बढ़ तो गए बाघ, लेकिन उनके रहने के लिए जंगल कहां हैं?

By Anshuman AnandFirst Published Jul 30, 2019, 1:02 PM IST
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विश्व बाघ दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाघों की संख्या से संबंधित उत्साहजनक आंकड़े जारी किए। जिसके मुताबिक भारत में पिछले चार सालों में 741 बाघ बढ़े हैं। बाघों की आबादी तो बढ़ रही है। लेकिन उनके विचरण के लिए जंगल कम हो रहे हैं। क्या इस समस्या पर किसी ने ध्यान दिया है? क्योंकि जंगल कम होते गए और बाघों की आबादी बढ़ी तो मनुष्यों की बाघ से मुठभेड़ ज्यादा होगी। 
 

नई दिल्ली: बाघों की संख्या के बारे में ताजा आकड़ों के मुताबिक पिछले चार सालों में बाघों की संख्या बढ़कर 2967 हो गई है। जबकि चार साल पहले यह आबादी 2226 थी। यानी पिछले चार सालों में 741 बाघ ज्यादा हुए हैं। 

बढ़ते बाघ घटते जंगल
बाघों की बढ़ती हुई संख्या उत्साहजनक तो है। लेकिन इसके साथ एक चिंता भी जुड़ी हुई है। क्योंकि एक बाघ को प्राकृतिक रुप से विचरण करने के लिए कम से कम 10 वर्ग किलोमीटर का जंगल चाहिए। बल्कि कई बाघ को 200 किलोमीटर के इलाके में विचरण करते हैं। 
लेकिन जैसे जैसे बाघों की संख्या बढ़ रही है। उनका प्राकृतिक आवास यानी घना जंगल कम होता जा रहा है। साल 2006 में जहां बाघों की प्राकृतिक रिहाइशगाह 93697 किलोमीटर में फैली हुई थी। वहीं 12 साल बाद यानी साल 2018 में बाघों का प्राकृतिक बसेरा घटकर 88985 वर्ग किलोमीटर ही रह गया है। 

खतरनाक है यह स्थिति
बाघों की संख्या बढ़ना और उनके प्राकृतिक आवास का सिकुड़ते जाना बाघों और मनुष्यों दोनों के लिए खतरनाक स्थिति है। इसका उदाहरण है कुछ इस तरह की खबरें-

1. पीलीभीत में बाघ का शिकार
2. तेंदु पत्ता तोड़ने गए लोगों पर बाघ का हमला
3. पन्ना में बाघ का अवैध शिकार
4. करंट लगाकर बाघ की हत्या
5. सड़क पर घूमती नजर आई बाघिन
6. लकड़ी चुन रही महिला पर बाघ का हमला
7. घनी बस्ती के बीच घूमता दिखा बाघ
8. बाघ के डर से घर में कैद ग्रामीण  
9. बीच सड़क पर शिकार करता हुआ दिखा बाघ  

यह कुछ घटनाएं महज एक बानगी हैं। जो यह बताती हैं कि बाघों की बढ़ती हुई आबादी और जंगलों की घटती हुई संख्या किस मुसीबत को जन्म दे रही है। यह स्थिति मनुष्यों के लिए कम और बाघों के लिए ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि आदमियों के साथ बाघों के संघर्ष में उनका ही ज्यादा नुकसान होता है। बाघ अधिकतर अकेले ही रहना पसंद करता है। हर बाघ का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है। केवल प्रजननकाल में नर और मादा बाघ इकट्ठा होते हैं।


बाघ सचमुच बढ़े हैं या तकनीक से उनकी संख्या ज्यादा दिख रही है?
बाघों की बढ़ती संख्या उत्साहजनक है। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि बाघ उतने ही हों लेकिन इस बार हम ज्यादा बाघ गिन पाने में सफल हुए हैं, इसलिए बाघों की संख्या ज्यादा दिख रही है। दरअसल पहले बाघों की गिनती के लिए पदचिन्हों के आधार पर उनकी गिनती करने का पुराना तरीका इस्तेमाल किया जाता था। 
लेकिन अब सर्वे के नए तरीके ने बाघों की गिनती बढ़ाने में मदद की है। वहीं, 2014 में जहां 3,78,118 वर्ग किलोमीटर दायरे में सर्वे किया गया था, 2018 में 3,81,400 वर्ग किलोमीटर सर्वे किया गया है। इस बार 3,282 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त सर्वे किया गया। 

कैमरों की संख्या भी 2014 के मुकाबले डबल कर दी गई। इस बार बाघों के सर्वे के लिए कैमरे 2 वर्ग किलोमीटर पर लगाए गए थे, जबकि पहले ये 4 वर्गकिलोमीटर पर लगे हुए थे।

इसके अलावा नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा वन एवं वन्यजीवों की निगरानी और पेट्रोलिंग के लिए एक एंड्रॉइड एप विकसित किया गया, जिसे एम-स्ट्राइप्स नाम दिया गया। एम-स्ट्राइप्स का मतलब है 'मॉनिटरिंग सिस्टम फॉर टाइगर्स-इंटेंसिव प्रोटेक्शन एंड इकोलॉजिकल स्टेटस'। 

यह वनकर्मियों के स्मार्ट पेट्रोलिंग का एक ऐसा तरीका है जिसमें प्रत्येक वनकर्मी अपनी गश्त के बारे में और गश्त के दौरान जंगल में उसे जो भी जानवर या चिन्ह मिलते हैं उसकी समस्त जानकारी एम-स्ट्राइप्स एप में दर्ज कर सकता है। इस प्रकार प्रत्येक वनकर्मी की गश्त को शामिल करते हुए एम-स्ट्राइप्स सॉफ्टवेयर की मदद से टाइगर रिजर्व क्षेत्र की समेकित पेट्रोलिंग रिपोर्ट तैयार की जा सकती है, जिससे यह पता चलता है कि टाइगर रिजर्व के किन-किन क्षेत्रों में कब-कब और कितनी गश्त हुई और गश्त के दौरान जंगल में क्या-क्या दिखा। 

इस तकनीक के इस्तेमाल से भी बाघों की सही गिनती करने में मदद मिली है। 

रुक नहीं रहा अवैध शिकार
बाघों की बढ़ती आबादी को देखकर खुशी मनाने का मौका तो जरुर है। लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि बाघों की अवैध शिकार भी इस दौरान तेजी से बढ़ा है। पिछले दस साल में भारत में 844 बाघों की मौत हुई है। सबसे हैरानी की बात यह है कि इसमें से 429 बाघों को शिकारियों ने मारा है। पूरी खबर यहां पढ़ें

किस राज्य में कितने हैं बाघ
देश में अभी सबसे ज्यादा 526 बाघ मध्यप्रदेश में हैं। इसके बाद 524 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे, 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे, 312 बाघों के साथ महाराष्ट्र चौथे और 264 बाघों के साथ तमिलनाडु पांचवें स्थान पर हैं। देश में मौजूद बाघों की पूरी आबादी में से 60.80 फीसदी बाघ इन्हीं पांच राज्यों में केन्द्रित है। 

लेकिन मूल प्रश्न अब भी अपनी जगह पर कायम हैं-
- क्या बाघों की आबादी सचमुच बढ़ी है?
- अगर बढ़ी है तो उनके रहने के लिए जंगल कैसे बढ़ाए जाएंगे?
- मनुष्य और बाघों के बीच संघर्ष कैसे रुकेगा?
- बाघों के अवैध शिकार को रोकने के लिए कौन से कदम उठाए जा रहे हैं?

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