नई दिल्ली: हालांकि पीएम मोदी की श्रीलंका यात्रा उसके साथ एकता दर्शाने, वहां की सरकार, सुरक्षा एजेंसिया, श्रीलंका के नागरिकों एवं वहां रह रहे भारतीयों के साथ एकता दर्शाने एवं उनके बीच आत्मविश्वास पैदा करने के लिए था। 

यह भी कोई सामान्य बात नहीं है। आतंकवादी हमले के बाद वहां पहुंचने वाले वे पहले विदेशी नेता बने। श्रीलंका इस नाते उनका स्वागत करने को तैयार था, क्योंकि इससे आतंकवाद के विरुद्ध उठाए गए उसके कदमों का समर्थन मिल जाएगा तथा दुनिया को संदेश जाएगा कि अब वहां की यात्रा जोखिम भरी नहीं है। इससे पर्यटकों के आने का सिलसिला आरंभ होगा तथा उसकी अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी। 

मोदी ने केवल पड़ोसी नहीं सच्चा दोस्त के नाते वहां बिना विशेष तैयारी के वहां जाकर उसके सारे लक्ष्य पूरे किए। वे हवाई अड्डे पर उतरते ही प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ सीधे कोलंबो स्थित सेंट ऐंथनी चर्च पहुंचे, जहां मोदी ने ईस्टर हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धाजंलि दी और ईसाई नेताओं से मुलाकात की। 

इसका संदेश साफ था। उसके बाद राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना के आवभगत में थे जिनसे सारे विषयों पर अनौपचारिक चर्चा की। इस दौरान श्रीलंका सरकार की कैबिनेट के सहयोगी, सभी 9 राज्यों के मुख्यमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। वह दृश्य अद्भुत था जब स्वागत समारोह के दौरान अचानक बारिश हुई तो खुद राष्ट्रपति सिरिसेना नरेंद्र मोदी के सिर छाता तानकर चलने लगे।

 फिर इंडिया हाउस में पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे और तमिल नेशनल अलायंस के अन्य नेताओं से मुलाकात कर मोदी ने न केवल भारत की सभी दलों के साथ समान व्यवहार की नीति का परिचय दिया, बल्कि आतंकवाद के विरुद्ध श्रीलंकाई एकता को मजबूत करने की भी भूमिका निभाई। भारतीयों के संबोधन का उद्देश्य भी यही था कि आप जिस देश में हैं वहां की एकता को मजबूत करके भारत के सिर को उंचा बनाए रख सकते हैं। 

इस तरह श्रीलंका की इच्छा के अनुरुप प्रधानमंत्री मोदी ने भूमिका निभाकर अपनत्व के पुल को मजबूत किया, दुनिया को संदेश दिया कि भारत हर कठिन परिस्थिति में उसके साथ खड़ा है तथा वहां आने वाले निर्भीक होकर आएं। ऐसे कठिन समय में श्रीलंका के लिए यह बहुत बड़ा सहयोग था जिसका सकारात्मक असर आने वाले लंबे समय तक दोनों के रिश्तों पर रहेगा। 

 इसके परे मालदीव की निर्धारित औपचारिक द्विपक्षीय यात्रा थी और उसके परिणाम भी उसी अनुसार आए। मालदीव भारतीय सीमा से केवल 1200 किमी की दूरी पर है। करीब 22,000 भारतीयों का घर होने के साथ ही मालदीव की भौगोलिक स्थिति इसे भारत के लिए रणनीतिक महत्व का स्थान बनाती है। हालांकि मोदी पिछले वर्ष नवंबर में राष्ट्रपति मोहम्मद के शपथग्रहण समारोह में गए थे और उनके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल सहित एक प्रतिनिधिमंडल भी था, लेकिन वह पूर्ण द्विपक्षीय यात्रा नहीं थी। 

कायदे से यह पहली द्विपक्षीय यात्रा थी। अपने पहले कार्यकाल में दक्षिण एशिया में एकमात्र देश मालदीव ही था जहां वो चाहकर भी द्विपक्षीय यात्रा नहीं कर पाए थे। इसका कारण 2013 के चुनाव के बाद वहां आई राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल्ला यामिन की सरकार थी जिसने चीन के पक्ष में समर्पण करने के साथ खुलेआम भारत विरोधी रुख अपना लिया था। भारत के आधारभूत संरचना वाली परियोजनाओं तक पर काम लगभग रुक गया था। 

लेकिन वर्तमान सरकार ने शपथग्रहण के भारत के साथ अपनी परंपरागत घनिष्टतम संबंधों की नीति को अपनाया और भारत ने भी कहीं ज्यादा आगे बढ़कर उसका समान प्रत्युत्तर दिया। सोलिह पद संभालने के बाद पहली विदेश यात्रा के रुप में दिसंबर में भारत आए और उस समय हुए समझौतों से गाड़ी पूरी तरह पटरी पर लौट आई।  

मालदीव की सबसे बड़ी समस्या अब्दुल्ला यामीन द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के नाम पर चीन से लाखों डॉलर का कर्ज लेना था जिससे देश चीन के कर्ज जाल में फंस गया । सालेह की यात्रा के दौरान करीब 3 अरब डॉलर के चीनी कर्ज में फंसे मालदीव को 1.4 अरब डॉलर की वित्तीय मदद की घोषणा सहित कई समझौते किए गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा के साथ दोनों देशों ने अपने आर्थिक, सामरिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों को उससे काफी आगे ले जाकर और सशक्त किया है। प्रधानमंत्री वहां से पूरी तरह संतुष्ट होकर श्रीलंका गए। 
 
 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा में मुख्य पांच कार्यक्रम थे- राष्ट्रपति सालेह, अन्य मंत्रियों और अधिकारियों के साथ भारतीय प्रतिनिधिमंडल की द्विपक्षीय वार्ता व समझौते, संसद के अध्यक्ष मोहम्मद नसीद के साथ वार्ता, मालदीव का विदेशियों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान ग्रहण करना,कुछ परियोजनाओं का उद्घाटन तथा संसद को संबोधन। 

मोदी की कूटनीति का अपना तरीका है जिसमें वे हर कार्यक्रम को भावनाओं और दोनों देशों की परस्पर एकता दर्शाने वाले सभ्यता-संस्कृति के साथ आबद्ध करके उसे विशेष स्वरुप दे दते हैं। यही उन्होंने मालदीव में किया। इब्राहिम सालेह के साथ द्विपक्षीय बातचीत आरंभ करने के पहले उन्होंने उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्यों के हस्ताक्षर वाला क्रिकेट बैट भेंट किया। मोदी ने ट्वीट कर बताया कि सालेह क्रिकेट के फैन हैं, लिहाजा मैंने उन्हें वर्ल्ड कप खेल रही टीम इंडिया का हस्ताक्षर किया हुआ बैट तोहफे में दिया। 

प्रधानमंत्री द्वारा शेयर की गई तस्वीरों में उस बैट की तस्वीर है जिसे उन्होंने मालदीव के राष्ट्रपति को सौंपा है। बैट पर कैप्टन विराट कोहली, रोहित शर्मा, शिखर धवन, विजय शंकर, महेंद्र सिंह धोनी, केदार जाधव, हार्दिक पांड्या, रविंद्र जडेजा, भुवनेश्वर कुमार, कुलदीप यादव, जसप्रीत बुमराह, केएल राहुल, दिनेश कार्तिक, युजवेंद्र चहल, मोहम्मद शमी के हस्ताक्षर हैं। 

विदेश सचिव विजय गोखले ने मोदी के मालदीव दौरे से पहले बताया था कि क्रिकेट के क्षेत्र में भारत कई तरह से मालदीव की मदद कर सकता है। इनमें एक क्रिकेट स्टेडियम बनाना है, जिसके लिए आर्थिक मदद भी दी जा सकती है। द्वीपीय देश ने भारत से अपने नैशनल क्रिकेट टीम को तैयार करने में मदद का अनुरोध किया है, जिस पर भारत ने काम करना भी शुरू कर दिया है। भारत वहां एक क्रिकेट स्टेडियम बनाने पर विचार कर रहा है। इस एक व्यवहार ने वातावरण को बदला और देश के युवाओं में जो संदेश गया सो अलग। 

भारत वहां सैन्य सहायता, प्रशिक्षण और कैपिसिटी बिल्डिंग में मालदीव की पहले से मदद कर रहा है। दोनों देशों के बीच रक्षा, सुरक्षा और कनेक्टिविटी समेत कई महत्वपर्ण समझौते हुए हैं। भारत ने और भी वित्तीय मदद की घोषणा की। विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि भारत मालदीव में इंटर-आइलैंड कनेक्टिविटी को सुधारना चाहता है। उन्होंने कहा कि जिस एक परियोजना पर हमारा प्रमुख फोकस है उसका सामुदायिक विकास से सीधा संबंध है। यह स्पीडबोट उपलब्ध कराने से जुड़ा है जिससे खासतौर से छात्रों को एक द्वीप से दूसरे में आने-जाने में आसानी हो। 

प्रधानमंत्री ने संसद के अपने संबोधन में  कहा कि दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए हम भारत में कोच्चि और मालदीव में कुल्तुफुशी और माले के बीच नौका सेवा शुरू करने पर सहमत हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने बातचीत के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मैंने राष्ट्रपति सालेह के साथ विस्तृत और उपयोगी विचार-विमर्श किया। हमने आपसी हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों के साथ-साथ हमारे द्विपक्षीय सहयोग की विस्तार से समीक्षा की है। हमारी साझेदारी की भावी दिशा पर हमारे बीच पूर्ण सहमति है। 

मोदी ने कहा कि सालेह की भारत यात्रा के दौरान घोषित 1.4 अरब डॉलर के वित्तीय पैकेज से मालदीव की तत्कालीन वित्तीय जरूरतें तो पूरी हुई हैं साथ ही सामाजिक प्रभाव के कई परियोजनाएं शुरू किए गए हैं। 1800 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट के अंतर्गत विकास कार्यों के नए रास्ते भी खुले हैं। आपसी विकास साझेदारी को और मजबूत करने के लिए मालदीव के नागरिकों को लाभ पहुंचाने वाली परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 

जैसा प्रधानमंत्री ने कहा विभिन्न द्वीपों पर पानी और सफाई की व्यवस्था, छोटे और लघु उद्योगों के लिए पयाप्त वित्त, बंदरगाहों का विकास, कॉन्फ्रेंस और कम्युनिटी सेंटर का निर्माण, क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण, ऐंम्बुलेंस सेवा, तटीय सुरक्षा सुनिश्चित करना, कृषि और मत्स्य पालन, पर्यटन जैसे अनेक भारतीय सहयोग के प्रॉजेक्ट से मालदीव के लोगों को सीधा फायदा पहुंच रहा है। रुपे कार्ड जारी किया गया। इससे भारतीय पर्यटकों की संख्या में निस्संदेह, बढ़ोत्तरी होगी।

 रक्षा सहयोग को और मजबूत करने पर चर्चा हुई। दोनों नेताओं ने रक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपना द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए व्यापक वार्ता की। जाहिर है, इससे संबंधित सारी बातें सार्वजनिक नहीं की जा सकतीं। दोनो नेताओ ने माफिलाफुशी में मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल की समग्र प्रशिक्षण संस्थान और तटीय निगरानी रडार प्रणाली का उद्घाटन किया जो मालदीव की समुद्री सुरक्षा को सशक्त करेगा। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सालेह ने भारत द्वारा निर्मित तटीय निगरानी रडार प्रणाली का यहां शनिवार को संयुक्त रूप से उद्घाटन किया। इस रडार प्रणाली का उद्घाटन काफी मायने रखता है, क्योंकि चीन हिंद महासागर में अपनी समुद्री रेशम मार्ग परियोजना के लिए मालदीव को महत्वपूर्ण मानता है। चीन ने इसके लिए श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह और अफ्रीका के पूर्वी छोर पर स्थित जिबूती पर अपना प्रभाव कायम कर लिया है। तटीय निगरानी रडार, एकीकृत तटीय निगरानी प्रणाली के लिए प्राथमिक सेंसर है। दोनों देशों ने भारतीय नौसेना और मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल के बीच ‘व्हाइट शिपिंग’ सूचनाएं साझा करने के लिए एक तकनीकी समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं। ‘वाइट शिपिंग’ समझौते के तहत दो देश एक दूसरे के समुद्री क्षेत्र में वाणिज्यिक जहाजों के बारे में दोनों देशों की नौसेना के बीच सूचना का आदान प्रदान करते हैं।
 
राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद ने प्रधानमंत्री मोदी को एक विशेष कार्यक्रम के तहत विदेशी हस्तियों को दिया जाने वाला मालदीव का सबसे बड़ा सम्मान द मोस्ट ऑनरेलबल ऑर्डर ऑफ द डिस्टिंग्विश रूल ऑफ निशान इज्जुद्दीन से सम्मानित करके भारत के प्रति अपने सम्मान तथा दोस्ती के प्रति ईमानदार भावना का परिचय दिया। इस दौरान जब दोनों नेता गले मिले तो वह दृश्य वाकई अलग था। 

जैसा प्रधानमंत्री ने कहा कि निशान इज्जुदीन का सम्मान मेरा ही नहीं बल्कि दोनों देशों के बीच मित्रता और घनिष्ठ संबंधों का सम्मान है। मैं इसे बड़ी विनम्रता के साथ सभी भारतीयों की ओर से स्वीकार करता हूं। यह ऐसा समय था जब दोनों देशों के संबंधों के अतीत की झलक दिखलाना आवश्यक था। इसी का ध्यान रखते हुए मोदी ने कहा कि हिंद महासागर की लहरों ने हजारों साल से हमें घनिष्ठ संबंधों में बांधा है। 1988 का बाहरी हमला हो या सुनामी जैसी कुदरती आपदा या हाल में पीने के पानी की कमी, भारत हमेशा मालदीव के साथ खड़ा रहा है और मदद के लिए हमेशा आगे आया है। 

उन्होंने पहले मालदीव तथा अब भारत के जनादेश की चर्चा करते हुए कहा कि  मालदीव में राष्ट्रपति और मजलिस के चुनावों के जनादेश से साफ है कि दोनों देशों के लोग स्थिरता और विकास चाहते हैं। ऐसे में लोगों पर केंद्रित और समावेशी विकास तथा सुशासन की हमारी जिम्मेदारी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह सच है कि भारत हमेशा मालदीव के साथ गहरी और मजबूत साझेदारी चाहता है। वास्तव में एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण मालदीव पूरे क्षेत्र के हित में है। मोदी ने वचन देने की शौली में कहा कि हम दोहराना चाहते हैं कि भारत मालदीव की हरसंभव सहायता करने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध है। इससे ज्यादा एक प्रधानमंत्री और क्या कहा सकता है। 

अब आइए संसद के ऐतिहासिक संबोधन की ओर। यहां उन्होंने एक साथ मालदीव और भारत की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक-सभ्ययतागत, भाषायी निकटता के साथ वर्तमान चुनौतियों एवं उसमें भारत की भूमिका का प्रभावी और संवेदनशील चित्रण किया। साथ ही बिना नाम लिए चीन और पाकिस्तान की आतंकवाद एवं कर्ज जाल में फंसाने की नीतियों की कड़ी आलोचना कर मोदी ने वहां से एक बड़ा संदेश दिया है। मोदी ने कहा कि आतंकवाद हमारे समय की एक बड़ी चुनौती है लेकिन दुर्भाग्य है कि लोग अब भी अच्छा आतंकी और बुरा आतंकी का भेद करने की गलती कर रहे हैं। आतंकवाद की चुनौती से निपटने के लिए सभी मानवतावादी शक्तियों का एकजुट होना जरूरी है। ऐसे भाषणों के लिए मोदी औपचारिक विषयों से थोड़ी अलग तैयारी करते हैं। 

संसद के जरिए पूरे मालदीव को मोदी ने संदेश दिया कि हम मित्र हैं और मित्रता में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। भारत की विकास साझेदारी लोगों को सशक्त करने के लिए है, उन्हें कमजोर करने, खुद पर निर्भरता बढ़ाने या भावी पीढ़ियों पर कर्ज का बोझ लादने के लिए नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत मालदीव के हर मुश्किल में, आपके हर प्रयास में, हर घड़ी आपके साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे दर्जनों कार्यक्रम मालदीव के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर रहे हैं। 

यह जहां एक ओर चीन की कुटिल नीति की ओर लक्षित था जिसने मालदीव को भारी कर्ज देकर गहरे संकट में फंसा दिया है वहीं दूसरी ओर भारत की अपने मित्र देश की निःस्वार्थ सहायता करने का सार्वजनिक ऐलान था। अब जरा मोदी का मालदीव का विवरण सुनिए- मालदीव यानी हजार से अधिक द्वीपों की माला, हिंद महासागर का ही नहीं पूरी दुनिया का एक नायाब नगीना है। इसकी असीम सुंदरता और प्राकृतिक संपदा हजारों साल से आकर्षण का केंद्र रही है। प्रकृति की ताकत के सामने मानव के अदम्य साहस का यह देश एक अनूठा उदाहरण है। व्यापार, लोगों और संस्कृति के अनवरत प्रवाह का मालदीव साक्षी रहा है। 

राजधानी माले विशाल नीले समंदर की प्रवेश द्वार रही है। यह स्थायी, शांतिपूर्ण और समृद्धशाली हिंद महासागर की कुंजी भी है। उन्होंने प्रश्न किया कि लोकतंत्र को लेकर मालदीव की सफलता पर सबसे अधिक गर्व और खुशी किसको हो सकती थी? उत्तर स्वाभाविक है- आपके सबसे घनिष्ठ मित्र, आपके सबसे नजदीकी पड़ोसी और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को। उन्होंने जोर देकर कहा कि मालदीव में लोकतंत्र की मजबूती के लिए भारत और हर भारतीय आपके साथ था और साथ रहेगा। मोदी ने कहा कि मेरी सरकार का मूल मंत्र सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व में और खासकर अपने पड़ोस में मेरी सरकार की विदेश नीति का भी आधार है। नेबरहुड फर्स्ट हमारी प्राथमिकता है और इसमें मालदीव की प्राथमिकता बहुत स्वाभाविक है इसलिए आपके बीच मेरी उपस्थिति संयोग मात्र नहीं है। अब भारत और मालदीव की भाषायी और सांस्कृतिक समानता। 

मोदी ने कहा कि वीक को भारत में हफ्ता कहते हैं। मालदीव की भाषा दिबेही में भी दिनों के नाम आदित्य, ओमा जैसे हैं। वर्ल्ड को दिबेही में कहते हैं धुमिये और भारत में दुनिया। मालदीव में दुनिया एक प्रसिद्ध नाम है। भाषा की समानता स्वर्ग और नरक तक फैली है। हर कदम पर साफ है कि हम एक ही गुलशन के फूल हैं इसलिए मालदीव की सांस्कृतिक धरोहर के संवर्धन, दिबेही भाषा के शब्दकोष के विकास जैसी परियोजनाओं में मालदीव को सहयोग देना भारत के लिए महत्व रखते हैं। मोदी की एक बड़ी घोषणा फ्राइडे मस्जिद के संरक्षण में भारत के सहयोग संबंधी थी। कोरल से बनी इस तरह की ऐतिहासिक मस्जिद दुनिया में कहीं नहीं है। मालदीव के लोगों ने सैकड़ों साल पहले इसकी रचना की। 

खेद का विषय है कि आज सामुद्रिक संपदा पर प्रदूषण के बादल छा रहे हैं। ऐसे में इस विलक्षण मस्जिद का संरक्षण इतिहास ही नहीं हमारे पर्यावरण के संरक्षण का संदेश विश्व को देगा। 

मालदीव के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चिंता का कारण है। इसलिए मोदी के संबोधन में यह विषय आना ही था। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन हमारे किसानों को प्रभावित कर रहा है। पिघलते हिमखंड और समुद्र का बढ़ता स्तर मालदीव जैसे देशों के लिए अस्तित्व का खतरा बन गए हैं। 

फिर उन्होंने अध्यक्ष मोहम्मद नसीद की ओर इशारा करते हुए कहा कि आपने समुद्र की गहराई में विश्व की पहली कैबिनेट बैठक करके इन खतरों की ओर संसार का ध्यान खींचा था। इसे कौन भूल सकता है। अपने राष्ट्रपति के काल में नसीद ने ऐसा करके दुनिया का ध्यान समुद्र में बढ़ते जलस्तर के कारण अनेक द्वीपों के डूबने के खतरे की ओर आगाह किया था। इस पर दोनों देश साथ मिलकर काम करेंगे। 

मालदीव भारत के नेतृत्व में बने मालदीव सोलर अलायंस में शामिल हुआ है। बहरहाल, जैसा मोदी ने बताया भारत के सहयोग से माले की सड़कें 2500 एलईडी स्ट्रीट लाइट के दूधिया प्रकाश में नहा रही हैं और 2 लाख एलईडी बल्ब मालदीव के लोगों के घरों और दुकानों को जगमगाने के लिए आ चुके हैं। इससे बिजली बचेगी और खर्च भी। यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है। 

इस तरह मोदी की दोनों देशो की यात्राओं का महत्व समझना कठिन नहीं है। श्रीलंका की कुछ घंटे तथा मालदीव की एक दिवसीय यात्रा के फलितार्थ व्यापक हैं। मालदीव का कार्यक्रम भले व्यस्त था लेकिन इसके पीछे की जबरदस्त तैयारी में बहुआयामी संबंधों को ठोस आधार देने की झलक साफ थी। वास्तव में इस यात्रा से संबंधों का ज्यादा सुदृढ़िकरण हुआ तथा स्वभाविक भाइचारे, दोस्ती और कठिन परिस्थितियों में बिना बुलाए मदद के लिए खड़ा रहने का विश्वास दिलाकर प्रधानमत्री मोदी ने मानवता और भावुकता की आवश्यक दीवार, स्तंभ और रंग-रोगन के साथ स्थिर रिश्तेदारी के भवन को पुनः खड़ा कर दिया। इसके बाद भारत मालदीव के साथ और मालदीव भारत के साथ संबंधों को लेकर निश्चित रह सकता है। 

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)