भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से हाशिए पर रहे वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। 

संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में देश के पिछड़े नागरिकों को आरक्षण देने का विशेष रुप से जिक्र किया गया है। 

केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने जुलाई 2016 में बताया था कि देश में अभी जातिगत आधार पर 49.5% आरक्षण दिया जा रहा है। 

इसमें से अन्य पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी, अनुसूचित जातियों को 15 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों को 7.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है।  

इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि पहाड़ी या दुर्गम राज्यों के अतिरिक्त सामान्य मामलों में आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं दिया जाना चाहिए। अन्यथा आरक्षण का मूल उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। 

इसीलिए आरक्षण लागू कराने के लिए सरकार को संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने की जरुरत है। 

2007 में सांख्यिकी मंत्रालय के एक सर्वे में कहा गया था कि हिंदू आबादी में पिछड़ा वर्ग की संख्या 41% और सवर्णों की संख्या 31% है। 

2014 के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 125 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां हर जातिगत समीकरणों पर सवर्ण उम्मीदवार भारी पड़ते हैं और जीतते हैं। 

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