कठुआ रेपः पीड़ित परिवार मदद को मोहताज, वकील दीपिका राजावत की सरकारी बंगले में ऐश

जम्मू के गांधीनगर में वीवीआईपी लाइन में सरकारी बंगला नंबर 28-सी में रह रही हैं दीपिका राजावत। पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने किया था अलॉट।

Kathua Victim's family on roads, Deepika Rajawat enjoys Government Accommodation

अप्रैल के महीने में पूरे देश को हिला देने वाला कठुआ रेप एवं हत्या का मामला एक बार फिर चर्चा में है। इस मामले में नया खुलासा पीड़ित परिवार का केस लड़ रही दीपिका सिंह राजावत को लेकर हुआ है। भले ही पीड़ित परिवार बकरियां और भेड़े पालकर अपनी गुजर बसर कर रहा हो लेकिन दीपिका सिंह सरकार बंगले में रह रही हैं। उन्हें सुरक्षा भी मिली हुई है। 

दीपिका सिंह राजावत को जम्मू के गांधीनगर में वीवीआईपी लाइन में सरकारी बंगला नंबर 28-सी मिला है। यहीं पीएमओ में डा. जितेंद्र सिंह का आवास भी है। इस केस के एवज में मिल रही सुविधाओं के बावजूद पठानकोट में चल रही सुनवाई में वह महज दो बार ही कोर्ट पहुंची हैं। यही वजह है कि कुछ दिन पहले ही पीड़ित परिवार ने कोर्ट से दीपिका को इस मामले से हटाने का अनुरोध किया है। परिवार के मुताबिक, वह 110 सुनवाई में महज दो बार ही पहुंची हैं। 

खास बात यह कि इस मामले में बकरवाल समुदाय से आने वाला पीड़ित परिवार अब भी सरकार मदद का मोहताज है। वह बकरी और भेड़ें पालकर ही गुजर-बसर कर रहा है। सांबा जिले में चिंची माता मंदिर के पास के जंगलों के इलाके में रहता है। पीड़िता के पिता को यह भी नहीं पता है कि उनकी बेटी की रेप के बाद हत्या का केस लड़ रही वकील सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा रही हैं। 'माय नेशन' से बात करते हुए पीड़ित के पिता ने कहा, 'हमें कुछ नहीं मिला।' वह अभी तक बेटी के साथ बर्बरता और मौत के सदमे से उबर नहीं पाए हैं। 

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इस केस की बदौलत दीपिका सिंह राजावत को नाम और शोहरत हासिल हुई है। हाल ही में उन्हें यह केस लड़ने के लिए इंडियन मर्चेंट चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की महिला शाखा ने 'वूमन ऑफ द ईयर' से भी सम्मानित किया। 

इस मामले में कथित 'टुकड़े-टुकड़े' गैंग का रसाना के कूठा गांव के हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश का भी खुलासा हो चुका है। स्थानीय हिंदू समुदाय को बदनाम करने के लिए 'झूठ की इमारत' उस समय गिर गई जब खुद को बकरवाल समुदाय का एक्टिविस्ट बताने वाला तालिब हुसैन खुद रेप के आरोपों में जेल चला गया। उसी ने कठुआ रेप मामले को 'सांप्रदायिक रंग' देने की शुरुआत की थी। इसके बाद जेएनयू की छात्रा नेता शहला रशीद कठुआ केस के नाम पर जुटाए गए चंदे को लेकर विवादों में घिर गई। यहां तक कि उन्होंने अपने टि्वटर एकाउंट भी बंद कर दिया। 

जब 'माय नेशन' ने उनसे सीधे 'टुकड़े-टुकड़े' गैंग को लेकर सवाल किया तो उन्होंने इससे पल्ला झाड़ लिया। हालांकि वह इस दौरान असहज नजर आईं।

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पीड़िता के पिता के मुताबिक, 'वकील दीपिका राजावत का कहना है कि पठानकोट में उनकी जान को खतरा है। इसलिए वह सुनवाई में शामिल नहीं हो रही है। वह 110 सुनवाई में सिर्फ दो में शामिल हुई हैं। हमने इसलिए कोर्ट में हलफनामा देकर उन्हें हटाने को अनुरोध किया था।'

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दीपिका राजावत पर हमला बोलते बचाव पक्ष के वकील अंकुर शर्मा ने इस पूरे मामले को ही  'प्रोपेगैंडा' बताया। उन्होंने कहा, 'मासूम बच्ची को न्याय अदालत से ही मिल सकता है, टीवी स्टूडियो में नहीं। दीपिका राजावत को इस केस के चलते सुरक्षा, सरकारी बंगला और अवार्ड मिले हैं। उन्होंने शुरुआत में खतरा उठाया, मेहनत की। खुद से केस लड़ने की शुरुआत की तभी उन्हें ये सब मिला, लेकिन अब जब पठानकोट में ट्रायल शुरू हुआ है, तो वह गायब हैं।'

दीपिका राजावत को मिले सरकारी सुविधाओं से जुड़े सवाल पर अंकुर कहते हैं, 'तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और राज्य के इस्लामिक प्रतिष्ठानों ने जम्मू में डेमोग्राफिक बदलाव के लिए इस केस का इस्तेमाल किया। उन्होंने एक वर्ग को निशाना बनाने के लिए 'प्रोपेगैंडा' चलाने की खातिर उसी वर्ग से एक व्यक्ति को चुना और उसका इस्तेमाल किया। महबूबा मुफ्ती ने जम्मू विरोधी एजेंडा चलाने और इस्लामिक-प्रभाव दिखाने के लिए दीपिका को सरकारी बंगला दिया। साथ ही ऐसे बयान भी दिलवाए जिससे सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सुरक्षा भी दिलाई।'

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