यह तर्क तो गले नहीं उतरता कि राजनीति में जो दिवंगत हो गए उनके कार्य और व्यवहार की चुनाव में चर्चा नहीं होनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैसे ही राजीव गांधी के नाम पर चुनाव लड़ने के साथ उन पर आईएनएस विराट का छुट्टी मनाने के लिए उपयोग करने तथा बोफोर्स का जिक्र किया उसके विरोध में यही तर्क दिया जा रहा है।
नई दिल्ली: हर देश में मृत या जीवित नेताओं की नीतियों, उनके सरकारी और निजी व्यवहार राजनीति में मुद्दा बनते हैं। स्वयं कांग्रेस पार्टी प. जवाहरलाल नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के योगदान की चर्चा करते हुए कहती है कि हमारी पार्टी के इन महान नेताओं ने देश को यहां तक पहुंचाया है।
जब आप उनकी यशोगाथा गाएंगे तो विपक्ष उनकी कमियां गिनाएगा। यह एक स्वाभाविक स्थिति है। जो चले गए उनकी चर्चा ही नहीं हो यह एक अलोकतांत्रिक और कुंठाजनित सोच है। हमारे देश में कुछ दिवंगत नेताओं को लेकर ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि उनकी आलोचना आप कर ही नहीं सकते। क्यों नहीं कर सकते?
आज भी विनायक दामोदर सावरकर से लेकर डॉ. हेडगेवार, गुरु गोलवलकर तक के बारे में कैसे-कैसे शब्द प्रयोग किए जाते हैं यह छिपा नहीं है। आखिर ये सब भी एक बड़े तबके के लिए महापुरुष हैं। क्या चौधरी चरण सिंह और राजनाराण जी की चर्चा जनता पार्टी सरकार के गिराने के संदर्भ में नहीं होती है? क्या रुस में आज लेनिन, स्टालिन से लेकर ख्रुश्चेव, बोरिस येल्त्सिन तक की आलोचना नहीं होती? खूब होती है। अमेरिका में केनेडी से लेकर रोनाल्ड रेगन की चर्चा होती है।
कांग्रेस पार्टी का आचरण तो वैसे भी विचित्र है। नेहरु, इंदिरा और राजीव की आलोचना हो तो पूरी पार्टी उनके बचाव में आ जाती है। वही आप नरसिंह राव की आलोचना कर दीजिए तो लगेगा ही नहीं कि वे कांग्रेस के सफल प्रधानमंत्री थे। यहां तक कि लालबहादूर शास्त्री की भी आलोचना पर शोर नहीं मचता। आजकल तो सरदार वल्लभभाई पटेल को दक्षिणपंथी कहकर आलोचना हो रही है और कांग्रेस उनके पक्ष में खड़ी नहीं होती।
इससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस मतलब एक वंश की थाती। आप मोदी के समर्थक हों या विरोध थोड़ी देर के लिए तटस्थ होकर देखिए, उनके लिए जितने गंदे, छोटे और यहां तक कि अपशब्दों तक का प्रयोग हुआ उतना किसी नेता के लिए कभी नहीं हुआ। दूसरे, जब आप लगातार चौकीदार चोर है का नारा लगाएंगे, सभी भगोड़ो आर्थिक अपराधियों को उनका दोस्त कहेंगे तो उसको जवाब देना होगा। यह राजनीति है, संन्यास आश्रम नहीं।
नरेन्द्र मोदी ने जवाबी हमले में आईएनएस विराट एवं बोफोर्स दलाली प्रकरण तथा 1984 के दंगों को उछाला है। इनमें 1984 एवं बोफोर्स पर तो काफी चर्चा हुई, आईएनएस विराट की नहीं। इसलिए हम उसी पर केन्द्रित करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने दिसंबर 1987- जनवरी 1988 में लक्षद्वीप में राजीव गांधी के परिवार, ससुराल परिवार, अमिताभ बच्चन परिवार के अलावा अन्य दोस्तों के साथ दस दिनों की छुट्टियों के लिए आईएनएस विराट में यात्रा तथा नौसेना के इस्तेमाल का आरोप लगाया है।
हालांकि राजीव गांधी की रक्षा में पूर्व नौसेना प्रमख ऐडमिरल एल. रामदास उतर गए हैं। उन्होंने कहा कि वाइस ऐडमिरल पसरीचा- तत्कालीन कैप्टन और कमांडिंग ऑफिसर, ऐडमिरल अरुण प्रकाश- कमांडिंग आईएनएस विंध्यगिरी, जो आईएनएस विराट के साथ चल रहा था और उप नौसेना प्रमख मदनजीत सिंह- आईएनएस गंगा के कमांडिंग ऑफिसर की लिखित प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह जानकारी दे रहे हैं कि राजीव गांधी वहां छुट्टियां मनाने नहीं गए थे और उनके साथ कोई विदेशी भी नहीं था। उन्होंने उस समय लक्षद्वीप आईलैंड्स के नेवल ऑफिसर इन चार्ज के नोट से भी इनपुट लिया है।
एडमिरल रामदास के अनुसार प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी त्रिवेंद्रम से लक्षद्वीप जाने के लिए आईएनएस विराट पर सवार हुए थे। प्रधानमंत्री त्रिवेंद्रम में राष्ट्रीय खेलों के पुरस्कार वितरण के मुख्य अतिथि थे। वह सरकारी कार्यक्रम से लक्षद्वीप जा रहे थे। वहां उन्हें आईलैंड्स डिवेलपमेंट अथॉरिटी की बैठक की अध्यक्षता करनी थी। यह बैठक लक्षद्वीप और अंडमान में बारी-बारी से होती है। मैं बतौर फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ दक्षिण नौसेना कमान (कोच्चि) भी विराट पर सवार हुआ। फ्लीट एक्सरसाइज के तहत विराट के साथ चार और जहाज भी साथ थे। विराट पर उनके लिए डिनर रखा गया था। इसके अलावा विराट पर या उस समय किसी दूसरी शिप पर अन्य कोई भी पार्टी नहीं हुई थी।
ध्यान रखिए, बयान में कहा गया है कि निश्चित तौर पर हेलिकॉप्टर से वह शॉर्ट ट्रिप्स पर आईलैंड्स भी गए थे, जहां वह स्थानीय अधिकारियों और लोगों से मिले थे। केवल राजीव और सोनिया हेलिकॉप्टर से किनारे पर गए थे और राहुल कभी उनके साथ नहीं गए। आखिरी दिन बंगाराम पर उनकी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए नौसेना के कुछ गोताखोरों को भी भेजा गया था। वेस्टर्न फ्लीट ने सालाना अभ्यास कार्यक्रम में काफी पहले ही विमानवाहक पोत के साथ अरब सागर में अभ्यास की योजना बनाई थी। यह अधिकारियों और दूसरे लोगों के लिए अपने प्रधानमंत्री से संवाद करने का भी मौका था। कोई भी जहाज गांधी परिवार के निजी इस्तेमाल के लिए डायवर्ट नहीं किया गया था। केवल एक छोटा हेलिकॉप्टर पीएम और उनकी पत्नी की इमर्जेंसी मेडिकल जरूरतों को पूरा करने के लिए कावारत्ती गया था।
अब इस बयान में ही कई झोल हैं। वे बंगाराम द्वीप पर गए और उनकी सुरक्षा के लिए नौसेना के कुछ गोताखारों को लगाया गया था। यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि नौसेना ने अपने रिकॉर्ड में सरकारी कार्यक्रम लिखा होगा। जिसकी वैधानिक अनुमति नहीं होती उसके लिए सरकारी अधिकारी इसी तरह रास्ता निकालते हैं।
प्रश्न है कि 10 दिनों तक वहां कौन सा कार्यकम चला था जिसके लिए प्रधानमंत्री को रुकने की आवश्यकता थी? बंगाराम पर गोताखोरों को क्यों तैनात किया गया था? वहां कौन सा सरकारी कार्यक्रम था। इन नौसेना अधिकारियों के विपरीत दूसरे नौसेना अधिकारी सामने आ गए हैं जिन्होंने कहा है कि राजीव गांधी परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों के साथ छुट्टियां मनाने गए थे और आईएनएस विराट का इस्तेमाल हुआ था।
इनमें मुख्य नाम पूर्व नौसेना कमांडर वी. के. जेटली का है जिन्होंने कहा है कि मैं उस समय आईएनएस विराट पर तैनात था। मैं गवाह हूं कि राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने आईएनएस विराट का इस्तेमाल बंगाराम द्वीप पर छुट्टियां मनाने के लिए किया गया था। एडमिरल रामदास लंबे समय से भाजपा और मोदी विरोधी मुहिम में शामिल हैं। जिन पूर्व सैन्य अधिकारियों ने राष्ट्रपति से पत्र लिखकर आग्रह किया था कि चुनाव में सेना का उपयोग न हो उनमें वे और अन्य शामिल थे। वे आम आदमी पार्टी में भी थे। हालांकि यह उनका राजनीतिक विचार है और किसी दल के साथ रहने या किसी दल का समर्थन करने का उनका अधिकार है।
किंतु जिस तेजी से वे इस विवाद में कूदे वइ असामान्य है। आखिर इतना बचाव करने की उनको जरुरत क्यों पड़ी? राजीव गांधी की वह यात्रा गोपनीय नहीं थी। हर दिन मीडिया से उस समय यही खबर आ रही थी कि राजीव गांधी अपने परिवार, रिश्तेदार एवं मित्रों के साथ छुट्टियां मना रहे हैं। उस समय का समाचार पत्र उठा लीजिए आपको पता चल जाएगा। आज अचानक वह सरकारी दौरा हो गया! विचित्र है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि नेताओं या अधिकारियों को सुविधायें प्रदान करने के लिए इसके साथ सरकारी दौरा जोड़ा जाता है। यही उस समय भी हुआ होगा।
इंडिया टुडे 31 जनवरी 1988 की अपनी रिपोर्ट पर आज भी कायम है जिसमें इसका विवरण है। नए साल का जश्न मनाने राजीव गांधी खूबसूरत बंगाराम द्वीप पर गए यह सच है। उसके साथ कोई सरकारी कार्यकम जोड़ दिया गया इससे सच खत्म नहीं हो जाता।
ध्यान रखिए, बाद में इंडिया टुडे ने नवंबर 2013 में भी तस्वीरों के साथ सिलसिलेवार ढंग से राजीव के उस पिकनिक या छुट्टी के बारे में बताया था। इस दौरान राजीव गांधी, सोनिया गांधी, दोनों के बच्चे- राहुल और प्रियंका व उनके 4 दोस्त, राजीव गांधी की साली और उनके साढ़ू, राजीव की सास आर माइनो के अलावा सोनिया के भाई और मामा साथ थे। अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, उनके दोनों बच्चों के अलावा भाई अजिताभ की बेटी भी शामिल थीं। राजीव गांधी के मित्र अरुण सिंह के भाई बिजेंद्र सिंह और 2 विदेशी मेहमान भी उसमें शामिल हुए थे। गांधी परिवार का ख्याल रखने के लिए दिल्ली से उनका निजी रसोइया भी बंगाराम द्वीप गया था।
आईएनएस विराट 10 दिनों के लिए अरब सागर में खड़ा रहा। उस समय समाचारों में इसका जिक्र था कि परिवार को ले जाने के लिए आईएनएस विराट का इस्तेमाल हुआ था। कई ओर से तब आपत्तियां भी उठाईं गईं थी। 6 जनवरी को छुट्टी खत्म हुई थी।
अगर रामदास बचाव में आए हैं तो उन्हें बताना चाहिए कि उस द्वीप के पास विराट दस दिनों तक क्यों खड़ा रहा? जो अधिकारी गवाही देने को तैयार हैं कि छुट्टियां मनाईं गईं उनके बारे में ये क्या कहेंगे? सच सच है। अनेक पत्रकार और छायाकार तब वहां पहुंच गए थे लेकिन किसी को भी उनके आसपास जाने की इजाजत नहीं थी। एक समाचार पत्र के कैमरामैन ने दूर से तस्वीर लिया तो उसकी पिटाई भी हो गई।
उस समय किसी ने नहीं कहा था कि यह छुट्टी नहीं सरकारी कार्यक्रम है। पूरा भारत यही मानता रहा कि हमारे प्रधानमंत्री राजीव गांधी वहां छुट्टियां मना रहे हैं। सच यही है कि आईएनएस विराट और नौसेना तथा अन्य सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग खुलकर हुआ। भारत में सत्ताधारियों के द्वारा ऐसा प्रायः होता रहा है। देश को सच जानकर फैसला करना चाहिए और सच सामने है।
अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)
Last Updated May 13, 2019, 12:01 PM IST