कांग्रेस के लिए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन मुसीबत बनता जा रहा है। खासतौर से मध्य प्रदेश में जहां कांग्रेस सहयोगी और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बना रही है। अगर पार्टी के भीतर नेताओं का ये असंतोष शांत नहीं किया गया तो इसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है।
नई दिल्ली--कांग्रेस के लिए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन मुसीबत बनता जा रहा है। खासतौर से मध्य प्रदेश में जहां कांग्रेस सहयोगी और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बना रही है। अगर पार्टी के भीतर नेताओं का ये असंतोष शांत नहीं किया गया तो इसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है।
असल में तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल का गठन करना कांग्रेस के लिए कठिन डगर थी। तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री कैबिनेट के गठन के लिए दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मिले और उसके बाद मंत्रियों की सूची तैयार हुई। लेकिन इस गठन के बाद विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए हैं।
अगर इस असंतोष जल्द शांत नहीं किया गया तो पार्टी का लोकसभा चुनाव में अधिक सीटों का सपना टूट सकता है। राजस्थान में जोर आजमाइश के चलते 24 घंटे बीत जाने के बाद भी मंत्रियों को विभाग नहीं बांटे जा सके हैं। मंत्री नहीं बनाए जाने से आधा दर्जन वरिष्ठ विधायक नाखुश हैं।
कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का भी है। छत्तीसगढ़ में मंत्री बनने से रह गए धनेंद्र साहू, अमितेश शुक्ला और सत्यनारायण शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं को मनाने में अभी तक प्रभारी पीएल पुनिया कामयाब नहीं हो सकें हैं। इन नेताओं ने सीधे राहुल गांधी तक अपनी नाराजगी पहुंचाने की बात प्रभारी को कह दी है।
मध्य प्रदेश में देर रात 12 बजे के बाद तक विधायकों के नाम मंत्रियों की सूची में जोड़े और हटाए जाते रहे। बड़े नेताओं के बीच खींचतान इतनी ज्यादा थी कि जिन विधायकों को मंत्री बनाया है, उन्हें भी देर रात ही फोन किया गया।
वरिष्ठ विधायक बिसाहू लाल सिंह, केपी सिंह और ऐदल सिंह कंसाना ने अपनी नाखुशी प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के समक्ष जाहिर भी कर दी है। जबकि शपथ ग्रहण समारोह से निर्दलीय विधायक और सपा-बसपा ने दूरी बनाकर रखी और उन्होंने एक होटल में आगे की रणनीति पर चर्चा की।
हालांकि ऐसा भी कहा जा रहा है कि बड़ी संख्या में संसदीय सचिव बनाकर असंतुष्ट विधायकों के गुस्से को शांत किया जा सकता। राजस्थान में मंत्री नहीं बनाए जाने की वजह से नाखुश विधायकों की संख्या कम से कम आधा दर्जन है। क्षेत्रीय संतुलन की तमाम दलीलों के बावजूद 14 जिलों से कोई मंत्री नहीं है।
नाराज विधायक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तक अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे के दिल्ली लौटने का इंतजार कर रहे हैं। असल में कांग्रेस की नजर तीनों राज्यों की 65 लोकसभा सीटों पर है और कांग्रेस यहां कम से कम 40 सीटें जीतना चाहती है। अगर मंत्री बनने से रह गए विधायकों को जल्द नहीं मनाया जा सका तो कांग्रेस का यह सपना टूट भी सकता है।