प्रियंका वाड्रा की सियासी पारी यूपी के लखनऊ से शुरू हो गई है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में दिख रहे उत्साह को समझा जा सकता है। 2014 के चुनाव में महज दो सीटें जीतने के बाद प्रियंका में ही सियासी सफलता दिलाने का संभावना देख रहे थे। कइयों को प्रियंका उनकी दादी और पूर्व  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह नजर आ रही हैं।

प्रियंका को लेकर कांग्रेसियों के उत्साह का आलम यह है कि कुछ लोग गुलाबी कलर के जंपशूट में 'प्रियंका ब्रिगेड' के रूप में नजर आ रहे हैं। 'माय नेशन' बता रहा है प्रियंका के यूपी और राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण के  संभावित परिणामों के बारे में। 

राहुल गांधी पर असर

प्रियंका की सियासी पारी का सबसे पहला असर राहुल गांधी पर पड़ने वाला है। भले ही कांग्रेस ने हाल में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव जीते हैं लेकिन इनमें राहुल की राजनीतिक कुशलता से ज्यादा सत्ता विरोधी लहर ज्यादा नजर आती है। राहुल की अगुवाई में कांग्रेस ने कई सियासी मोर्चों पर मुंह की खाई है। 

प्रियंका गांधी वाड्रा को सियासत में उतारने का फैसला कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए लिया गया नजर आता है। पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि उसका यूपी से पूरी तरह सफाया न हो। कांग्रेस खुद को भाजपा के सांगठनिक कौशल और मायावती-अखिलेश के मजबूत जातीय महागठबंधन के बीच में फंसा देख रही है। 

'माय नेशन' पहले ही प्रियंका के राजनीति में उतरने से राहुल गांधी के बैकसीट चले जाने का अनुमान व्यक्त कर चुका है। पार्टी काडर का जोर यह सुनिश्चित करने पर है कि एक सियासी तौर पर सक्रिय बना रहे। हालांकि ऐसे में दूसरे के पीछे जाने की पूरी आशंका है।

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कांग्रेस को नुकसान

यूपी में प्रियंका के प्रचार से कांग्रेस के वोट बैंक में होने वाले इजाफे का असर कांग्रेस और महागठबंधन दोनों पर हो सकता है। यह विपक्ष के वोटबैंक में बिखराव पैदा करेगा। विपक्षी वोटों का बंटना कड़े मुकाबले वाली सीटों पर भाजपा को मदद कर सकता है।  

कांग्रेस के सपा-बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाएं भले ही खत्म हो चुकी हैं, लेकिन अभी इन्हें पूरी तरह खारिज करना जल्दबाजी होगी। यूपी में कांग्रेस के मजबूत होने की संभावना को देखते हुए मायावती और अखिलेश उसे 15 से 20 सीटें गठबंधन में दे देंगे, यह बेहद मुश्किल नजर आता है। इससे सपा-बसपा गठबंधन की  यूपी में जीत सीमित हो जाएगी और कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति में मोलभाव का बड़ा मौका मिलेगा। 

सीमित क्षेत्र पर ही असर

अगर हुआ भी तो प्रियंका का प्रभाव पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर आजमगढ़, गोरखपुर, वाराणसी और कुछ दूसरे क्षेत्रों तक ही रहेगा। राज्य की शेष सीटों पर प्रियंका के करिश्मे के पहुंचने की संभावना कम ही नजर आती है। 

2014 के चुनावों में कांग्रेस का वोटबैंक 7.5% तक गिर गया था। इससे पहले यह 10.75% था। अब प्रियंका के पिक्चर में आ जाने से इसमें दो से तीन फीसदी के उछाल की संभावना जताई जा रही है। यह इसलिए है कि महागठबंधन की संभावित क्षमता को कम नहीं आंका जा सकता। इसलिये प्रियंका कांग्रेस की सियासी मुकद्दर बदल कर रख देंगी, यह कहना जल्दबाजी होगी। 

राम फैक्टर बिगाड़ सकता है खेल

अगर 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले राममंदिर केस में कोई बड़ा नतीजा आ जाता है तो सियासी दलों का सारा गणित धरा का धरा रह जाएगा। इससे बड़े पैमाने पर वोटों का ध्रुवीकरण होगा। बड़े पैमाने पर हिंदू वोटों की गोलबंदी से सभी जातीय समीकरण गड़बड़ा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो प्रियंका फैक्टर कोई असर पैदा नहीं कर पाएगा। 

अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस गुजरात, कर्नाटक, एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव की तरह सॉफ्ट हिंदुत्व पर आगे बढ़ेगी। यूपी में कुछ शुरुआत संकेत इस ओर इशारा दे रहे हैं। 

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यानी कुल मिलाकर कांग्रेस को प्लान 'पी' के बावजूद प्लान  'बी' की दरकार है।