सिख दंगों के दौरान ऐतिहासिक गुरुद्वारा रकाबगंज को आग लगा दी गई थी। इन भीषण कांड का आरोप लगा था कमलनाथ पर। हालांकि कांग्रेस राज में हुई एसआईटी जांच, रंगनाथ मिश्रा कमीशन जांच, नानावती कमीशन इन्क्वायरी में कमलनाथ के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हो पाया। लेकिन सिख संगठन आज भी कमलनाथ पर ऊंगली उठाते हैं। इसके बावजूद मध्य प्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना रही है। क्योंकि उसके पास कमलनाथ के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसके पांच प्रमुख कारण हैं- 

कमलनाथ की आर्थिक ताकत:
कानपुर में जन्मे और पश्चिम बंगाल में कारोबार करने वाले व्यापारी परिवार से आने वाले कमलनाथ अपने आप में एक बड़े बिजनेसमैन हैं। उनका कारोबार रियल एस्टेट, उड्डयन, होटल और शिक्षा तक फैला है। देश के शीर्ष प्रबंधन संस्थान आईएमटी गाज़ियाबाद के डायरेक्टर सहित क़रीब 23 कंपनियों के बोर्ड में कमलनाथ शामिल हैं। ये कारोबार उनके दो बेटे नकुलनाथ और बकुल नाथ संभालते हैं।

कमलनाथ द इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नॉलजी ए मैनेजमेंट इंस्टीट्यूशन के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष रहे हैं। सितंबर 2011 में कमलनाथ को सबसे धनी केंद्रीय मंत्री घोषित किया गया। उनके पास कुल संपत्ति दो अरब 73 करोड़ रुपये की आंकी गई। कमलनाथ पीपीपी मॉडल और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, वर्ल्ड मार्केट जैसे मुद्दों पर बड़ी गहरी जानकारी रखते हैं। 

आज आर्थिक मोर्चे पर कांग्रेस पार्टी बुरी तरह लड़खड़ा रही है। कई बार तो कांग्रेस के पास अपने कार्यकर्ताओं को देने के लिए भी पैसा नहीं रहता। ऐसे में पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव की भी तैयारी करनी है। इन हालातों में कांग्रेस के पास आर्थिक मामलों में कमलनाथ से ज्यादा अनुभवी और विश्वसनीय चेहरा कोई नहीं है। कमलनाथ तेज़ी से संसाधनों को जुटाने में भी माहिर हैं। कारोबारी होने के चलते कारोबार की दुनिया में उनके नजदीकी रिश्ते हैं। 

जिन आर्थिक झंझावातों में इस समय की कांग्रेस फंसी हुई है। उससे उसे कमलनाथ ही निकाल सकते हैं। यह एक बड़ी वजह है जिसके कारण कमलनाथ को मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य की कमान सौंपी गई है। 

जुगाड़ राजनीति के माहिर खिलाड़ी:
कमलनाथ जोड़ तोड़ की राजनीति के माहिर हैं। भले ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास बहुमत के 116 की बजाए 114 ही सीटें आई हैं। लेकिन उन्होंने राज्यपाल को कुल 121 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी सौंपी है। 

राज्यपाल को भेजे गए समर्थन वाले पत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि बीजेपी के 109 विधायकों को छोड़ दें तो बाक़ी सब के सब कमलनाथ के साथ हैं। इसमें चार निर्दलीय, दो बहुजन समाज पार्टी और एक समाजवादी पार्टी का विधायक शामिल है।

जिसकी वजह से यह साफ़ हो जाता है कि 71 साल की उम्र के कमलनाथ राजनीति के हर उस दांव के मास्टर हैं  जिसकी झलक पिछले कुछ सालों से कांग्रेस में नहीं दिख रही थी। 

कमलनाथ के बारे में एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि उन्होंने चौधरी चरण सिंह के ज्योतिषी के जरिए उनको बहका कर मोरारजी देसाई की सरकार गिरवा दी। मात्र 30-32 साल की उम्र में कांग्रेस पार्टी के लिए उन्होंने देश के सर्वोच्च सत्ता प्रतिष्ठान में जो हलचल मचाई, उससे कमलनाथ की जुगाड़ क्षमता का एहसास हो जाता है। 
 
यह भी मध्य प्रदेश की कमान कमलनाथ को सौंपे जाने की एक बड़ी वजह है। 

अनुभव और जनसंपर्क:
कमलनाथ छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद रह चुके हैं। वह कांग्रेस के शासनकाल में पर्यावरण, शहरी विकास, वाणिज्य और उद्योग जैसे कई अहम विभागों के मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने बड़ी ही कुशलता से अपने मंत्रालय का काम संभाला। 

कमलनाथ ने पर्यावरण मंत्री रहते हुए जिस तरह कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे पर विकासशील देशों का पक्ष रखा था, उसकी तारीफ खुद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी की थी। 

कमलनाथ अपने क्षेत्र के लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं। कहते हैं उनका घर और दफ्तर छिंदवाड़ा के लोगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। वह छिंदवाड़ा वासियों के छोटे से छोटे काम के लिए भी ना नहीं करते। उन्होंने छिंदवाड़ा में वेस्टर्न कोलफील्ड्स और हिंदुस्तान यूनीलिवर जैसी कंपनियों की शाखाएं खुलवाई। यही नहीं अपने इलाके में कमलनाथ ने क्लॉथ मेकिंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खुलवाए। यही वजह है कि वह अपने क्षेत्र से नौ बार चुने गए। यही उनकी ताकत भी है। 

कमलनाथ के जनसंपर्क का आलम यह है कि कई बार इसके लिए उनकी आलोचना भी की जाती है। वह हर किसी से अच्छा संबंध बनाकर रखना चाहते हैं। मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार के 15 सालों में उन्होंने किसी मुद्दे पर शिवराज सिंह चौहान का कोई मुखर विरोध नहीं किया। 

इसलिए विरोधी भी कई बार कमलनाथ की तारीफ करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यह भी उनके मध्य प्रदेश में सत्तासीन होने के प्रमुख कारणों में से एक है। 

गुटबाजी से दूर रहना:
मध्य प्रदेश कांग्रेस में कई गुट हैं। दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह का अपना गुट है। उनकी कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ है। 

वहीं सिंधिया राजघराने से आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का अपना अलग गुट है। मध्य प्रदेश क्षेत्र के हिसाब से बहुत बड़ा राज्य है। लेकिन जहां ज्योतिरादित्य का लोकप्रियता उनके अपने क्षेत्र ग्वालियर संभाग तक सीमित है। वहीं दिग्विजय को बहुत से कांग्रेसी पसंद नहीं करते। 

लेकिन कमलनाथ अपना कोई गुट न रखते हुए भी सभी गुटों से अच्छे संबंध बनाकर रखते हैं। इस बार भी कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के जनसंपर्क का पूरा लाभ उठाते हुए चुनाव मैनेज किया। कमलनाथ का सम्मान सभी गुटों के कांग्रेसी करते हैं। क्योंकि वह निजी तौर पर किसी भी गुटबाजी से दूर रहते हैं। इसलिए उनकी स्वीकार्यता सभी गुटों में है। 

कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने से किसी गुट को कोई आपत्ति नहीं होगी। जिसकी वजह से असंतोष भी कम रहेगा। राहुल गांधी ने इसलिए भी कमलनाथ को सत्ता सौंपी है। 

सब से अहम बात, गांधी परिवार से वफादारी:
कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक आप चाहे कितने भी बड़े बौद्धिक, धनवान, उर्जावान, जनसंपर्क वाले नेता हों। लेकिन अगर गांधी परिवार को आपके उपर भरोसा नहीं है, तो आपको कोई बड़ी जिम्मेदारी कभी नहीं मिल सकती है। 

वफादारी के इस मानदंड पर कमलनाथ पूरी तरह खरे उतरते हैं। दरअसल कमलनाथ वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के चाचा संजय गांधी के स्कूली दोस्त थे, दून स्कूल से शुरू हुई इन दोनों की दोस्ती, मारुति कार बनाने के सपने के साथ-साथ युवा कांग्रेस की राजनीति तक जा पहुंची थी।

यूथ कांग्रेस के दिनों में संजय गांधी ने कमलनाथ को पश्चिम बंगाल में कमलनाथ को सिद्धार्थ शंकर रे और प्रियरंजन दासमुंशी को टक्कर देने के लिए उतारा था।
 
गांधी परिवार के प्रति कमलनाथ की वफादारी का आलम यह था कि इमरजेंसी के बाद संजय गांधी गिरफ्तार कर लिए गए। तो जेल के अंदर उनको कंपनी देने के लिए कमलनाथ से जज से बदतमीजी की। जिसकी वजह से उन्हें भी संजय गांधी के साथ तिहाड़ भेज दिया गया। जहां उन्होंने संजय गांधी का पूरा ध्यान रखा। 

इन्हीं वजहों से एक बार कमलनाथ के चुनाव क्षेत्र छिंदवाड़ा में चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने भाषण में कहा था,- मैं नहीं चाहती कि आप लोग कांग्रेस नेता कमलनाथ को वोट दीजिए। मैं चाहती हूं कि आप मेरे तीसरे बेटे कमलनाथ को वोट दें। यानी इंदिरा गांधी कमलनाथ को राजीव और संजय के साथ अपना तीसरा बेटा मानती थीं।

कमलनाथ ने कांग्रेस का दामन कभी नहीं छोड़ा। जब उनका नाम जैन हवाला डायरी में आया तो उन्होंने माधवराव सिंधिया की तरह अपनी अलग पार्टी बनाने की बजाए, कांग्रेस में रहते हुए अपनी पत्नी को टिकट दिलवाया। 

कमलनाथ खुद भी वफादारों का सम्मान करते हैं। इस बात का सबूत हैं आरके मिगलानी, जो कि पिछले 38 साल से कमलनाथ के सहयोगी और सलाहकार के रुप में उनके साथ जुड़े हुए हैं। 

वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी अपने परिवार और कांग्रेस पार्टी के प्रति कमलनाथ की इस प्रतिबद्धता से अच्छी तरह वाकिफ हैं। सिख दंगों में संलिप्तता के आरोपों में घिरे कमलनाथ को पंजाब में जब कांग्रेस की ओर से चुनाव प्रभारी बनाया गया था। तब वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसका विरोध किया था। 

जिसके बाद राहुल गांधी ने कमलनाथ को इस पद से हटा दिया था। लेकिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ के उपर दांव लगाना कांग्रेस की मजबूरी बन जाता है।