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Noor Inayat Khan: भारतीय मूल की महिला जासूस जिसने नाजी जर्मनी में रचा इतिहास

Rajkumar Upadhyaya |  
Published : Nov 29, 2024, 01:52 PM ISTUpdated : Nov 29, 2024, 01:55 PM IST
Noor Inayat Khan: भारतीय मूल की महिला जासूस जिसने नाजी जर्मनी में रचा इतिहास

सार

जानिए भारतीय मूल की बहादुर महिला जासूस नूर इनायत खान की कहानी, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी को चुनौती दी। कोडनेम 'मैडलीन' से प्रसिद्ध नूर का योगदान और उनकी वीरता हमेशा याद रखी जाएगी।

Noor Inayat Khan: नूर इनायत खान, भारतीय मूल की वो महिला जासूस हैं। जिनके सम्मान में लंदन के ब्लूम्सबेरी स्थित उनके निवास स्थान पर ब्लू प्लाक लगाया गया है। उनका घर अब एक स्मारक का रूप ले चुका है। आप भी जानना चाहते होंगे कि यह हस्ती कौन थी? तो आपको बता दें कि यह वो महिला जासूस थीं, जिन्होंने सेकेंड वर्ल्ड वारॅ के दौरान नाजी अधिकृत फ्रांस में रेडियो ऑपरेटर के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुए इतिहास रच दिया। उनकी दी गई सूचनाएं ब्रिटिश सरकार के बहुत काम आईं।

शाही परिवार और सूफी परंपरा से नाता

1 जनवरी 1914 को मॉस्को, रूस में जन्मी नूर इनायत खान के पिता टीपू सुल्तान के वंशज और प्रसिद्ध सूफी उपदेशक थे। उनकी माता ओरौरा बेकर एक अमेरिकी नागरिक थीं। नूर का परिवार काफी समय तक रूस में रहा, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण वे पहले ब्रिटेन और फिर फ्रांस चले गए। नूर बचपन से ही टैलेंटेड थीं। उन्हें हार्प और पियानो बजाने में महारत हासिल थी। साथ ही, वे फ्रेंच और अंग्रेजी भाषाओं में निपुण थीं। उनका साहित्यिक रुझान भी गहरा था, और उन्होंने बच्चों के लिए कई कहानियां लिखीं।

दूसरे विश्व युद्ध में नूर का योगदान

1940 में फ्रांस पर जर्मनी के कब्जे के बाद नूर अपने परिवार के साथ ब्रिटेन आ गईं। यहां उन्होंने नाम बदलकर नॉरा बेकर रखा और विमेंस ऑग्ज़िलरी एयर फोर्स जॉइन की। वायरलेस ऑपरेटर के रूप में ट्रेनिंग ली। उनकी लैंग्वेज और टेक्नोलॉजिकल स्किल ने उन्हें विशेष बना दिया। 1943 में नूर को स्पेशल ऑपरेशन्स एग्जीक्यूटिव (SOE) के फ्रांस सेक्शन में नियुक्त किया गया। वे पहली महिला रेडियो ऑपरेटर बनीं, जिन्हें फ्रांस भेजा गया। यहां उनका कोड नाम था ‘मैडलीन’ और वे जीन मैरी रेनियर नाम से बच्चों की नर्स के रूप में तैनात की गईं।

ब्रिटिश सैनिकों को बचाने में मदद

नूर का काम नाजियों के इलाके में रहकर सीक्रेट मैसेज भेजना और रिसीव करना था। उन्होंने फ्रांस में पकड़े गए ब्रिटिश सैनिकों को बचाने में मदद की और कई बार अपनी जान खतरे में डालकर लंदन तक महत्वपूर्ण जानकारियां पहुंचाईं। जब नाजी सैनिकों ने उनके पूरे नेटवर्क के एजेंटों को गिरफ्तार कर लिया, तब भी नूर ने अपना काम जारी रखा। फ्रांस और लंदन के बीच सीक्रेट मैसेज के आदान-प्रदान की कड़ी के रूप में वे अकेली रह गई थीं। उनका यह योगदान ब्रिटेन के लिए बहुत अहम साबित हुआ।

धोखे से गिरफ्तारी

13 अक्टूबर 1943 को फ्रांस की एक महिला ने धोखा देकर नूर को नाजियों के हाथों गिरफ्तार करवा दिया। उन्हें लगातार कई दिनों तक शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं, लेकिन नूर ने कोई भी गुप्त जानकारी नहीं दी। नूर ने जेल से भागने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाईं। नाजी भी उनसे इतने प्रभावित थे कि उन्हें "बेहद खतरनाक कैदी" घोषित कर दिया गया और अकेले काल कोठरी में डाल दिया गया।

अंतिम पल में भी बोलीं आजादी

1944 में नूर को दखाऊ कंसन्ट्रेशन कैंप भेज दिया गया। 13 सितंबर की सुबह, उन्हें सिर के पीछे गोली मार दी गई। मरते समय भी उनका अंतिम शब्द था ‘लिबर्टे’ यानी आज़ादी। नूर इनायत खान को 1946 में ब्रिटिश सरकार ने मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया। यह नागरिक वीरता के लिए दिया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार है। 2020 में लंदन में उनके सम्मान में ब्लू प्लाक लगाकर उन्हें हमेशा के लिए अमर कर दिया गया।

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