Highlights
अप्रवासियों की बेरोकटोक आवाजाही और बांग्लादेश से सटी सीमा के खुले होने चलते राजनीतिक दलों की वोटबैंक की राजनीति परवान चढ़ती रही। इसे सेकुलरिज्म का लबादा ओढ़ाकर मान्यता भी दे दी गई। यही नहीं सेकुलरिज्म को एक बुरा शब्द बना दिया गया।
राजनीतिक तौर पर सही और अच्छा दिखने की सियासत छोड़ने का समय आ गया है। ये वक्त अवैध तरीके से भारत में घुस रहे और बस रहे लोगों को दो टूक 'घुसपैठियों भारत छोड़ो' कहने का है।
असम के बाद पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू करने की जरूरत है। ताकि चार 'डी' को हासिल किया जा सके - डिटेक्ट इल्लीगल्स यानी अवैध घुसपैठियों की पहचान। डिस्फ्रेंचाइज एंड डिपोर्ट देम - यानी पल्ला झाड़कर उन्हें वापस भेजा जाए और डिमार्क द बॉर्डर यानी सीमाओं का सही से निर्धारण।
भारत का अपने दो नजदीकी मित्रों बांग्लादेश और म्यांमार से कोई बैर नहीं है। हम उनके सर्वश्रेष्ठ हुनर का अपने देश में स्वागत करते हैं। उनके यहां काम करने और पैसा कमाने का कोई विरोध नहीं है। अगर वह नागरिकता भी चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए आधिकारिक तौर पर आवेदन करना चाहिए।
बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की अवैध घुसपैठ हर हाल में बंद होनी चाहिए। समृद्ध बांग्लादेश और शांतिपूर्ण म्यांमार निश्चित तौर पर भारत के हित में है। लेकिन तब तक, हमें कड़े कदम उठाने होंगे। अवैध घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने के लिए 'दूसरा भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू करने की जरूरत है। भारत में रहकर जहर फैलाने की सोच रखने वाले सांप के फन को कुचलना ही होगा।
कारण ये हैं...
संसाधनों पर बढ़ता दबाव
2016 में भारत सरकार द्वारा राज्य सभा में पेश किए गए अनुमान के अनुसार देश में पहले ही दो करोड़ से ज्यादा अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं। यह संख्या दिल्ली की आबादी से ज्यादा है। इसमें म्यांमार से अवैध तरीके से आए रोहिंग्याओं की आधिकारिक सूची (40,000) को जोड़ लें तो आंकड़ा ढाई करोड़ के करीब पहुंच जाता है। हालांकि अनाधिकृत आंकड़े इससे कही ज्यादा हैं।
भारत आज 7% की दर से आर्थिक तरक्की कर रहा है। वह दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। बावजूद इसके एक ऐसा देश जिसकी प्रति व्यक्ति आय महज 2,000 डॉलर यानी 1,37,000 रुपये प्रतिवर्ष है, वह यह बोझ उठाने की स्थिति में नहीं है कि उसके गरीब नागरिकों को मिलने वाली नौकरियों और आजीविका के साधनों पर बाहरी आकर कब्जा कर लें। हमारी सार्वजनिक वितरण प्रणाली का दुरुपयोग ऐसे लोग करें जिन्होंने फर्जी तरीके से राशनकार्ड और दूसरे दस्तावेज बना लिए हैं।
सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा
बुधवार रात जम्मू पुलिस ने अवैध बसाहट में छापा मार तीन रोहिंग्याओं को गिरफ्तार किया था। उनके पास से 30 लाख रुपये नकद बरामद किए गए। इन तथाकथित वंचित और सताए गए अप्रवासियों के पास इतनी बड़ी मात्रा में नकद कहां से आया? ये इस पैसे का क्या कर रहे थे?
इसे भी पढ़ें - जम्मू में तीन रोहिंग्या गिरफ्तार, 2 भागे, 30 लाख रुपये बरामद
भारतीय खुफिया एजेंसियों ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि अल कायदा और हाफिज सईद का लश्कर-ए-तय्यबा रोहिंग्याओं को आतंकी संगठनों में भर्ती करने की फिराक में हैं। हरकत-उल-जिहाद इस्लामी-अराकन और अका मुल मुजाहिदीन पहले ही म्यांमार में सक्रिय हैं। ये संगठन इन लोगों के बीच तेजी से अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं।
जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश इस समय देश की पूर्वी सीमा और केरल के दक्षिण पश्चिम तटीय इलाके में सक्रिय है। देश की पूर्वोत्तर सीमा पर बड़ी संख्या में रहने वाले अवैध प्रवासियों पर उसकी नजर है।
हाल में आई रिपोर्टों के अनुसार, सीरिया में अल कायदा के लिए लड़ने वाला एक ब्रिटिश रोहिंग्या आतंकवादी समीउन रहमान बांग्लादेश के चटगांव से भारत के मिजोरम में घुसते समय पकड़ा गया था। वह यहां रह रहे रोहिंग्याओं को जिहाद के लिए तैयार करने के मकसद से आया था।
क्या भारत कानूनी अथवा नैतिक रूप से अपने मौजूदा और भविष्य के दुश्मनों को पालने-पोसने के लिए बाध्य है?
धीरे-धीरे हुआ डेमोग्राफिक बदलाव
पाकिस्तान भारत से मुसलमानों के लिए अलग 'मुल्क' की मांग के साथ अलग हुआ। बाद में पूर्वी पाकिस्तान ही अलग होकर बांग्लादेश बना। हालांकि भारत ने सेकुलर बने रहने का फैसला किया। इसका यह अर्थ नहीं है कि हम किसी को अपनी डेमोग्राफी में बदलाव की इजाजत दे दें और हिंदुओं को हाशिए पर जाने दें। बंटवारे के समय बंगाल में मुस्लिम आबादी 12% थी। आज यह 27% पहुंच गई है। इसी तरह असम में भी धीरे-धीरे डेमोग्राफी बदलती चली गई। अब जब राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अमल में लाया जा रहा है तो उसका कुछ लोग विरोध कर रहे हैं। मेरा मानना है कि पूरे देश में डेमोग्राफिक बदलाव को रोकने के लिए एनआरसी को लागू किए जाने की जरूरत है।
संस्कृति पर पड़ने लगता है असर
जब भी कहीं डेमोग्राफिक (जनसांख्यिकीय) बदलाव होता है, स्थानीय संस्कृति सीधे प्रभावित होने लगती है। उसे बड़े बदलाव के दौर से गुजरना पड़ता है। संकुचित, अत्याचारी और कट्टरपंथी नजरिया उसकी जगह लेने लगता है। बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले की आबादी में 64% मुस्लिम हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बांग्लादेशियों के चलते वहां की डेमोग्राफी बदल गई। मुस्लिम बहुल इस जिले में कुछ साल पहले एक फरमान जारी हुआ। कहा गया कि लड़कियां शॉर्ट्स पहनकर फुटबॉल नहीं खेलेंगी। या कहें, उन्हें कोई भी खेल नहीं खेलने के लिए कह दिया गया।
यही नहीं मोहल्लों में वर्षों से चली आ रही दुर्गा पूजा और स्कूलों में हो रही सरस्वती पूजा भी रोक दी गई। इसके लिए अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोगों के ऐतराज का हवाला दिया गया।
गो तस्करी और ग्रामीण इलाकों में बर्बादी
वामपंथी और तथाकथित उदार बुद्धिजीवी गोरक्षा के नाम पर होने वाले हमलों पर तो खूब हायतौबा मचाते हैं लेकिन देशभर में गो तस्करी करने वाले माफिया द्वारा की जाने वाली हत्याओं पर उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकलता। अवैध घुसपैठिये इस तरह के कई धंधे चला रहे हैं। गोतस्करी की लगभग सारी गतिविधियां बांग्लादेश सीमा पर होती हैं।
ग्रामीण इलाके में रहने वाले एक गरीब भारतीय के लिए जानवर और मुर्गीपालन फसल खराब की स्थिति में आजीविका का अंतिम सहारा होता है। जब उसकी गाय चोरी हो जाती है तो वह अपने धर्म की नहीं, भूख की चिंता करता है। वह ऐसे समूहों को पैसा देता है, जो जानवरों की चोरी को रोक सकें।
मोदी विरोधी माहौल बनाने वाले कभी यह नहीं बताते कि गोरक्षकों से जुड़ी हत्या के सबसे ज्यादा मामले 2017 में ममता बनर्जी के शासन वाले बंगाल में सामने आए। देश भर में हुई नौ मौतों में से पांच मौतें बंगाल में हुईं।
यह सही है कि हमें बांग्लादेश के साथ मित्रतापूर्ण माहौल रखने की जरूरत हैं लेकिन सीमा को लेकर कोई ढिलाई नहीं बरती जा सकती।
वोट बैंक की राजनीति
अप्रवासियों की बेरोकटोक आवाजाही और बांग्लादेश से सटी सीमा के खुले होने चलते राजनीतिक दलों की वोटबैंक की राजनीति परवान चढ़ती रही। इसे सेकुलरिज्म का लबादा ओढ़ाकर मान्यता भी दे दी गई। यही नहीं सेकुलरिज्म को एक बुरा शब्द बना दिया गया। बंगाल में शिक्षा विभाग इंद्रधनुष के लिए इस्तेमाल होने वाले स्थानीय शब्द 'रामधोनु' का प्रयोग करने से भी घबराता है। उन्हें डर इस बात का होता है कि मुस्लिम 'राम' शब्द का इस्तेमाल किए जाने का विरोध करेंगे। इसलिए स्कूल की किताबों में इसे बदलकर 'रोगधोनु' कर दिया गया।
अवैध प्रवासियों को शरण देने के नाम पर हमें इस विभाजनकारी और विध्वंसकारी राजनीति की आवश्यकता नहीं है। हां, हमारी संस्कृति 'अतिथि देवो भवः' यानी 'मेहमान भगवान होता है' के विचार को मानने वाली है। लेकिन हमें यह चुनने का अधिकार है कि कौन हमारा मेहमान होगा।
अब समय आ गया है कि ये बात जोरशोर से कही जाए...जो देश के लिए खतरा हैं, वो भारत छोड़ें।
Last Updated Aug 9, 2018, 6:36 PM IST