नई दिल्ली: महाकवि रामधारीसिंह दिनकर ने ‘अहिंसावादी का युद्धगीत’ कविता में लिखा था: गांधी की रक्षा करने को गांधी से भागो। ठीक इसी तरह दक्षिण एशिया के तीन बौद्ध देशों के बौद्धों को भी इन दिनों लग रहा है: बुद्ध की रक्षा करने को बुद्ध से भागो। 

ये तीन बौद्ध देश हैं श्रीलंका,म्यामार और थाईलैंड। भगवान बुद्ध के रास्ते पर चल कर शांति और अहिंसा की माला जपनेवाले बौद्ध भिक्षु अब क्रांतिदूत बन गए हैं। उनके हाथों में सुमिरनी नहीं नहीं बंदूके है। अपनी बौद्ध अस्मिता की रक्षा के लिए वे हिंसा पर उतर आए हैं। बुद्ध के नाम से संन्यासी समूह नहीं सेनाएं बन रही हैं। श्रीलंका की बोदु बाला सेना तो इन दिनों चर्चा में हैं। म्यांमार में बौद्ध भिक्षु विराथु तो रोहिंग्या मुस्लिम के लिए यमराज बन गए हैं। इन सभी देशों में बौद्धों और मुस्लिमों का टकराव शांति के लिए खतरा बन गया है। 

हाल ही में श्रीलंका में हुए सिलसिलेवार धमाकों को भले ही न्यूजीलैंड के धमाकों का बदला बताया जा रहा हो मगर श्रीलंका में मुस्लिमों का झगड़ा ईसाइयों के साथ नहीं बहुसंख्यक बौद्धों के साथ चल रहा है। इसलिए ध्यान भटकाने के लिए न्यूजीलैंड का नाम लिया जा रहा है। यदि बौद्धों के खिलाफ बदला लेने की बात की जाती तो श्रीलंका में मुस्लिमों का जीना मुहाल हो जाता।

दोनों के बीच टकराव कितना गंभीर रूप ले चुका है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल केन्द्रीय हाइलैंड्स में कैंडी के पास सप्ताहांत में मुस्लिम विरोधी अपील और हमलों के बाद, 6 मार्च को श्रीलंका सरकार ने 10 दिवसीय राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की और अशांति वाले  क्षेत्र में भारी सशस्त्र कमांडो और सेना की तैनाती की।

5 मार्च को बौद्धों ने मुस्लिम दुकानों, घरों और मस्जिदों पर हमला किया था। जिसके बाद से ही कथित तौर पर केंद्रीय ज़िले में कर्फ्यू लगाना पड़ा । यह एक घटना की प्रतिक्रिया में था जिसमें कुछ विवाद होने पर, एक बौद्ध लॉरी चालक को कथित तौर पर तीन लोगों ने मारा था, जो कि मुस्लिम थे |

हाल के वर्षों में मुस्लिम और बौद्ध समुदायों के बीच तनाव पैदा होने के बाद से ही नई–नई  घटनाएं बार-बार सामने आती रहती हैं। पिछले हफ्ते भीड़ ने मुस्लिम व्यवसायों और पूर्वी श्रीलंका के अंपारा में एक मस्जिद पर हमला किया था। यह सब बोदु बाला सेना के नेतृत्व में होता है जिसके नेता बौद्ध भिक्षु हैं।

जब बौद्ध भिक्षुओं का नाम आता है तो लगता है कोई धीर गंभीर,सरल सीधा साधु महात्मा होगा बोलता होगा तो मुख से हर वक्त शांति, प्रेम और सद्भाव की बातें निकलती होंगी।  मगर म्यांमार(बर्मा)  के बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु, लंका के बौद्ध भिक्षु गनसारा और विथानागे पर ये सब बातें लागू नहीं होतीं। वो मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलते हैं। 

  इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि बौद्धभिक्षु क्यों शांति और अहिंसा के बजाय क्रांति पर उतर आए हैं? क्यों वो इस्लामिक विस्तारवाद के खिलाफ आग उगल रहे हैं?

हाल के वर्षों में श्रीलंका में कट्टरपंथी बौद्ध समूहों और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ा है, मुख्य रूप से इसकी अगुवाई बोदु बाला सेना (बीबीएस) कर रही है, जिसने हलाल मीट (2013-14)  के खिलाफ एक अभियान शुरू किया।, बुरका पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव दिया था,और कथित रूप से ये मुसलमानों पर हुए विभिन्न हमलों में शामिल रहे है I बोदु बाला सेना के सदस्य बौद्ध भिक्षुओं के नेतृत्व में रैलियां निकाली गई, मुसलमानों के खिलाफ सीधी कार्रवाई का आह्वान किया गया और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बहिष्कार की अपील की गई।
श्रीलंका में 2 करोड़ बौद्ध हैं, जो कि कुल आबादी का लगभग 70% है, इसमें मुख्य रूप से थिवड़ा(Theravada) वंश के हैं। इसके अलावा लगभग 9% मुसलमान और 10% ईसाई हैं, इनके अलावा 13% हिंदु है। 
यहां बौद्ध मुस्लिम तनाव कोई नयी परिघटना नहीं है। श्रीलंका में साल 2012 से ही सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है। बौद्ध धर्मगुरु दिलांथा विथानागे ने  इस्लाम को हराने और बौद्धधर्म के उत्थान  के लिए  बोदु बाला सेना (बीबीएस) का गठन किया जिसे चरमपंथी सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी संगठन माना जाता है। 

'टाइम' पत्रिका ने इस संस्था को 'श्री लंका का सबसे शक्तिशाली बौद्ध संगठन' कहा है। संगठन का कहना है कि श्रीलंका दुनिया का सबसे पुराना बौद्ध राष्ट्र है। यह संगठन पिछले वर्षों में श्रीलंका में मुसलमानों पर हुए हमलों के लिए जिम्मेदार माना गया है। विथानागे मानते हैं कि श्रीलंका में भी बौद्धों पर धर्मांतरण का खतरा मंडरा रहा है। मुसलमान बौद्ध महिलाओं से विवाह करते हैं, उनसे बलात्कार करते हैं और वे बौद्धों की भूमि भी हड़पने में लगे हैं। 
सिंहली परिवारों में एक या दो बच्चे हैं, जबकि अल्पसंख्यक आधा दर्जन या इनसे ज्यादा बच्चे पैदाकर आबादी का संतुलन बिगाड़ रहे हैं। इनके पीछे विदेशी पैसा है और सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर रही है। यह संगठन अल्पसंख्यक वोट बैंक की सियासत पर सवाल उठाता आया है। इस संगठन का मानना है कि श्रीलंका में मुसलमान तेजी से मस्जिदें बनाने और अपनी जनसंख्या बढ़ाने में लगे हैं। 

बौद्ध संगठन बोदु बाला सेना को गोताबाया राजपक्षे का समर्थन हासिल है,जो कि श्रीलंका के प्रमुख नेता महिंदा राजपक्षे के भाई हैं। श्रीलंका में मुस्लिम विरोधी अभियान की बागडोर उग्रवादी बौद्ध संगठनों के हाथ में है जिसके सूत्रधार शांतिप्रिय और ध्यान में निमग्न रहनेवाले बौद्ध भिक्षु हैं। उनके मन में यह बात पैठी हुई है कि एक समय था जब संपूर्ण एशिया में बौद्ध धर्म शिखर पर था। लेकिन इस्ला‍म के उदय के बाद बौद्ध धर्म  ने दक्षिण एशिया के बहुत से राष्ट्र खो दिए।

म्यांमार के बौद्धभिक्षु विराथु कहते है - "इस्लाम पहले ही इंडोनेशिया, मलेशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को जीत चुका है। यह सब बौद्ध देश थे। इसी तरह इस्लाम दूसरे बौद्ध देशों को भी जीत सकता है।" वे नहीं चाहते कि यह इतिहास उनके देश में दोहराया जाए। जिन तीन देशों में बौद्धों और मुस्लिमों के बीच तनाव और संघर्ष चल रहा है उसमें इतिहास का भी योगदान है। बौद्धों को इसमें  बारहवीं सदी के इतिहास की गूंज सुनाई देती है। बौद्धों की सामूहिक चेतना में यह बात पैठी हुई है कि 1193 में तुर्की सेनाओं ने नालंदा और अन्य बौद्ध विश्वविद्यालयों को ध्वस्त कर दिया था। उन्हें लगता है कि आज के मुस्लिम भी उसी तरह का खतरा बनकर आए है। 

बौद्ध राष्ट्रों में मुस्लिमों के प्रति आक्रमक रुख भी वहां की सरकारों के ‍‍लिए मुसीबतें पैदा कर रहा है। पहले बौद्ध भिक्षु इस्ला‍म को खतरा नहीं मानते थे लेकिन अफगानिस्तान में बामियान की ऐतिहासिक बुद्ध प्रतिमाओं पर तालिबानी हमलों ने बौद्ध समुदायों को भड़काया और उनकी मुस्लिमों के प्रति देखने की दृष्टि बदल दी। इसके चलते ही बर्मा, श्रीलंका और थाईलैंड में हालात बदल गए हैं। 

बौद्ध देशों की जनता ने एक बात और महसूस की कि मुस्लिम बहुल देशों में जहां बौद्ध थे वहां बौद्धों पर काफी अत्याचार हुए।जैसे बांग्लादेश में चकमा बौद्धो पर चटगांव हिल ट्रैक्ट में इतने हमले और अत्याचार हुए कि उन्हें विस्थापित होकर भारत आना पड़ा । इसके अलावा गया के महाबोधि मंदिर पर भी इस्लामी आतंकियों के हमले से भी बौद्धों में आक्रोश है।

म्यांमार से भाग रहे रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों पर पिछले दिनों पूरी दुनिया में चर्चा हुई। उन्हें बेबस और बेवतन नागरिक बताने की हर संभव कोशिश की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ और मानव अधिकार संगठन उन्हें एक ऐसे अल्पसंख्यक समूह के तौर पर चित्रित कर रहे हैं जिन्हें म्यांमार के बौद्ध बहुसंख्यक परेशान करके देश छोड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं। लेकिन  जानकारों का कहना है कि यह दक्षिण एशिया में चल रहे बौद्ध-मुस्लिम संघर्ष का नतीजा है। रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या  म्यांमार के बौद्ध और मुस्लिमों के संघर्ष से ही उपजी है। 


म्यांमार और थाईलैण्ड में शांतिप्रिय माने जाने वाले बौद्ध भिक्षु बेहद कठोरता से मुस्लिम विरोधी आंदोलनों की अगुवाई कर रहे हैं। इन भिक्षुओ में सबसे चर्चित और उग्र है म्यांमार के अशीन विराथु । दुनियाभर की प्रेस में कोई उन्हें 'आग उगलता बौद्ध भिक्षु' कहता है तो कोई" बौद्ध आतंकवाद का चेहरा " तो कोई  "बौद्ध ओसामा बिन लादेन"। मगर उनके अनुयायी कहते है कि स्वभाव से शांति प्रिय विराथु को देश और धर्म की रक्षा के लिए यह नया अवतार लेना पड़ा।

म्यांमार में जब रोहिंग्या अलगाववाद ने उग्ररूप ले लिया तो पूरे देश में बौद्धों पर हमले होने लगे। मगर  बर्मा की आम जनता अपनी सुरक्षा के प्रति उदासीन रही। ऐसे में सामने आये मांडले के बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु जिन्होनें अपने प्रभावशाली भाषणों से जनता को ये एहसास कराया कि यदि अब भी वो नहीं जागे तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा। इसी दौरान कुछ हिंसक झड़पें हुईं कई बौद्ध मारे गये। आखिर लोग भड़क उठे। यहाँ तक कि  बौद्ध भिक्षुओं ने भी हथियार उठा लिया। 

अशीन विराथु चर्चा में तब आए जब वे 2001 में कट्टर राष्ट्रवादी और मुस्लिम विरोधी संगठन‘969’ के साथ जुड़े। वो अब इसके संरक्षक हैं। यह संगठन बौद्ध समुदाय के लोगों से अपने ही समुदाय के लोगों से खरीदारी करने, उन्हें ही संपत्ति बेचने और अपने ही धर्म में शादी करने की बात करता है। जागरूक बौद्धो के संगठन बुद्धिस्ट डिफेंस लीग के फेससबुक पेज पर कहा गया है कि ‘यदि आप मुस्लिमों की दुकानों से कुछ खरीदते हैं तो आपका पैसा वही नहीं रुकता वह आखिर में आपके धर्म और जाति को नष्ट करने के काम आता है।’

 ‘969’ के समर्थकों का कहना है कि यह पूरी तरह से आत्मरक्षा के लिए बनाया गया संगठन है जिसे बौद्ध संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए बनाया गया है। मगर वे मुसलमानों के खिलाफ इसलिए है क्योंकि उनका कहना है ‘हम बौद्ध उन्हें आजादी के साथ उनके धर्म का पालन करने देते हैं।जब मुसलमानों के पास ताकत आती है वे हमें अपने धर्म का पालन नहीं करने देते। सावधान रहिए। मुस्लिम हमसे नफरत करते हैं’। 

कुछ साल पहले बर्मा की सरकार ने हिंसक झड़पों एवं उनके भड़काऊ भाषणों के खिलाफ विराथु को 25 साल की सजा सुनायी थी। मगर जनता के मांग के सामने झुककर  सरकार को उन्हें केवल सात साल बाद 2011 में ही जेल से रिहा करना पड़ा। विराथु भाषणों में  जहर उगलते हैं। कई बार उनके भाषणों से ही दंगे-फसाद हो जाते हैं। उनके निशाने पर रहते हैं रोहिंग्या मुसलमान। एक बार जब विराथू से पूछा गया कि क्या वे ‘बर्मा के बिन लादेन’ हैं, तो उन्होंने कहा कि वे इनकार नहीं करेंगे। अशीन विराथू की शोहरत 1 जुलाई 2013 को टाइम मैगजीन तक पहुंच गई। मैगजीन के फ्रंट पेज पर उनकी तस्वीर छपी। हेडिंग थी: बुद्धिस्ट आतंकवाद का चेहरा। विराथु ने बौद्धों से साफ कहा कि अब यदि हमें अपना अस्तित्व बचाना है तो अब शांत रहने का समय नहीं रहा। देश से बौद्धों का सफाया हो जाएगा और बर्मा मुस्लिम देश हो जाएगा।

मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलनेवाले विराथु का कहना है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक बौद्ध लड़कियों को फंसाकर शादियाँ कर रहे हैं एवं बड़ी संख्या में बच्चे पैदा करके पूरे देश के जनसंख्या-संतुलन को बिगाड़ने के मिशन में दिन रात लगे हुए हैं, जिससे बर्मा की आन्तरिक सुरक्षा को भारी खतरा उत्पन्न हो गया है। इनका कहना है कि मुसलमान एक दिन पूरे देश में फैल जाएंगे और बर्मा में बौद्धों का नरसंहार शुरू हो जाएगा।

विराथु किसी से डरते नहीं अपनी बात साफगोई से कहते है। संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांग ली ने बर्मा का दौरा किया और विराथु की साम्प्रदायिक सोच की निंदा की तब विराथु ने उसे खुलेआम धमकी दी एवं कहा-” आपकी संयुक्त राष्ट्र में प्रतिष्ठा है, इसलिए आप अपने आप को बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति न समझ लें। बर्मा के लोग अपने देश की रक्षा स्वयं करेंगे। उन्हें आपके सलाह की जरूरत नहीं है।”

विराथु ने अपने देश से लाखों मुसलमानों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया। वे ज्यादातर अपनी बातें डीवीडी और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं। मांडले के अपने मासोयिन मठ से लगभग दो हजार पांच सौ भिक्षुओं की अगुआई करने वाले विराथु के फेसबुक पर हजारों फालोअर्स हैं और यूट्यूब पर उनके वीडियो को लाखों बार देखा जा चुका है।

म्यांमार में हुए कई सर्वेक्षणों  से स्पष्ट है कि जनता एवं बौद्ध भिक्षु विराथु के साथ हैं। विराथु उन्हें बतला रहे हैं कि  यदि हम आज कमजोर पड़े, तो अपने ही देश में शरणार्थी हो जाएँगे।
विराथु एक ऐसा नाम जिसे सुनते नाम मात्र से मुस्लिमों के अन्दर कम्पन पैदा हो जाता है। विराथु वो संत हैं जिन्होंने म्यामार में आतंक की जड़ कहे जाने वाले मुस्लिमों को बाहर खदेड़ दिया है आपको ये सुनकर आश्चर्य होगा कि भगवान बुध्द का अनुयायी ऐसा कठोर कैसा हो गया इसके पीछे एक कहानी है। 

पहले आपको बता देते हैं कि विराथु जितना बुध्द को मानते हैं उतना ही गीता को भी मानते हैं और उन्होंने गीता से एक पाठ को अपने जीवन में उतारा है और वो है “शांति स्थापित करने के लिए हथियार उठाना होगा, शांति के लिए युद्ध जरुरी”

उन्होंने गीता में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश के आधार पर अपने देश के लोगों को कठोरता से कदम उठाने के लिए कहा विराथु ने कहा, “चाहे आप कितने भी दयावान और शांतिप्रिय हो पर आप एक पागल कुत्ते के साथ नहीं सो सकते अन्यथा आपकी शांति वहां कोई काम नहीं आएगी और आप बर्बरता से ख़त्म कर दिए जाओगे। विराथु के इन्हीं उपदेशों के बाद लगातार आतंकवाद की बीमारी झेल रहे म्यांमार के लोग एकजुट हो गए वो विराथु के लिए जान लेने और देने को तैयार हो गए।
इसी तरह थाईलैंड भी मुस्लिम आतंकवाद और अलगावाद से परेशान है। थाईलैंड के तीन मुस्लिम बहुल राज्य कई वर्षों से अलगाववाद के कारण सिरदर्द बने हुए है।  ये 3 दक्षिणी प्रांत हैंपट्टानी , याला और नरभीवाट। वहां अल्पसंख्यक बौद्धों की हत्याएं और भगवान बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ना, सुरक्षा बलों से मुठभेड़, बौद्ध भिक्षुओं पर हमले, थाई सत्ता के प्रतीकों, स्कूलों, थानों, सरकारी संस्थानों पर हमले और तोड़फोड़, निहत्थे दुकानदारों और बाग मजदूरों की हत्या एक आम बात हो गई थी। 

थाईलैंड में आतंकवाद फैलाना वाला संगठन था 'जेमाह जमात इस्लामियाह', जिसके कई गुट अलग अलग नामों से सभी 'आसियान' देशों में फैले हुए हैं। इनका उद्देश्य स्पष्ट है- गैर मुसलिमों का सफाया, मुसलमानों के हाथ में सत्ता दिलाना और वर्तमान सत्ता से सशस्त्र संघर्ष। 

बौद्ध बहुल थाइलैंड में सेना को इन तीन प्रांतों में मुस्लिम अलगाववादियों से भिड़ना पड़ा है। सेना ने बौद्ध मठों में अपने हथियारों का भंडार बनाया है। लेकिन इस्लामी अलगावादी बौद्ध भिक्षुओं को निशाना बनाते रहते हैं। नतीजतन भिक्षुओं को पुलिस, संरक्षण में भिक्षा मांगने का धार्मिक कार्य करना पड़ता है। वे कहते है हमारे पास कोई रास्ता नहीं है हम अब बौद्धधर्म को बंदूक से अलग नहीं रख सकते।

वैश्वीकरण के इस जमाने में श्रीलंका ,बर्मा और थाईलैंड के बौद्ध बौद्धधर्म की रक्षा के लिए एक बैनर तले आ गए हैं। इन तीनों देशों के बौद्ध जो अपने देशों के बहुसंख्यक है यह महसूस कर रहे है कि उनकी जनसंख्या घट रही है। वे महसूस करते है कि मुस्लिमों के परिवार उनके परिवारों से बड़े हैं। अंतरधर्मीय विवाह भी उनके सामने एक समस्या है ।जब दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशियाई देश में अंतर्धार्मिक विवाह होता है उसमें बौद्ध को ही इस्लाम कबूल करना पड़ता है। ऐसा धार्मिक और सामाजिक दबाव के कारण होता है। बौद्धधर्म छोड़ने वालों पर कोई फर्क नहीं पड़ता मगर मुसलमानों में धर्म छोड़नेवाले को धर्मद्रोही माना जाता है। इस फर्क को 969 और बोदु बल सेना के लोग महसूस करते हैं।वे इस प्रवृत्ति पर रोकलगाना चाहते हैं।

विराथु और बौद्ध मानते है कि सऊदी अरब से इंडोनेशिया तक वैश्विक आर्थिक नेटवर्क फैला हुआ है जो बौद्ध देशों से बौद्ध प्रभुत्व को खत्म करना चाहता है। उनके इन विचारों से म्यामार से हजार किमी दूर स्थित श्रीलंका की बोदु बाला सेना भी सहमत है। सेना ने विराथु को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो बुलाया जहां विराथु ने हजारो सिंहली बौद्धों को संबोधित किया। अंतर्राष्ट्रीय हल्कों में विराथु को दिए गए आमंत्रण पर काफी बवाल हुआ। बोदु बाला सेना के सह संस्थापक किरामा विमलकीर्ती थेरा कहते है यह बहुधर्मीय देश नहीं है यह सिंहली देश है। विराथु छह महीने बाद फिर श्रीलंका गए और उन्होंने वैश्विक बौद्ध धर्म की रक्षा के लिए वैश्विक बौद्ध गठबंधन बनाया।

थाईलैंड के बौद्धों ने भी 969 की आर्थिक मदद करके अपना समर्थन प्रगट किया। दूसरी तरफ थाईलैंड के बौद्धों ने सरकार से अपील की कि वह रोहिंग्या शऱर्णार्थियों की नावों को देश में न आने दें। थाई सरकार उन्हें वापस भेजे। जब कुछ लोगों ने इस मामले में नैतिकता का सवाल उठाया तो उन्होंने जवाब दिया कि हम दयालु है मगर मुस्लिम आक्रामक हैं। उनके बच्चे बहुत ज्यादा होते हैं। वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है इससे दक्षिण एशिया के लिए खतरा बढ़ जाएगा।

दक्षिण एशिया के बौद्ध देशों में बढता बौद्ध-मुस्लिम तनाव पूरे इलाके में अशांति का कारण बन सकता है।