केन्द्र सरकार ने आखिरकार अपना चुनावी दांव चल दिया है. केन्द्र सरकार ने आर्थिक तौर पर कमजोर सवर्णों के लिए आरक्षण में दस फीसदी का कोटा तय कर करने का फैसला किया है. आज प्रधानमंत्री की अगुवाई में हुई कैबिनेट की बैठक में इस पर मुहर लगी है. ऐसा माना जा रहा है कि मंगलवार को केन्द्र सरकार इसके संसद में पारित करने के लिए पेश करेगी. 

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असल में आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा का ये दांव कितना चलेगा,ये तो चुनाव के बाद ही मालूम चलेगा. लेकिन भाजपा ने चुनावीं दांव चल सभी दलों को सकते में ला दिया है। अभी तक देश में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए पचास फीसदी आरक्षण सरकार के द्वारा दिया जा रहा है और अब केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद आरक्षण 60 फीसदी हो जाएगा. केन्द्र सरकार ने उच्च वर्ग की नाराजगी को देखते हुए इस फैसले को लागू करने का फैसला किया है. 

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कुछ दिन पहले माय-नेशन ने ये खबर ब्रेक की थी कि केन्द्र सरकार एससी,एसटी और ओबीसी जातियों को दी जा रही वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में बिना किसी हस्तक्षेप के, सवर्ण जातियों के गरीबों के लिए एक अलग से श्रेणी तैयार कर रही है. और इसके लिए संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कदम उठाए जा सकते हैं. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50(पचास) फीसदी तक सीमित रखने के आदेश को निरस्त करने के लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव लाया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु, जहां जनसंख्या में जातियों के प्रतिनिधित्व के आधार पर 69(उनहत्तर) फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है.

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दिलचस्प यह है, कि बहुत सारे सवर्ण जाति के वोटरों ने पिछले दिनों मोदी सरकार की तीखी आलोचना की थी, क्योंकि सरकार ने शिड्यूल्ड कास्ट/शिड्यूल्ड ट्राइब अत्याचार निरोधक कानून मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया था. अदालत ने इस एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी के मामले में कुछ सेफगार्ड अपनाने का आदेश दिया था, जिसे केन्द्र सरकार ने मानसून सत्र में संशोधन प्रस्ताव लाकर निरस्त कर दिया था. इससे नाराज होकर कुछ संगठनों ने भारत बंद बुलाकर सरकार के फैसले के विरुद्ध प्रदर्शन किया था। बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर 2019 चुनावों में 'नोटा आंदोलन' शुरु करने का कैंपेन चलाया था।

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बीजेपी ने अपनी इस योजना को अमली जामा पहनाने से पहले ही तैयारियां शुरु कर दी थीं. यही वजह है कि दलित समुदाय से आने वाले बीजेपी नेताओं और एनडीए सहयोगियों ने सवर्ण आरक्षण के विषय में बयान देना शुरु कर दिया था.  इससे पहले राज्य स्तर पर गुजरात में ऐसी कोशिश की जा चुकी है। जहां साल 2016 में बीजेपी सरकार ने 6 लाख प्रतिवर्ष से कम पारिवारिक आय वाले सामान्य श्रेणी के लोगों लिए 10 फीसदी आरक्षण की मांग की थी, लेकिन आरक्षण की अधिकतम सीमा पर सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के आधार पर हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी. राजस्थान में भी सरकार ने कुछ इसी तरह का प्रयास किया था, जिसमें सवर्ण जाति के गरीब लोगों को आरक्षण देने का प्रावधान था, पर वहां भी हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी. 
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