पेरिस-- प्रथम विश्वयुद्ध के खत्म होने के 100 साल पूरे होने पर पेरिस में आयोजित कार्यक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही खुद को बड़े गर्व के साथ ‘‘राष्ट्रवादी’’ बताया लेकिन उनकी यह बात वहां पर मौजूद ज्यादातर लोगों पसंद नहीं आई। इस दौरान अधिकतर समय ट्रंप अलग-थलग ही नजर आए। यूं कहा जाए तो पेरिस में डोनाल्ड ट्रंप के लिये उनकी ‘अमेरिका प्रथम’ का मतलब अमेरिका का अलग-थलग पड़ना था।

ट्रंप ने अपनी यात्रा की शुरुआत फ्रांस के राष्ट्रपति के यूरोपीय रक्षा बल के आह्वान की आलोचना वाले ट्वीट से की। हालांकि कार्यक्रम में वह अकेले ही पहुंचे और अपनी यात्रा का अधिकतर समय उन्होंने मध्य पेरिस में अमेरिकी राजदूत के घर में सबकी नजरों से दूर ही बिताया।

उन्होंने ‘राष्ट्रवाद के अलग-थलग पड़ने के खतरे’ पर भाषण सुना। इसके बाद पेरिस शांति शिखर सम्मेलन के उद्घाटन की तैयारियों के शुरू होने से ठीक पहले वह अमेरिका के लिये रवाना हो गए।

उनकी इस यात्रा ने स्पष्ट किया कि करीब दो साल पहले राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के बाद ट्रंप ने नाटकीय रूप से दशकों पुरानी अमेरिकी विदेश नीतियों को खत्म किया है। इससे सहयोगी देशों को झटका लगा।

इसमें फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों की वह चेतावनी भी शामिल है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘जिन आसुरी ताकतों के कारण’’ प्रथम विश्वयुद्ध हुआ और लाखों लोगों की मौत हुई वे एक बार फिर अपना सिर उठा रहे हैं।

मैक्रों ने उन बहुराष्ट्रीय संगठनों और सहयोग को फिर से समावेशित करने का अनुरोध किया है, जिनसे ट्रंप हट चुके हैं। उन्होंने कहा कि देशभक्ति राष्ट्रवाद के बिल्कुल विपरीत है।

मैक्रों ने कहा कि जब कोई राष्ट्र अपने हितों को आगे रखता है और यह फैसला करता है कि उसे किसी की परवाह नहीं है, तो वे एक राष्ट्र के पास मौजूद सबसे कीमती चीज उसके नैतिक मूल्यों को मिटा देता है।

ट्रंप के जाने के बाद जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने भी शांति के मंच से वैश्विक सहयोग पर जोर देते हुए कहा कि प्रथम विश्वयुद्ध ने यह स्पष्ट किया है कि ‘‘राजनीति और कूटनीति में अगर समझौता करने की प्रवृत्ति नहीं अपनाई जाए तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।’’

ट्रंप ने साथी नेताओं के साथ भी बातचीत नहीं की और ना ही वह शनिवार को म्युजी दीओरसे में मैक्रों की मेजबानी में विश्व के नेताओं के लिए आयोजित स्वागत भोज में शामिल हुए।