा देते हैं। 

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी अपने बयान में पाकिस्तान का नाम लेते हुए कहा कि सभी देशों को आतंक के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत अपनी जिम्मेदारियां समझनी होंगी और आतंकियों की पनाहगाह बनना बंद करना होगा। हम आतंकवाद से मुकाबले के लिए हर स्थिति में भारत के साथ खड़े हैं। 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित किए जा चुके पाकिस्तान के जैश-ए-मोहम्मद ने इस जघन्य हमले को अंजाम दिया। पीड़ितों के परिवार के साथ हमारी संवेदनाएं हैं। इस बयान से साफ है कि पाकिस्तान द्वारा हमले में किसी तरह के हाथ न होने के वक्तव्य से अमेरिका बिल्कुल सहमत नहीं है। हो भी नहीं सकता। अमेरिका के पास पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की पूरी जानकारी है। 


रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ कहा है कि इस हमले के जिम्मेदार लोगों को सजा मिलना बेहद जरूरी है। ये दो तो उदाहरण मांत्र हैं। अनेक देशों ने भारत के साथ संवेदना व्यक्त की है। इसमें चीन भी शामिल है। उसने भी आतंकवादी हमलों की निंदा की है। यह वही चीन है जो जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने का तीन प्रयास विफल कर चुका है। 

इसका उल्लेख यहां इसलिए जरुरी है क्योंकि इस हमले की जिम्मेवारी जैश ने ही ली है। आत्मघाती हमलावर की पहचान पुलवामा के काकापोरा निवासी आदिल अहमद उर्फ वकास के तौर पर हुई है। आदिल 2018 में ही जैश-ए-मोहम्मद में शामिल हुआ था। 


इतनी जानकारी आ गई है कि इस हमले का मास्टरमाइंड जैश-ए-मोहम्मद का पाकिस्तान का आतंकवदी अब्दुल रशीद गाजी है। गाजी अफगानिस्तान की लड़ाई में शामिल रहा था। मसूद अजहर ने अपने भतीजे उस्मान और भांजे तल्हा रशीद की मौत का बदला लेने के लिए गाजी को खुद चुना था। 

तल्हा को नवंबर 2017 में पुलवामा और उस्मान को अक्टूबर 2018 में त्राल में सुरक्षा बलों ने मार गिराया था। गाजी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भारत भेजे जाने वाले आतंकवादियों को प्रशिक्षण देता है। 

सुरक्षा बलों को सूचना मिली थी कि गाजी दिसंबर 2018 में अपने दो साथियों के साथ कश्मीर में दाखिल हुआ था। वह पुलवामा के इलाके में छिपा हुआ था। उसके आने का प्रमुख उद्देश्य आतंकवादी संगठन में शामिल होने वालों को प्रशिक्षण देना तथा हमले में गाइडेंस करना था। अगर वह वापस नहीं लौटा है तो इसमें किसी को शक होना ही नहीं चाहिए कि गाजी को सुरक्षा बल आने वाले कुछ समय में दो गज जमीन में सिमटा देंगे। किंतु इतने मात्र से भारत न संतुष्ट हो सकता है न होना चाहिए। 

जब तक पाकिस्तान आतंकवादी निर्माण का कारखाना बना रहेगा तथा वहां की सेना उसकी संरक्षक बनी रहेगी, भारत में घुसपैठ कराने का हर संभव प्रयास करेगी तब तक आतंकवादी हमले बंद नहीं हो सकते। 
  

शुरुआती कदम के तौर पर भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने पाकिस्तान उच्चायुक्त सोहेल महमूद को बुलाकर एक कड़ा आपत्ति पत्र (डिमार्शे) जारी किया है। गोखले ने साफतौर पर बता दिया है कि पाकिस्तान को फौरन जैश-ए-मोहम्मद पर कार्रवाई करनी होगी। इसके अलावा उन संगठनों और व्यक्तिगत तौर पर उसकी मदद बंद करने को होंगे जो उसकी धरती से आतंकवादी संगठन चला रहा हो। 

यह एक औपचारिक कदम है लेकिन हम भी जानते हैं कि इसका पाकिस्तान पर कोई असर शायद ही होगा। भारत ने पाकिस्तान स्थित अपने उच्चायुक्त अजय बिसारिया को भी दिल्ली बुला लिया है। पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन यानी सबसे ज्यादा तरजीही वाला देश का दर्जा वापस ले लिया गया है। डब्ल्यूटीओ के अनुच्छेद 21 बी के तहत कोई भी देश किसी देश को दिया एमएफएन का दर्जा तब वापस ले सकता है, जब उन दोनों के बीच सुरक्षा संबंधी मुद्दे पर विवाद हो। 


विश्व व्यापार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों के आधार पर व्यापार में मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया जाता है। जिस देश को यह यह दर्जा मिलता है, उसे आश्वासन रहता है कि उसे कारोबार में नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। 

भारत ने 1996 में पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया था। इसके तहत आयात-निर्यात में आपस में विशेष छूट मिलती है। यह दर्जा प्राप्त देश से कारोबार सबसे कम आयात शुल्क पर होता है। भारत-पाकिस्तान के बीच सीमेंट, चीनी, ऑर्गेनिक केमिकल, रुई, सब्जियों और कुछ चुनिंदा फलों के अलावा मिनरल ऑयल, ड्राई फ्रूट्स, स्टील जैसी कमोडिटीज का कारोबार होता है। 


एमएफएन का दर्जा छीनने के बाद भारत पाकिस्तानी आयात पर किसी भी सीमा तक शुल्क बढ़ा सकता है। हालांकि एमएफएन दर्जा छिनने से पाक को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा। भारत और पाकिस्तान के बीच 2017-18 के दौरान 2.412 बिलियन डॉलर (करीब 17 हजार करोड़ रुपए) का कारोबार हुआ था। इसमें भारत से होने वाले निर्यात की हिस्सेदारी 1.924 बिलियन डॉलर है, जबकि पाकिस्तान से सिर्फ 0.488 बिलियन डॉलर का ही आयात होता है। 2016-17 में भारत की ओर से पाकिस्तान को 1.8218 बिलियन डॉलर, जबकि पाक की तरफ से सिर्फ 0.454 बिलियन डॉलर का ही निर्यात किया गया था। भारत के कदम के जवाब में पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसने भारत को कभी मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा ही नहीं दिया। पाकिस्तान ने 1,209 सामनों के भारत से आयात पर पहले ही रोक लगा रखी है। अटारी-वाघा रूट के जरिए सिर्फ 138 चीजें ही भारत से पाक तक जाती हैं। मुख्य तौर पर भारत पाकिस्तान को कॉटन, डाई, केमिकल्स, सब्जियां, लोहा और इस्पात का निर्यात करता है। 

बावजूद इस कदम का महत्व तो है ही। इसके पहले अनेक बार तनाव के अवसर आए लेकिन यह दर्जा कभी वापस नहीं लिया गया। संसद हमले से लेकर 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले के बावजूद इसे बनाए रखा गया। इस तरह एक बड़ा संदेश तो भारत की ओर से दिया ही गया है। जम्मू कश्मीर या अन्य जगह होने वाले ऐसे आतंकवादी हमले के पीछे एक विचारधारा है। इस विचारधारा को कैसे पराजित किया जाए यह बड़ा प्रश्न है। 

कश्मीर में आतंकवादी अपने नजरिए का जेहाद कर रहे हैं। हाल में कई आतंकवादियों का सोशल मीडिया पर बयान आया है कि वो कश्मीर को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहते हैं। वैश्विक जेहादी आतंकवाद विश्व स्तर पर यह लक्ष्य घोषित करता है तथा जो समूह अलग-अलग देशों में हिसा कर रहे हैं वे वहां के लिए। 

पाकिस्तान की सेना और उसकी ईकाई आईएसआई इसका पोषण करती है। स्वयं पाकिस्तान की मीडिया में हो रही चर्चा के देखिए तो कई विश्लेषकों ने यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि जब जैश स्वयं हमले की जिम्मेवारी ले रहा है और उसका संबंध पाकिस्तान की सेना और आईएसआई से है तो कोई हमें दोषी क्यों नहीं ठहराएगा। 

यह भारत केन्द्रित आतंकवाद का मामला है। किंतु विश्व स्तर पर जो आतंकवाद है उसको खत्म किए बगैर अंतिम लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। 

प्रधानमंत्री ने अपने बयान में फिर एक बार विश्वशक्ति को साथ आने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि मैं सभी से आह्वान करता हूं कि आतंक के खिलाफ मानवतावादी शक्तियों को लड़ना होगा। हमें आतंक को परास्त करना ही होगा। जब सभी देश एक मार्ग, एक स्वर और एक दिशा में चलेंगे तो आतंकवाद टिक नहीं सकता है। 2017 में पूरी दुनिया में आतंकवाद हमलों में 18801 लोग मारे गए। 

साफ है कि प्रधानमंत्री अपने स्तर पर पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ विश्व समुदाय से एक साथ आतंकवाद पर टूट पड़ने की अपील कर रहे हैं। यह अपील उन्होंने पिछले चार सालों में हर वैश्विक मंच पर किया है। 

यह ऐसा पहलू है जिसका ध्यान हमें हर कार्रवाई के संदर्भ में रखना होगा। देश आतंकवाद के विरुद्ध बोलते जरुर हैं लेकिन कार्रवाई में एकजुटता नहीं होती। इसलिए भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद की परिभाषा तक करने का प्रस्ताव वर्षों से लटका हुआ है। 

चीन का ही उदाहरण लीजिए। चीनी सरकार की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि हम किसी भी तरह के आतंकवाद का विरोध करते हैं। जवानों पर हुए इस हमले से हमें गहरा धक्का लगा है। लेकिन जब चीन के प्रवक्ता गेंग शुआंग से मसूद अजहर पर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जहां तक मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का मामला है तो हम इसे जिम्मेदार तरीके से देखेंगे। 

2 जनवरी 2016 को पठानकोट के वायुसेना अड्डे पर हमले में मसूद अजहर का हाथ सामने आया था। फरवरी में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सामने अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव रखा गया। 

चीन ने पहले मार्च 2016 और फिर अक्टूबर 2016 में भारत की कोशिशों को रोक दिया। दिसंबर 2016 में तो चीन ने इस प्रस्ताव के विरोध में वीटो का इस्तेमाल कर दिया। भारत के प्रयास से बाद में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने मिलकर 19 जनवरी 2017 को अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया, लेकिन चीन ने तकनीकी तौर पर इसे गलत बताकर प्रस्ताव को रोक दिया। भारत 26/11 हमलों के बाद से ही अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की मांग उठाता आ रहा है, लेकिन उसकी कोशिशों में हर बार चीन अड़ंगा डाल देता है। 

भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय वार्ताओं में कई बार अजहर का जिक्र हुआ, लेकिन इस पर दोनों ही देशों में कोई सहमति नहीं बन पाई। इसका जिक्र इसलिए जरुरी है ताकि हम समझ जाएं कि यह लड़ाई कितनी कठिन है। कार्रवाई केवल सैनिक ही नहीं होती, कूटनीतिक रुप से उसे दुनिया में अलग-थलग करके, उसको आर्थिक रुप से क्षति पहुंचाकर, जितना संभव हो आर्थिक नाकेबंदी करवाकर घुटने टेकने को मजबूर कर सकते हैं। 

इस मार्ग में चीन जैसा देश ही नहीं कई इस्लामी देश बाधा हैं। किंतु हम जितना कर सकते हैं उतना तो करना ही चाहिए। वैसे इसके प्रयास पहले से चले रहे है। अब इस आतंकवादी दुस्साहस के बाद उसकी  आक्रामकता और सघनता बढ़ेगी। 

बस देश इस मामले में सदा एकजुट रहे यह आवश्यक है। ऐसा न हो कि तत्काल देश की भावना को देखते हुए राजनीतिक दल एकजुटता प्रदर्शित करे और समय बीतने के साथ फिर वही राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप। किंतु इस हमले का एक पहलू और भी है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि स्कॉर्पियो में कितना विस्फोटक था। 

100 किलो से लेकर 300 किलों तक विस्फोटक होने की बात की जा रही है। जांच के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के साथ नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के आतंकवादी विरोधी विशेषज्ञ पहुंच चुके हैं। एनएसजी की ब्लैक कैट कमांडो फोर्स के विस्फोटक विशेषज्ञों की एक टीम एनआईए की मदद करेगी। 

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की 12 सदस्यीय टीम  हमले वाली जगह पर फोरेंसिक साक्ष्य जुटाएगी। अपराध स्थल की फोरेंसिक जांच से जम्मू कश्मीर पुलिस को भी मदद मिलेगी। इस जांच का भी महत्व है। इतना विस्फोटक गाड़ी में लेकर आतंकवादी वहां तक पहुंचता है तो जाहिर है उसको सहयोग करने वाले लोग होंगे। अकेले कोई व्यक्ति इतना विस्फोटक न इकट्ठा कर सकता है न इसे गाड़ी पर रख सकता है। 

कहा जा रहा है कि अमोनियम नाइट्रेट की जगह इसमें यूरिया का इस्तेमाल हुआ है। यानी विस्फोटक यहां बनाए गए हैं। इसमें कई लोग लगे होंगे। दूसरे, वह आतंकवादी इतने विस्फोटक के साथ वहां पहुंच, घंटो प्रतीक्षा करता रहा और सुरक्षा बलों की नजर से बचा रहा तो कैसे?  तीसरे, यह भी प्रश्न हमारे सामने है कि आतंकवादी तक सीआरपीएफ जवानों के गुजरने की जानकारी कब और कैसे पहुंची तथा वहां तक उतनी भारी मात्रा में विस्फोटक लेकर पहुंचने में वह कामयाब कैसे हुआ? आखिर सीआरपीएफ ने अपने काफिले के गुजरने का प्रचार तो किया नहीं था। तो कोई या कुछ गद्दार तो हैं। 

इसका उत्तर इसलिए जरुरी है क्योंकि इससे देश के गद्दार सामने आएंगे एवं इससे ऐसी घटना की पुनरावृत्ति रोकने में भी मदद मिलेगी। साथ ही कुछ बातें और भी हैं। जिस जगह हमला हुआ उसी लेथपोरा को कमांडो ट्रेनिंग सेंटर में 31 दिसंबर 2017 को जैश के आतंकवादियों ने ही हमला किया था। इस हमले में सीआरपीएफ के 5 जवान शहीद हुए थे। 

जून 2016 में भी जम्मू-श्रीनगर हाईवे में लाथेपोरा से 7 किलोमीटर दूर पम्पोर में सीआरपीएफ की टुकड़ी पर हमला किया गया था। इसमें 8 जवान शहीद हुए थे। 

फरबरी 2016 में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया गया था। हमले के बाद आतंकवादी सरकारी इमारत में घुस गए थे। दो दिन चले मुठभेड़ में तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया था। ऑपरेशन में 3 जवान शहीद हुए थे और 9 नागरिकों की जान गई थी। 

वह स्थान आतंकवादी हमले की दृष्टि संवेदनशील था। जो कार्रवाई आतंकवादियों और पाकिस्तान के खिलाफ होना चाहिए वह तो हो, लेकिन इस पर भी विचार करिए कि वैसे जगह पर काफिले की सुरक्षा के लिए कोई विशेष प्रबंधन किया गया था या नहीं। 


अवधेश कुमार

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं।