सुमित ने सोमवार को जेवलिन थ्रो (javelin throw) में 68.55 मीटर दूर भाला फेंक कर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। आइए आज हम आपको बताते हैं इस एथलीट के संघर्ष की कहानी की किस तरह पूरी तरह से टूट जाने के बाद भी सुमित ने अपना हौसला नहीं टूटने दिया...
स्पोर्ट्स डेस्क : कहते है ना हर गम ने, हर सितम ने, नया हौसला दिया, मुझको मिटाने वाले ने मुझको बना दिया। ये लाइन टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics 2020) में भारत के लिए दूसरा गोल्ड मेडल जीतने वाले सुमित अंतिल (Sumit Antil) पर बखूबी जचती है। जिन्होंने 7 साल की उम्र में अपने पिता को खोया और 16 साल की उम्र में अपना एक पैर। उनकी जिंदगी में कितनी भी दुख तकलीफ आई, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और आज उनकी इसी मेहनत का फल उन्हें जो टोक्यो पैरालंपिक 2020 में मिला। जी हां, सुमित ने सोमवार को जेवलिन थ्रो (javelin throw) में 68.55 मीटर दूर भाला फेंक कर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। आइए आज हम आपको बताते हैं इस एथलीट के संघर्ष की कहानी की किस तरह पूरी तरह से टूट जाने के बाद भी सुमित ने अपना हौसला नहीं टूटने दिया...
सुमित अंतिल का जन्म 7 जून 1998 को हरियाणा के सोनीपत में एक सामान्य परिवार में हुआ। उनके घर में माता-पिता के अलावा चार-भाई बहन भी थे। लेकिन इस एथलीट की जिंदगी बचपन से ही मुश्किलों से भरी थी। 7 साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठ गया। दरअसल, सुमित के पिता रामकुमार एयर फोर्स में तैनात थे और बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था।
पिता की मौत के बाद मां ने बड़ी मुश्किलों से 4 बच्चों को पाला और उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दी। जब सुमित ने होश संभाला तो उन्होंने अपनी मां की मदद करना शुरू कर दिया और बच्चों की ट्यूशन लेकर कुछ पैसे जोड़ना शुरु किया।
16 साल की उम्र में जब सुमित 12वीं क्लास में थे तो शाम को ट्यूशन लेकर बाइक से घर आ रहे थे इस दौरान सुमित की जिंदगी में वह हादसा हुआ जिसने उनकी पूरी जिंदगी को बदल कर रख दिया।
5 जनवरी 2015 को सुमित को सीमेंट के कट्टों से भरे ट्रैक्टर ट्रॉली ने इतनी जोरदार टक्कर मारी की इस हादसे में उन्हें अपना एक पैर गंवाना पड़ा और वह अपाहिज हो गए।
हालांकि, इस घटना के बाद भी सुमित ने अपने हौसले कभी टूटने नहीं दिए और घरवालों और फ्रेंड्स के सपोर्ट से उन्होंने स्पोर्ट्स की तरफ अपना ध्यान लगाया और हरियाणा के साईं सेंटर पहुंचे।
उन्होंने एशियन गेम्स के सिल्वर मेडलिस्ट कोच वीरेंद्र धनखड़ से ट्रेनिंग ली और कुछ ही समय में वह दिल्ली पहुंचे। यहां पर द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित कोच नवल सिंह ने उन्हें जेवलिन थ्रो करना सिखाया और सुमित को परफेक्ट बनाया।
टोक्यो पैरालंपिक 2020 से पहले सुमित कई मेडल अपने नाम कर चुके हैं। उन्होंने 2018 में एशियन चैंपियनशिप में भाग लिया था लेकिन वह 5वीं रैंक हासिल कर पाए थे। इसके बाद उन्होंने 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता और हाल ही में हुए नेशनल गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।
इसके बाद सुमित ने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में जो कमाल किया वह तो सुर्खियों में बना हुआ है। 23 साल के सुमित ने अपने सोमवार को जेवलिन थ्रो के फाइनल में 68.55 मीटर दूर भाला फेंका और विश्व रिकॉर्ड बनाने के साथ ही रूप ही पैरालंपिक में गोल्ड मेडल भी जीता। उनकी इस जीत के बाद हरियाणा सरकार ने उन्हें 6 करोड़ की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की है साथ ही उन्हें सरकारी नौकरी भी दी जाएगी।
Last Updated Aug 31, 2021, 5:46 PM IST