shravani upakarma 2023: श्रावणी पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इसके अलावा इस दिन ब्राह्मणों द्वारा श्रावणी उपाकर्म भी किया जाता है। इसके अंतर्गत ब्राह्मण नदी किनारे इकट्ठे होकर अपने जनेऊ बदलते हैं। ये एक प्राचीन परंपरा है।
उज्जैन. इस बार श्रावण मास की पूर्णिमा 30 अगस्त, बुधवार को है। इस दिन रक्षाबंधन (rakshabandhan 2023 Date) का पर्व मनाया जाएगा। इस तिथि से एक और भी परंपरा जुड़ी हुई है, जिसे श्रावणी उपाकर्म (shravani upakarma 2023) कहते हैं। ये परंपरा सिर्फ ब्राह्मणों द्वारा निभाई जाती है। इस परंपरा के अंतर्गत ब्राह्मण नदी के किनारे होकर सामूहिक रूप से स्नान और पूजा करते हैं, इसके बाद वे अपने पुरानी जनेऊ को नदी में प्रवाहित कर नई जनेऊ धारण करते हैं। आगे जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…
क्या है ये परंपरा? (Kya Hai shravani upakarma)
श्रावणी उपाकर्म परंपरा के अंतर्गत ब्राह्मण पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र) का पान करते हैं और इसके बाद वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों का प्रायश्चित कर पूजा, स्नान आदि करते हैं। इसके बाद ब्राह्मण अपनी पुरानी जनेऊ की पूजा कर इसे जल में प्रवाहित कर देते हैं और नई जनेऊ धारण कर लेते हैं। ये काफी लंबी प्रक्रिया होती है।
क्या है जनेऊ? (Kya Hota Hai Janeu)
हिंदू धर्म में 16 संस्कार बताए गए हैं, इनमें से एक यज्ञोपवीत संस्कार भी है। इस संस्कार में 10 साल से कम उम्र के ब्राह्मण बालकों को जनेऊ धारण करवाई जाती है। जनेऊ सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है। जनेऊ में तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं।
जानें जनेऊ से जुड़ी खास बातें
यज्ञोपवीत यानी जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है, जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का प्रतीक भी मानी जाती है। यज्ञोपवीत के हर एक धागे में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।
ये हैं जनेऊ पहनने के फायदे
धर्म ग्रंथों में जनेऊ पहनने के कईं फायदे बताए गए हैं। इसके अनुसार, जनेऊ पहनने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है, बुरे सपने नहीं आते। जनेऊ पहनने से याददाश्त तेज होती है, इसलिए कम उम्र में ही बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया जाता है। जनेऊ पहनने में मन में पवित्रता का अहसास होता है और व्यक्ति का मन बुरे कामों की ओर नहीं जाता।
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