मन तड़पत हरि दर्शन को आज...... फिल्म बैजू बावरा का यह गीत आज भी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में गाए गीतों में सबसे अद्भुत और भावपूर्ण है। इसके गायक थे ‘फीको’, जिन्हें दुनिया मोहम्मद रफी के नाम से जानती है। मखमली आवाज वाले रफी साहब का दिल इतना नर्म था कि वह कई वर्षों तक अपने पड़ोस में रहने वाली बेसहारा विधवा को नकली नाम से मनीऑर्डर भेजते रहे। यह सिलसिला तब खत्म हुआ जब एक बार मनीऑर्डर तय समय पर नहीं पहुंचा और वह महिला पोस्ट ऑफिस पहुंची। तब उसे पता चला कि पैसे भेजने वाले शख्स खुद मोहम्मद रफी थे, जिनका अब देहांत हो गया है।
ऐसे सोने के दिल वाले रफी साहब के जन्मदिन पर सारे संगीतप्रेमियों को माय नेशन की ओर से एक भावभीनी सुरीली बधाई :-
24 दिसंबर का दिन भारतीय संगीत के इतिहास में दर्ज रहेगा। क्योंकि आज से 94(चौरानबे) साल पहले सन् 1924 को इसी दिन सुरों के सरताज मोहम्मद रफी का जन्म हुआ था।
बचपन में ‘फीको’ के नाम से पुकारे जाने वाले रफी साहब का जन्म आजादी से पहले के अविभाजित पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था।
उनके पिता हाजी अली 1935 में लाहौर चले गए और नाई की दुकान खोल ली। इसी दुकान में मोहम्मद रफी भी नौकरी किया करते थे। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि आने वाले समय में वह इतने बड़े गायक बनेंगे।
कहा जाता है कि मोहम्मद रफी की प्रतिभा को बचपन में एक संन्यासी ने पहचाना था और भविष्यवाणी की थी कि एक दिन तुम्हारी आवाज पूरी दुनिया में गूंजेगी। वक्त इस बात का गवाह है कि उस संन्यासी की जिव्हा से निकला वचन शत प्रतिशत सही साबित हुआ।
रफी साहब ने अपनी मधुर आवाज से पूरे 35(पैंतीस) साल तक बॉलीवुड पर राज किया। उन्होंने 18 भाषाओं में 4516(चार हजार पांच सौ सोलह) गीत गाए। जिसमें 112 गैर हिंदी फिल्मी गाने भी हैं।
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रफी के करियर की शुरुआत की कहानी बेहद दिलचस्प है। एक बार उनके बड़े भाई हमीद रफी साहब को अपने साथ लेकर महान गायक कुंदन लाल सहगल के कार्यक्रम में गए। लेकिन वहां बिजली नहीं थी जिसकी वजह से सहगल साहब गा नहीं पा रहे थे।
नाराज होकर भीड़ शोरगुल मचाने लगी। तभी रफी स्टेज पर खड़े होकर गाने लगे। पूरे हॉल में शांति छा गई। लोग मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनने लगे। श्रोताओं की भीड़ में मशहूर संगीतकार श्यामसुंदर भी थे। जिन्होंने रफी की आवाज से प्रभावित होकर उन्हें मुंबई आने का न्यौता दे दिया।
जिसके बाद दोनो भाई मुंबई पहुंचे जहां हफ्तों संघर्ष करने के बाद उनकी मुलाकात श्यामसुंदर से हुई। जिन्होंने पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ में उन्हें गाने का मौका दिया। रफी ने अपना पहला हिंदी गाना फिल्म ‘गांव की गोरी’ के लिए गाया। जिसके बाद उनकी आवाज का जादू सभी के सर चढ़कर बोलने लगा।
उन्हें 1967 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्हें फिल्म ‘नील कमल’ में गाए अपने गाने (बाबुल की दुआएं लेती जा) के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिला। खास बात यह है कि जिस दिन इस गीत की रिकॉर्डिंग हुई, उसके एक ही दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी। जिसे लेकर रफी साहब बेहद भावुक थे। उनकी यह भावनाएं इस गीत में छलक पड़ीं। आज भी इस गीत को सुनने वाले बेटी की विदाई से संबंधित इसके भावों में डूब जाते हैं।
मोहम्मद रफी अद्भुत प्रतिभावान थे। वह हर तरह के गाने गा सकते थे। चाहे वह फिल्म ‘प्यासा’ में गुरुदत्त का दुनिया से बेजार वाली भूमिका हो, जिसके लिए उन्होंने ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हो....’ गाया। या फिर फिल्म ‘प्रिंस’ में शम्मी कपूर के लिए छेड़छाड़ भरा गीत ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए....’। मोहम्मद रफी ने सिर्फ नायकों के लिए नहीं जॉनी वाकर जैसे कॉमेडियन के लिए भी फिल्म प्यासा में ‘सर जो तेरा चकराए....’ जैसा शरारती गाना गाया।
वह जो भी गीत गाते थे उसके चरित्र में पूरी तरह ढल जाते थे।
रफी साहब पूरी तरह पारिवारिक व्यक्ति थे। उनकी शादी 20 साल की उम्र में बिल्किस बानो से हुई थी। रफी और बिल्किस के छह बेटे-बेटियां थे।
हाल ही में उनकी बेटी यास्मीन की एक किताब ‘मोहम्मद रफी मेरे अब्बा..’ नाम की किताब में खुलासा हुआ कि 13 साल की उम्र में रफी साहब की एक और शादी बशीरन बेगम से हुई थी। जिनसे बाद में उनका तलाक हो गया था। इन दोनों का एक बेटा सईद भी था।
रफी साहब ने विभाजन की त्रासदी देखी थी। उनपर पाकिस्तान में बसने के लिए बहुत ज्यादा दबाव था, लेकिन उन्होंने हिंदुस्तान की सरजमीं छोड़ना कभी पसंद नहीं किया।
वह बेहद सरल और सहज व्यक्ति थे। उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है कि जब वह ब्रिटेन को कोवेन्ट्री शहर में स्टेज शो के लिए गए थे तो उन्हें वहां का खाना पसंद नहीं आया। तब रफी साहब मात्र दाल चावल और चटनी खाने के लिए तीन घंटे यात्रा करके लंदन अपनी बेटी के घर पहुंच गए।
रफी पतंगबाजी के बेहद शौकीन व्यक्ति थे। वह जब भी रिकॉर्डिंग से छुट्टी पाते तुरंत अपनी छत पर पतंग उड़ाने पहुंच जाया करते थे। उनके इस शौक में साथ देते थे उनके साथी गायक और पड़ोसी मन्ना डे। जिनसे उनकी दोस्ती मशहूर थी।
रफी साहब की उदारता के बारे में कई किस्से मशहूर हैं। जिसमें से सबसे अहम विधवा पड़ोसी को बिना अपना नाम बताए हर महीने मदद देने की कहानी उपर बताई जा चुकी है। उन्होंने कभी पैसे के लिए काम नहीं किया। कई बार तो उन्होंने अपने काम के लिए मात्र एक रुपए का सांकेतिक मेहनताना स्वीकार किया। उनका दरवाजा सबकी मदद के लिए खुला होता था।
वह लोगों को दावतें देने के बेहद शौकीन थे। अक्सर उनके मित्र लजीज खाने का लुत्फ लेने के लिए रफी साहब के घर जमघट लगाते थे।
ऐसे हरदिल अजीज मोहम्मद रफी का देहांत भी साधारण तरीके से नहीं हुआ। वह पवित्र रमजान के महीने में जन्नतनशीं हुए। उस वक्त बारिश हो रही थी लेकिन उनके जनाजे में हजारों लोगों की भीड़ मौजूद थी।
आज भी रफी साहब की गायकी हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है। वह हमेशा नई प्रतिभाओं को प्रेरणा देते रहेंगे।
आज उनके जन्मदिन पर दुनियाभर के संगीतप्रेमियों को माय नेशन की ओर से एक भावभीनी सुरीली बधाई।
Last Updated Dec 24, 2018, 3:06 PM IST