किसी साम्राज्य के लिए अपनी असफलताओं का प्रचार इस विश्वास के साथ करना कि जनता बेहद आभारी होगी, के लिए असाधारण दंभ की जरूरत पड़ती है। ऐसे में यदि नेहरू-गांधी परिवार पर उसकी साधारण सोच का आरोप लगाना कि सत्ता पर काबिज रहना उसका हक है, उचित नहीं है।

देश के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार ने किस तरह उस क्षेत्र को नजरअंदाज किया है जिसने लगातार उन्हें सत्ता में बैठाने का काम किया है। अमेठी इसका जीता जागता उदाहरण है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में प्रति व्यक्ति आय 15,559 रुपये है जबकि देश के सबसे गरीब राज्य उत्तर प्रदेश में औसत प्रति व्यक्ति आय 26,698 रुपये है। वहीं प्रति व्यक्ति आय का राष्ट्रीय औसत 74,193 रुपये है। ये सभी आंकड़े 2014-15 के हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले महज 37.2 फीसदी घरों तक बिजली पहुंची थी।

लोकसभा चुनाव 2014 में राहुल गांधी महज 1.07 लाख वोट से जीते थे जबकि स्मृति ईरानी को अमेठी में प्रचार करने के लिए महज 20 दिन का समय मिला था. इतने कम समय में भी स्मृति ने राहुल को 2009 में मिली 3.7 लाख वोट की जीत को लगभग तीन-चौथाई कम कर दिया.

आगामी चुनावों में उम्मीद है कि राहुल गांधी अमेठी में अपने वर्चस्व गंवाने जा रहे हैं. इसका आभास राहुल गांधी को अमेठी में बंद पड़ी फैक्ट्रियों और अधूरे वादों को दर्शाते शिलान्यासों से हो चुका होगा. इसीलिए वह केरल में वायनाड की सुरक्षित समझी जाने वाली सीट के जरिए राजनीति में कायम रहने की कवायद कर रहे हैं.

अब जब अमेठी से राहुल ने बुधवार और स्मृति ने गुरुवार को अपना नामांकन दाखिल कर दिया है- ये हैं 6 कारण क्यों अमेठी में राहुल गांधी एक करारी हार देखने जा रहे हैं.

1.    नहीं हो पाएगी वोटों की खरीद-फरोख्त

'माय नेशन' ने अमेठी के कई लोगों से बातचीत की। लोगों का कहना है कि चुनाव से पहले अमेठी में टैंकर में भरकर रुपया लाने का काम किया जाता है। कांग्रेस पार्टी ने अपने इस किले में वोट खरीदकर अपने नेता को जिताने का काम पूर्व में किया है।

लेकिन मौजूदा समय में राज्य में योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार और केंद्र में मोदी सरकार ने वित्तीय नेटवर्क पर पहरा बैठा रखा है। इसके अलावा चुनाव आयोग भी ऐसी किसी कोशिश को रोकने के लिए चुस्त है। गौरतलब है कि ड्रग्स कार्टेल के जरिए अमेठी में चुनाव का फंड लाने का काम होता रहा है लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी सख्त पहरे के चलते इस फंड को लाने में सफल नहीं होगी।

सूत्रों का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एक सहयोगी और परिवार के बेहद करीबी की जिम्मेदारी अमेठी में चुनावों से पहले पैसा ले जाने और बांटकर वोट खरीदने की रहती है। हालांकि इस बार राज्य सरकार, केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ऐसी किसी कोशिश को नाकाम करने के लिए तत्पर है। वहीं हाल में कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए कुछ नेताओं ने भी चुनाव से पहले वोट खरीदने की बारीकियों को साझा किया है जिससे ऐसी किसी कोशिश पर लगाम लगाया जा सके।

2.    स्मृति ने 5 साल किया काम

बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने 'माय नेशन' को बताया कि 2014 के चुनावों में उन्हें महज 20 दिन का समय प्रचार के लिए मिला था। इसके बावजूद उन्होंने कांग्रेस के वोट को बड़ा झटका दिया था। स्मृति ने बताया कि इसका सबूत है कि 2014 के बाद विधानसभा और लोकल चुनावों में राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा है। वहीं पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अमेठी की 5 सीटों में 4 पर कब्जा कर लिया।

खास बात है कि जिस लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी की मौजूदगी भी नहीं थी वहां बीते पांच साल के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं का दबदबा रहा है। जहां अमित शाह ने पार्टी के ढांचे को मजबूत किया है वहीं लगभग प्रत्येक महीने अमेठी का दौरा करने वाली स्मृति ने राहुल गांधी को कांग्रेस के इस किले से उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ काम किया है।

3.    बंट रहा है मुसलमानों का वोट

अमेठी में कांग्रेस को मुसलमान वोट बैंक का सबसे बड़ा सहारा है, लेकिन आगामी चुनावों में इस वोट बैंक में सेंध लगने जा रही है। पूर्व कांग्रेसी नेता और हाजी मोहम्मद हारूद रशीद ने कांग्रेस का दामन छोड़कर राहुल गांधी के खिलाफ मैदान में उतरने का फैसला किया है। गौरतलब है कि पूर्व में हारूद रशीद के पिता ने सोनिया गांधी और राजीव गांधी के लिए नामांकन प्रक्रिया में अहम भूमिका अदा करते हुए क्षेत्रीय स्तर पर कांग्रेस को जीत दिलाने में मदद की थी।

माना जा रहा है कि हारूद रशीद को कुछ समाजवादी पार्टी के समर्थकों की मदद मिल रही है और उम्मीद की जा रही है कि वह कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल होंगे और राहुल गांधी कमजोर होंगे।

4.    कांग्रेस ने किया नजरअंदाज

दशकों से बंद पड़ी फैक्ट्रियों और अधूरी पड़ी योजनाओं से साफ पता चलता है कि बीते दशकों के दौरान किस तरह अमेठी को नजरअंदाज किया गया है। अमेठी में पुरुष साक्षरता दर 64.6 फीसदी है और महिला साक्षरता दर 53,5 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर पुरुष-महिला साक्षरता की औसत दर 74 फीसदी है. वहीं मनरेगा के तहत महज 1.5 फीसदी परिवारों का जॉब कार्ड बना है जिन्हें अमेठी और रायबरेली में कम से कम 100 दिन का रोजगार दिया गया।

स्मृति ईरानी ने 'माय नेशन' को दिए इंटरव्यू में कहा कि अमेठी में कैप्टन सतीश शर्मा के नाम पर शिलान्यास लगे हैं लेकिन बीते 15 साल के दौरान सांसद रहते हुए राहुल गांधी ने इनकी सुध नहीं ली, जबकि इसमें 10 साल के दौरान केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता पर काबिज रही।

5.    अमेठी को स्मृति और केन्द्र सरकार से क्या मिला

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी की आयुष्मान भारत योजना का मजाक उड़ाया है। आयुष्मान भारत दुनिया का सबसे बड़ा हेल्थकेयर प्रोग्राम है और अब अमेठी के 1.75 लाख परिवारों को योजना के तहत फायदा पहुंचा है। इसके अलावा केन्द्र सरकार की सौभाग्य विद्युतीकरण योजना अमेठी में 100 फीसदी सफलता प्राप्त कर चुकी है। वहीं अमेठी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजनाओं के तहत घर और शौचालय निर्माण का काम पूरा किया जा चुका है। केंद्र सरकार की कोशिशों के चलते अमेठी को अपना पहला कृषि विज्ञान केंद्र मिल चुका है और सॉयल टेस्टिंग लैब के साथ पांच साल के दौरान पहली बार फर्टिलाइजर रेक दिया गया है। इसके शीर्ष पर अमेठी में एके-47 की फैक्ट्री स्थापित हो चुकी है।

6.    यूपी में बीजेपी सरकार

बीजेपी इस बात को मानें या न माने लेकिन यह एक सच्चाई है कि राज्य में बीजेपी सरकार के चलते उसे फायदा पहुंच रहा है। वहीं कांग्रेस के मित्र दलों बीएसपी और समाजवादी पार्टी ने गांधी परिवार के सामने अमेठी और रायबरेली में कोई मुकाबला नहीं खड़ा किया है। वहीं प्रशासन इस बार पहले से अधिक चुस्त है और किसी तरह की गड़बड़ी की गुजाइंश बेहद कम है। वहीं राहुल गांधी को भी यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है इसलिए वह अमेठी में हार को स्वीकार कर 2000 किलीमीटर की दूरी पर स्थित केरल के वायनाड में जीत से आस लगा रहे हैं।

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