Raksha ‌Bandhan Ki Katha: ये हैं रक्षाबंधन से जुड़ी 3 कथाएं, जानें कैसे शुरू हुई ये परंपरा?

By Manish MehareleFirst Published Aug 26, 2023, 4:36 PM IST
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Raksha bandhan Ki Katha: हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये उत्सव 30 अगस्त, बुधवार को मनाया जाएगा। रक्षाबंधन पर्व हजारों सालों से मनाया जा रहा है। ये हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। 
 

उज्जैन. रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती हैं और भाई बहन को उम्र भर रक्षा करने का वचन देते हैं। यही इस त्योहार की सार्थकता है। (Raksha bandhan Ki Katha) हर साल श्रावण पूर्णिमा पर ये त्योहार मनाया जाता है। इस बार ये उत्सव 30 अगस्त, बुधवार को है। इस पर्व से जुड़ी कई कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती हैं। आगे जानिए इस पर्व से जुड़ी 3 कथाओं के बारे में…

पत्नी ने पति को बांधा था पहला रक्षासूत्र
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार देवता और दानवों में कईं सालों तक युद्ध होता रहा। काफी कोशिशों के बाद में देवता उस युद्ध को जीत नही सके। तब इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और उनसे विजय का उपाय पूछा। तब देवगुरु बृहस्पति ने कहा कि ‘कल श्रावणी पूर्णिमा पर मैं एक रक्षा सूत्र तैयार करूंगा, जिसमें तुम इंद्राणी द्वारा अपनी कलाई पर पहन लेना। इस रक्षासूत्र से तुम्हें विजय प्राप्त होगी।’ देवगुरु बृहस्पति द्वारा बनाए गए रक्षासूत्र के प्रभाव से देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की।

देवी लक्ष्मी ने बांधी थी राजा बलि को राखी
रक्षाबंधन की कथाओं में से एक देवी लक्ष्मी और दैत्यों के राजा बलि से भी संबंधित है। उसके अनुसार- भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया तो वे दैत्यराज बलि की दानवीरता देख काफी प्रसन्न हुए और उसे पाताल का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा। राज बलि ने भगवान से कहा कि ‘आप भी मेरा साथ पाताल में चलिए और मेरे द्वारपाल बनकर रहिए।’ वचनबद्ध होने के कारण भगवान को पाताल लोक में जाना पड़ा। जब ये बात देवी लक्ष्मी को पता चली तो वे भी पाताल लोक में गईं और राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया। इसके बाद उन्होंने उपहार स्वरूप अपने पति यानी भगवान विष्णु को मांग लिया और अपने साथ पुन: बैकुंठ लोक ले गईं।

जब द्रौपदी ने बांधी श्रीकृष्ण को पट्टी
रक्षाबंधन से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय शिशुपाल ने श्रीकृष्ण की अग्र पूजा का विरोध किया और उन्हें काफी भला-बुरा कहा। क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध कर दिया। इस दौरान चक्र से श्रीकृष्ण की कनिष्ठा ऊंगली कट गई। उसमें से रक्त बहता देख द्रौपदी ने अपने साड़ी का टुकड़ा उस पर बांध दिया। तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन मानकर उनकी रक्षा करने का वचन दिया। उसी वचन की लाज रखने के लिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को दु:शासन के द्वारा चीर हरण होने से बचाया था।

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