नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी हमेशा से ही शैक्षणिक गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र रही है. दिल्ली विश्वविद्यालय के नब्बे से अधिक कॉलेज, जवावहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और आईआईटी सहित देश की दर्जनों शिक्षण संस्थाएं यहां पर स्थित हैं जिसके प्राध्यापक और छात्र ना सिर्फ दिल्ली में बल्कि देश में रायशुमारी करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. इस तबके पर पारंपरिक तौर पर वामपंथियों का कब्जा रहा है लेकिन पिछले पांच सालों में मोदी सरकार बनने के बाद ये वर्चस्व भी टूटा है. चुनाव में भी इनकी भागीदारी दिखाई देती है. पिछली बार दिल्ली से जेएनयू के प्रफेसर आनंद कुमार लोकसभा चुनाव लड़े थे. दिल्ली विश्वविद्यालय के हरीश खन्ना तो विधायक बन गए थे.

लेकिन इस बार के लोकसभा चुनावों में प्राध्यापकों और छात्रों के बीच बीजेपी समर्थक समूह बाजी मारते नजर आ रहे हैं. मोदी समर्थक कुछ प्राध्यापकों ने दो महीने पहले एक अभियान शुरू किया गया . इसका उद्देश्य के चिंतक वर्ग जिसमें प्रोफेसर, शोधार्थी, विचारक, स्तंभकार आदि शामिल थे, उनको इस अभियान से जोड़ना था और देश के प्रबुद्ध वर्ग के बीच एक समझ पैदा करनी थी कि नरेंद्र मोदी ही देश में उपलब्ध सबसे बेहतर विकल्प हैं. 

 पांच मार्च को राजधानी दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के करीब 30 प्रोफेसरों ने मिल कर एक अभियान शुरू किया जो बुद्धिजीवी समुदाय में मोदी सरकार के मायने और मोदी सरकार के काम से आये बदलाव को लेकर गुणवत्ता पूर्ण बहस शुरू करने और इस वर्ग में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए शुरू किया है। इस अभियान से जुड़े लोगों का मानना है कि विगत 5 वर्ष में मोदी ने बहुत ही अच्छे काम किए हैं और इस वजह से उन्हें एक और मौका मिलना चाहिए |

नरेन्द्र मोदी के समर्थन में शुरु किए गए इस अभियान के सूत्रधारों का कहना है कि अगर मोदी के विरोध में प्रबुद्ध समाज का एक हिस्सा कुछ कारणों से खड़ा हो सकता है तो वहीं उन लोगों को जिनको ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी ने 5 वर्ष में कई अच्छे काम किए हैं, उन्हें आगे आना चाहिए और ऐसे लोगों को नरेंद्र मोदी के समर्थन में अभियान चलाकर प्रबुद्ध समाज के लोगों को समझाना चाहिए। 

अभियान की कोर कमेटी के लोगों ने बताया कि जब नरेंद्र मोदी ने पांच साल पहले प्रधानमंत्री का पद स्वीकार किया, तब देश ने भ्रष्टाचार के खिलाफ और एक विकास मॉडल के लिए निश्चित रूप से मतदान किया था। मोदी एक निर्णायक, दूरदर्शी और साफ-सुथरी सरकार का प्रतिनिधित्व करते आए हैं और 2019 में, पुनः एक निर्णायक, दूरदर्शी और साफ-सुथरी सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए मोदी जैसे प्रधानमंत्री की आवश्यकता है। 

पीएम मोदी के समर्थन में चले भियान के तहत अब तक देश के अलग-अलग हिस्सों में 250 से अधिक छोटी-छोटी बैठकें आयोजित की गई जिसमें सैकड़ों प्राध्यापकों और शोध छात्रों ने हिस्सा लिया. युवा शोधार्थियों और प्राध्यापकों के लिए निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमें सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया. अभियान की वेबसाइट पर नियमित रूप से लेख प्रकाशित होते रहते हैं. मार्च के अंत तक पंद्रह सौ से अधिक चिंतक, विचारक और प्राध्यापक जुड़ चुके थे जो आंकड़ा अब दो हजार पार कर चुका है. 

इस अभियान को चलाने वालों के अनुसार विपक्षी दलों और उनके समर्थक संगठनों ने असहिष्णुता, अवॉर्ड वापसी, रोहित वेमुला, गोरक्षक आदि के जुमले गढ़कर मोदी को बदनाम करने की कोशिश की की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। जिस सरकार में अनुसूचित जाति के विधायकों और सांसदों की अधिकतम संख्या है, एसटी और ओबीसी समुदाय के वर्गों के लिए बैकलॉग प्रविष्टी को मंजूरी दी और महिलाओं को सभी नीति निर्माणों का केंद्र बनाया और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने वाली सरकार को 'अल्पसंख्यक-विरोधी', 'दलित-विरोधी' और 'महिला-विरोधी' बताया। 

इस अभियान से शुरुआत से जुड़ी एक संस्कृति रक्षक संस्था ने बताया कि किसी एक मुद्दे को लगातार उठाने और उस पर तेजी से आगे बढ़ने से विपक्ष उन लोगों के बीच संदेह और अस्थिरता की भावना पैदा करने का प्रयास करता है जो प्रधानमंत्री में विश्वास करते हैं। विपक्ष के पास चर्चा करने के लिए कोई विचार नहीं है,  इसी वजह से वह कई असंबंधित चीजों को जोड़कर महज गड़बड़ी पैदा करना चाहता है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्थन देने के लिए हमने प्रबुद्ध लोगों का यह अभियान शुरू किया है। 

आज  नमो अभियान के तहत उससे जुड़े लोग विभिन्न प्रांतों और शहरों के शिक्षण संस्थानों में मोदी सरकार के कार्यकाल में आये ऐतिहासिक परिवर्तन को अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित कर रहे हैं। इस अभियान में प्रबुद्ध समाज से जुड़ा हर वर्ग जैसे... प्रोफेसर, चिंतक, विचारक, स्तंभकार आदि वर्गों से अपील की जा रही है कि वो मोदी के पक्ष में बोलें, लिखें और लोगों को समझाएं | इस अभियान से जुड़े एक प्रोफेसर का कहना था कि अगर मोदी ही एजेंडा बन गए हैं तो क्यों न उनके समर्थन में प्रबुद्ध समाज के लोग खड़े हो जाएं, क्योंकि प्रबुद्ध समाज के लोग समाज के आगे मशाल लेकर चलते हैं और रास्ता दिखाते हैं | 

बुद्धिजीवियों के इस अभियान को लोगों का जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ है। यही नहीं इस पहल को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी बेहद उत्साहित है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने 25 मार्च को इसे अपनी वेबसाइट पर स्थान दिया।इससे पहले सोशल मीडिया पर यह अभियान ट्रेंड करता रहा है। उम्मीद की जा रही है कि दिल्ली की सीटों पर इस समूह का जबरदस्त प्रभाव दिखेगा.