करियर डेस्क. एक तरफ आर्थिक समस्याएं थीं, दूसरी ओर गाइडेंस की कमी और सामने सिविल सर्विस ज्वाइन करने का लक्ष्य। यह आसान नहीं था। उस पर भी पहले दो अटेम्पट में प्रीलिम्स ही क्लियर नहीं हो सका। ऐसे हालात में ज्यादातर लोग हार मान लेते हैं। लेकिन ग्वालियर की उर्वशी सेंगर अपने संकल्प से पीछे नहीं हटी। उनका हौसला टूटा नहीं। ग्वालियर के इलेक्ट्रिशियन रविन्द्र सिंह सेंगर की बेटी उर्वशी सेंगर ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा क्रैक कर यह साबित कर दिया है कि यदि लग्न हो तो कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी मात देकर मुकाम पाया सकता है। UPSC 2020 में उनकी 532वीं रैंक आयी है। उन्हें इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट सर्विसेज (IAAS) या भारतीय राजस्व सेवा (IRS) काडर मिल सकता है। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) के नतीजे 24 सितंबर, 2021 को जारी किए गए। फाइनल रिजल्ट (Final Result) में कुल 761 कैंडिडेट्स को चुना गया। Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने उर्वशी सेंगर से बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी सक्सेज जर्नी।

तीसरे अटेम्पट में मिली सफलता 
ग्वालियर के हजीरा के रहने वाले रविंद्र सेंगर की तीन बेटियां और एक बेटा है। उर्वशी सेंगर की कक्षा एक से 12वीं तक की पढ़ाई ग्वालियर के बादलगढ़ स्थित सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल से हुई। उन्होंने KRG गर्ल्स कॉलेज से मैथमेटिक्स से वर्ष 2015 में बीएससी किया और ज्योग्राफी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। उन्होंने यूजीसी नेट भी ज्योग्राफी से क्वालिफाई किया। वह यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली भी गईं। पर ज्यादातर तैयारी उन्होंने घर पर रहकर खुद से ही की। वर्ष 2017 में उन्होंने पहला और 2019 में दूसरा अटेम्पट दिया था। जिसमें वह प्रीलिम्स क्वालिफाई नहीं कर पायी थीं। यह उनका तीसरा अटेम्पट था। इस दौरान उन्होंने यूपीपीएससी की परीक्षा भी दी। फरवरी माह में उसका रिजल्ट आया था। उसमें उनकी 54वीं रैंक थी और एसडीएम का पद मिला था लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं किया था। यूपीएससी की परीक्षा की वजह से उन्हें अपनी ज्वाइनिंग को डिले कर दिया था। 

यूपीएससी जर्नी का बहुत लर्निंग अनुभव रहा 
उर्वशी कहती हैं कि यूपीएससी जर्नी का बहुत लर्निंग अनुभव रहा। हर किसी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हमे जो प्रोफेशनली ट्रेनिंग दी जाएगी। वह एक अलग चीज है। लेकिन यह जर्नी भी मुझे एक ट्रेनिंग का पार्ट लगता है। इस दौरान बहुत सारी चुनौतियां आती हैं। आप हमेशा अपने लक्ष्य की यात्रा में लगे रहते हो। आपको क्या करना है, इसको लेकर आप दृढ संकल्पित रहते हैं। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आप पूरे समय सब कुछ छोड़कर सिर्फ पढ़ाई कर रहे होते हैं। मैं इसे बहुत लर्निंग अनुभव के तौर पर लेती हूं। 

पिता ने प्लॉट बेचकर भरी थी फीस 
उर्वशी कहती हैं कि मेरे पिता इलेक्ट्रीशियन हैं। हमारा कोई बैकग्राउंड नहीं है। स्कॉलरशिप वगैरह से सरकारी कॉलेज में पढे हैं, कोचिंग भी नहीं की। फाइनेंसियली दिक्कतें हमेशा से थी। दिल्ली में जब रही तो एक कोचिंग के लिए काम करती थी। वहां रिश्तेदारों के घर पर ही रही। किराए के घर में रहने का खर्च अफोर्ड नहीं कर सकती थी। जब किराये के घर पर रही तो काम करना पड़ा तो इस तरह से चीजें थी। जब कोचिंग की तो एक छोटा सा प्लॉट था, पापा ने उसे बेचा तब जाकर कोचिंग की फीस भरी। 

गाइडेंस नहीं था, उस वजह से आयी ज्यादा परेशानी 
उर्वशी कहती हैं कि स्ट्रगल हमेशा से था लेकिन घर वालों का साथ था। वह जितना कर सकते थे, उन्होंने किया। सबसे बड़ी दिक्क्त यह थी कि हमारे घर में कोई इस बारे में कुछ बताने वाला नहीं हैं। हमारे घर में कोई सरकारी नौकरी में नहीं है। सिविल सर्विस तो सपना है। उस वजह से भी ज्यादा परेशानी आयी। रिश्तेदारों के यहां कार्यक्रम है, पर सब छोड़ा। घर में रहकर सिर्फ अकेले पढ़ रहे हैं। उन्होंने वर्ष 2016 से यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी। खुद से घर पर ही पढ़ना शुरू किया। 

घर वालों की वजह से बना रहा मोटिवेशन 
निराशा व हताशा यूपीएससी जर्नी का एक पार्ट है। उर्वशी कहती हैं कि परीक्षा की तैयारी के दौरान उन्हें अपने घर वालों की शक्लें हमेशा याद रहती थी। वह कहती है कि हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। अगर मैं यह सोच लूं कि अब आगे तैयारी करना छोड़ देती हूं, तो हमारे पास कोई विकल्प नहीं था और करने के लिए कुछ नहीं था। ऐसे में जब हमारे घर वाले मेहनत कर रहे हैं, तो मैं कैसे पीछे हट सकती हूं। मेरे दिमाग में यह विचार रहता था कि मैंने तैयारी क्यों शुरू की है। वह कारण मुझे हमेशा याद दिलाता था कि आखिर तैयारी क्यों शुरू की थी। अभी खत्म नहीं करना है। बस थोड़ा प्रयास और करना है, सफलता मिल जाएगी। खुद पर इतना भरोसा था, पर कब प्रयास सफल हो जाएगा, यह नहीं पता था। 

मेरा सिर्फ नाम है चयन पैरेंट्स का हुआ 
वह अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता रविंद्र सिंह सेंगर और मां संतोष सेंगर को देते हुए कहती हैं कि मेरा नाम है, पर सिलेक्शन उनका हुआ है। वह एनसीसी में कैडेट भी थीं। घर से बाहर यदि किसी ने उनको विश्वास दिलाया कि आप यूपीएससी में सफल हो सकते हो तो वह एनसीसी की लक्ष्मी मैम थी। वह हमेशा साथ खड़ी रहने वाली पिलर की तरह हैं। उनकी बड़ी बहन आयुषी सेंगर की शादी हो चुकी है। छोटा भाई आदित्य सेंगर आईआईआईटी नागपुर से कम्प्यूटर साइंस से बीटेक कर रहा है। यह उसका दूसरा वर्ष है। छोटी बहन ज्योति सेंगर फ्रूट सांइस से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है।  

इंटरव्यू को लेकर थी एक्साइटेड
उर्वशी कहती हैं कि वह इंटरव्यू के पहले बहुत एक्साइटेड थी। खुश होकर गयी थी। उन्हें इंटरव्यू वगैरह से डर नहीं लगता है। उन्हें बात करना पसंद है। स्टेज पर परफॉर्म करना पसंद है। स्टेज पर बोलना पसंद है। वह ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में कमेंट्री भी करती थी। इसलिए उन्होंने कोई मॉक वगैरह भी नहीं दिया था। इंटरव्यू के एक दिन पहले मैं समय से सो गयी थी। वह बहुत स्पष्ट थी जो चीज उन्हें नहीं आती है, तो उसके लिए वह माफी मांग लेंगी और यदि आती है तो अच्छे से बता दूंगी।

ध्यान रखें कि क्यों शुरू की तैयारी
उर्वशी कहती हैं कि हमेशा ध्यान रखें कि आपने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी ही क्यों शुरू की। आप तैयारी अपने मन से कर रहे हैं या किसी के कहने पर चाहे पैरेंटस फोर्स कर रहे हों या दोस्त कर रहा है तो मैं भी करूं। इसलिए यूपीएससी की तैयारी नहीं होनी चाहिए। आपके पास अपने खुद के कारण होने चाहिए। दूसरी बात हमेशा मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। कोई  भी पेपर या पद आपके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से बड़ा नहीं हो सकता है तो जो भी आपकी हॉबी है, जो भी आपको पंसद है। उसको साथ में परसू करते रहें। सब चीज छोड़कर तैयारी नहीं करनी चाहिए। तीसरी चीज यह है कि कोई कुछ भी बोलता रहे, आपने एक बार तय कर लिया कि तैयारी करनी है तो करनी है। 

समय को भगवान मानो
पढ़ाई में कांटिन्यूटी होनी चाहिए, एक चीज दस बार पढ़ो। दस चीज एक बार नहीं पढ़ो। समय को भगवान मानो। ऐसे नहीं करना चाहिए कि एक दिन पढ़ लिया और फिर चार दिन नहीं पढ़ा। चार दिन पढ़ा फिर दो दिन नहीं पढ़ा। इस तरह नहीं करना चाहिए। आपको अनुशासन में रहकर अपने टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ाई करनी चाहिए। जो भी निगेटिव चीजें आए तो उसे पॉजिटिव में कनवर्ट करने की कोशिश करो। जैसे की मेरे पास यह नहीं है। एक्सक्यूज करने की बजाए अपना काम शुरू कर दो। एक दिन ऐसा होगा कि सब कुछ तुम्हारे पास भी होगा।

सिविल सर्विस के लिए प्रेरित होने की थी ये वजह
उर्वशी कहती हैं मैं सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ी हूं। वहां पर हमेशा दूसरों के लिए कार्य करना है, देश की सेवा करनी है। ये वैल्यूज थी। दूसरा ग्वालियर के डीएम पी नरहरि थे उन्होंने ग्वालियर को साडा सिटी बनाया था। उस समय हमारे स्कूल में हर क्लास के सामने रैम्प लगे थे तो मैंने पूछा कि यह क्यों हो रहा है। पता लगा कि यह दिव्यांग लोगों के लिए कलेक्टर का आदेश है तो मुझे लगा कि कलेक्टर यह भी कर सकता है। मतलब इतना कर सकता है कि हर स्कूल की हर क्लास पर रैम्प लग गया। उधर मेरी एनसीसी वाली मैम ने मुझमे इतना विश्वास भरा कि तुम भी कर सकती हो। यही मोटिवेशन था।  मुझे लगा कि मेरे जैसे बहुत लोग है, जो बहुत कुछ करना चाहते हैं पर परिस्थितियां ऐसी होती है कि कोई बैकग्रांउड नहीं होता। फाइनेंसियल दबाव ऐसा होता है कि नहीं कर पाते। अगर दस लड़कियों के सामने जाकर बात करूं उसमें से दो लड़कियां भी अपने पैर पर खड़ी हो जाएं तो मैं खुद को सफल समझूंगी।