पाकिस्तान के अंदरूनी हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। पाकिस्तान के कई हिस्सों में टूटकर बिखर जाने का खतरा खड़ा हो गया है। यही वजह है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों, शियाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं। सरकार की मदद से सुनियोजित तरीके से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है।

पाकिस्तान में रहने वाले शियाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। पाकिस्तान की आबादी का 20 फीसदी हिस्सा शिया हैं, लेकिन जिस तरह से उनके खिलाफ हिंसा हो रही है, उसे नरसंहार ही कहा जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं होगा अगर पाकिस्तान के अंदर एक अलग देश की मांग के लिए शिया हथियार उठा लें।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के क्वेटा में एक फलों के बाजार में हुए कार बम धमाके में हजारा समुदाय के 24 लोगों की जान चली गई। इसके बाद शियाओं ने एक बड़ी विरोध रैली निकाली। इस धमाके की जिम्मेदारी पाकिस्तानी तालिबान और सुन्नी आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट ने संयुक्त रूप से ली। 

पाकिस्तान में शिया समुदाय पर न तो यह पहला हमला है और आखिरी होगा, यह दावा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यहां 1963 से ही शियाओं को निशाना बनाया जा रहा है। देवबंदी सुन्नी कट्टर समूहों को सरकार का संरक्षण मिलने के बाद से यह सिलसिला लगातार जारी है।

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‘लेट अस बिल्ड पाकिस्तान’ नाम की एक वेबसाइट के अनुमान के मुताबिक, 1963 में शियाओं पर हमले शुरू होने के बाद से 31 दिसंबर, 2018 तक पाकिस्तान में 23,500 शिया मुसलमान मार दिए गए। 1963 में शियाओं पर हमले की पहली घटना सिंध के थेरही खैरपुर में हुई थी।

यह संख्या 45,000 सुन्नी सूफी अथवा बरेलवी मुस्लिम और सैकड़ों अहमदियों, ईसाइयों, हिंदुओं और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से अलग है।

हाल ही में ‘बीबीसी’ ने ‘द स्टोरी ऑफ पाकिस्तान डिस्अपेयर्ड शियाज’ के नाम से एक स्टोरी चलाई थी। इसमें कराची से शियाओं को सुनियोजित तरीके से गायब किए जाने की घटनाओं का जिक्र किया गया था। इसमें दिखाया गया कि साल 2016 में 30 साल का नईम हैदर नाम का एक युवा गायब हो गया। सीसीटीवी फुटेज में देखा गया कि कुछ हथियारबंद लोग उसके कहीं ले गए। इनमें से कुछ ने पुलिस की वर्दी भी पहन रखी थी। हालांकि अधिकारियों ने उसी गिरफ्तारी की कोई जानकारी होने से इनकार किया था। पाकिस्तान में इस तरह के कई मामले समाने आ चुके हैं।