नई दिल्ली: 28 मार्च को समझौता ब्लास्ट मामले के फैसले की 160 पन्नों की रिपोर्ट जारी की गई जिसमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की कड़ी निंदा की गई। न्यायालय ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है जिसमें से एक स्वामी असीमानंद भी थे। न्यायालय के निर्णय में घटना को किसी धर्म विशेष से जोड़ने के लिए जांच प्राधिकरणों को खरी-खोटी सुनाई गई है और कहा गया है कि कानून को राजनीतिक वार्ता या प्रचलित सार्वजनिक दृष्टिकोण से प्रभावित नहीं होना चाहिए, द इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया।

इसके बाद केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ‘हिंदू आतंक’ की बात को प्रचारित करने के लिए कांग्रेस सरकार पर प्रहार किया।कहा, “कांग्रेस ‘हिंदू आतंक’ की बात को लेकर आई और झूठे साक्ष्यों के आधार पर मामला बनाया लेकिन अंत में निर्णय न्यायालय के हाथ में थे। शायद इसलिए ही जो कभी हिंदुओं को आतंकी कहा करते थे वे आज धर्म के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करने का प्रयास करते नज़र आ रहे हैं।”

2009-10 में ‘हिंदू आतंक’ के मुद्दे को सबसे ज़्यादा बल मिला जब एनआईए ने प्राथमिक सबूतों को नज़रअंदाज़ कर हिंदू आतंक के बारे में साक्ष्य तैयार किए।

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने हिंदू आतंकवाद की झूठी परिभाषा गढ़ी थी, जिस कारण असली आतंकी बचने में सफल हो गये थे। गृह मंत्रालय के पूर्व अवर सचिव आरवीएस मणि ने यह आरोप दिग्विजय सिंह पर लगाये थे। 

एएनआई से बातचीत में आरवीएस मणि ने दिग्विजय सिंह पर निशाना साघा. उन्होंने कहा कि मैंने पहले भी कहा है कि साल 2010 तक हिंदू आतंकवाद को लेकर उन्हें कोई आधिकारिक जानकारी नहीं थी। बाद में भी ऐसी कोई बात नहीं थी। मगर दिग्विजय सिंह ने हिंदू आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी और उसे  प्रचारित किया। 

मणि के अनुसार दिग्विजय सिंह ने  हिंदू आतंकवाद के नाम पर सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग करते हुए असली आतंकियों को बचाया। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के आरोपी आरिफ कासमानी, मक्का मस्जिद ब्लास्ट के आरोपी बिलाल भागने में सफल रहे थे। उन्हें दिग्विजय सिंह का राजनैतिक एजेंडा समझ नहीं आया, लेकिन हिंदू आतंकवाद जैसी कोई बात नहीं थी। 

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बलबीर पुंज ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले को संघ के साथ जानबूझ कर जोड़ने का काम कर रही है। एक पत्रिका कि रिपोर्ट के आधार पर पुंज ने कहा कि उसमे साफ़ तौर पर लिखा हुआ है यूएन ने अपनी पड़ताल में कहा कि पाकिस्तान का रहने वाला आरिफ कासमानी समझौता ब्लास्ट का आरोपी है और अभी तक केंद्र सरकार ने उसे गिरफ्तार नहीं किया है। 

पुंज ने आरोपी का नाम बताते हुए शिंदे से चार सवाल किये थे। आरिफ कासमानी को यूएन ने अपनी फाइंडिंग में और अमेरिका ने कहा है कि ये व्यक्ति समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट हुआ उसके लिए जिम्मेदार था, कासमानी को हिरासत में लाने के लिए भारत सरकार ने क्या कदम उठाये।  असली कसूरवार वो है। ये जो समझौता विस्फोट है उसे संघ से जोड़ना है इसलिए असली कसूरवार को लाने का प्रयास ही नहीं कर रहे है। आखिर में, आरिफ कासमानी के अपराध का ठीकरा कथित हिन्दू आतंकी पर फोड़ने के लिए शिंदे पर क्या दबाव है? उसका क्या पुरस्कार उनको मिला है?

समझौता धमाके के दो वर्ष पश्चात और ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द की रचना से एक साल पहले, 29 जून 2009 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आरिफ कासमानी नाम के आतंकवादी पर प्रतिबंध लगाने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया गया। जिसके अनुसार, आरिफ कासमानी लश्कर-ए-तैय्यबा का मुख्य समन्वयक है, जो लश्कर के अन्य आतंकी संगठनों के साथ संपर्क को मजबूती प्रदान करता था। 

आरिफ ने लश्कर के साथ मिलकर कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया, जिसमें भारत में पानीपत के पास फरवरी 2007 में हुआ समझौता धमाका भी शामिल है। कासमानी को दाऊद इब्राहिम से भी सहायता मिलती रही है और वो लश्कर व अल-कायदा के लिए पैसे भी जुटाता रहा । 

वित्तीय सहायता के बदले अल-कायदा ने ही कासमानी को फरवरी 2007 के समझौता धमाके के लिए आवश्यक मदद पहुंचाई थी।" यह प्रस्ताव आज भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वेबसाइट पर उपलब्ध है। 

सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव के ठीक दो दिन बाद एक जुलाई 2009 को अमेरिकी कोष विभाग की प्रेस रिलीज में भी यही बात दोहराई गई। साथ ही कार्यकारी आदेश संख्या 13,224 में अमेरिका ने समझौता बम धमाके के लिए चार लश्कर आतंकियों के नाम गिनाए थे, जिसमें कासमानी का नाम भी शामिल था। 

यही नहीं, वर्ष 2010 में पाकिस्तान के तत्कालीन आतंरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने भी तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते स्वीकारा था कि इस हमले में उनके देश के आतंकी शामिल थे।

मगर भारत सरकार ने इस ब्लास्ट को हिन्दू आतंकवाद के साथ जोड दिया। हिंदू आतंकवाद’ की परिकल्पना के केंद्र में चार घटनाएं सम्मिलित है- 2006 का मालेगांव, 2007 में अजमेर शरीफ, समझौता एक्सप्रेस और 2008 का मक्का-मस्जिद बम धमाका। 

पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने अगस्त 2010 में सर्वप्रथम ‘भगवा आतंकवाद’ का शब्द गढ़ा, जो सुशील कुमार शिंदे के गृहमंत्री रहते हुए जनवरी 2013 में बदलकर ‘हिंदू आतंकवाद’ हो गया। एक अभियान के अंतर्गत तत्कालीन केंद्र सरकार ने हिंदूवादी संगठनों के साथ-साथ संघ के शीर्ष नेताओं को फंसाने की पटकथा लिखी। 

‘भगवा आतंकवाद’ के सिद्धांत के तहत ही कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मुंबई आतंक निरोधक दस्ते के प्रमुख रहे हेमंत करकरे की 26/11 आतंकी हमले के दौरान हुई हत्या के तार भी हिंदूवादी संगठनों से जोड़ते हुए पाकिस्तान को क्लीन-चिट देने का प्रयास किया। 

यहां तक, 6 दिसंबर 2010 को दिग्विजय सिंह ने ‘26/11: आरएसएस की साजिश’ नामक पुस्तक का लोकार्पण कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर 26/11 मुंबई आतंकी हमला करवाने का आरोप लगा दिया। 

20 जनवरी 13 को, जयपुर में कॉंग्रेस के  चिंतन शिविर में केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मसजिद और मालेगांव में हुए बम विस्फोट के लिए रा. स्व. संघ और भाजपा को जिम्मेदार बताया था। 

 शिंदे का वक्तव्य प्रसिद्ध होने के दूसरे ही दिन लश्कर-ए-तैयबा का नेता हाफिज सईद ने संघ पर पाबंदी लगाने की मांग की थी। अत: सईद की इस मॉंग के लिए शिंदे ही गवाह साबित होते है।  अब हम इस बम विस्फोट के सबूतों पर विचार करेंगे। 
 
 ‘‘राष्ट्र संघ और अमेरिका ने लश्कर-ए-तैयबा और कासमानी के विरुद्ध कारवाई घोषित करने के उपरान्त, छ: माह बाद पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने, पाकिस्तान में के आतंकवादी, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में शामिल थे, यह माना था। लेकिन उसमें एक परन्तु जोड़ा, वह इस प्रकार कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने पाकिस्तान में रहने वाले आतंकवादियों को इसके लिए सुपारी दी थी। (‘इंडिया टुडे’ ऑन लाईन, 24 जनवरी 2010)’’

सन् 2007 में, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के मामले की जांच के चलते समय ही, इस हमले में ‘सिमी’ (स्टुडेण्ट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) संस्था का भी भागीदारी थी, इसके सबूत मिले है। 

‘इंडिया टुडे’ के 19सितंबर 2008 के अंक में के समाचार का शीर्षक था ‘मुंबई में रेलगाडी में हुए विस्फोट और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान का हाथ : नागोरी’ उस समाचार में लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान की सहभागिता का पूरा ब्यौरा दिया गया था। ‘सिमी’ के नेताओं की जो नार्को जांच की गई, उससे यह स्पष्ट होता है। 

 इंडिया टुडे के समाचार के अनुसार, सिमी के महासचिव सफदर नागोरी, उसका भाई कमरुद्दीन नागोरी और अमील परवेज की यह नार्को जॉंच बंगलोर में अप्रेल 2007 में की गई थी। इस जांच के निष्कर्ष ‘इंडिया टुडे’ के पास उपलब्ध हैं। उससे स्पष्ट होता है कि  भारत में सिमी के कार्यकर्ताओं ने, सीमा पार के पाकिस्तानियों की सहायता से, यह बम विस्फोट किए थे। 

 एहतेशाम और नासिर यह ‘सिमी’ के उन कार्यकर्ताओं के नाम हैं। उनके साथ कमरुद्दीन नागोरी भी था। पाकिस्तानियों ने सूटकेस का कवर इंदौर के कटारिया मार्केट से खरीदा था। इस जांच में यह भी स्पष्ट हुआ कि, उस सूटकेस में पांच बम रखे गए थे और टायमर स्विच से उनमें विस्फोट किया गया।
  
 ‘‘यह सबूत सामने होते हुए भी महाराष्ट्र का पुलिस विभाग, इस दिशा से आगे क्यों नहीं बढ़ा। ऐसा प्रश्‍न स्वाभाविक तौर पर सामने आता है। इसकी वजह यह थी कि, महाराष्ट्र पुलिस विभाग में के कुछ लोगों को समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट का मामला किसी भी तरह मालेगॉंव बम विस्फोट से जोड़ना था। 

 महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने, अपने वकील के मार्फत, विशेष न्यायाधीश को बताया कि, मालेगॉंव बम विस्फोट मामले के आरोपी कर्नल पुरोहित ने ही समझौता एक्सप्रेस में के बम विस्फोट के लिए आरडीएक्स उपलब्ध कराया था। लेकिन ‘नेशनल सिक्योरिटी गार्ड’(एनएसजी) ने बताया कि, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग नहीं किया गया था। पोटॅशियम क्लोरेट और सल्फर इन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था।

उस समय के केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने भी इस बात की पुष्टि की थी। मजे की बात तो यह है कि, उसी दिन मतलब 17 नवंबर 2008 को आतंकवाद विरोधी दस्ते के वकील ने भी अपना पहले का बयान वापस लिया था।  लेकिन जो नुकसान होना था वह तो हो चुका था। 

पाकिस्तान ने घोषित किया कि  सचिव स्तर की बैठक में समझौता एक्सप्रेस पर हुए हमले में कर्नल पुरोहित की भागीदारी का मुद्दा उठाया जाएगा।  आखिरकार २० जनवरी 2009 को आतंकवाद विरोधी दस्ते ने स्वीकार किया कि, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स उपलब्ध नहीं कराया था। इस प्रकार समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के प्रमुख सूत्रधार लश्कर-ए-तैयबा और ‘सिमी’ से कर्नल पुरोहित और उसके द्वारा भगवे रंग की ओर मोडा गया।  

दरअसल महाराष्ट्र पुलिस मशीनरी पर दाऊद इब्राहिम का प्रभाव था, कई पुलिसवालों के बारे में सभी जानते थे कि वे दाऊद के लिए काम करते हैं। इसका उपयोग भी भगवा आतंकवाद के नैरेटिव को गढने के लिए किया गया। 

दरअसल भगवा आतंकवाद शब्द गढ़ने के लिए यूपीए सरकार ने तथ्यों को नजरंदाज कर कुछ मामलों में निर्दोष हिन्दुओं को फंसाने की कोशिश की उससे आतंकवाद के खिलाफ हमारा अभियान कमजोर पड़ा। पाकिस्तान जैसा राज्य संचालित आतंकवाद चलानेवाला देश बार बार बम विस्फोटों के लिए हिन्दु आतंकवादियों पर आरोप लगाने लगा।यह वैसा ही था – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।

सतीश पेडनेकर

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)