श्रीलंका में भारत को चीन पर बड़ी कूटनीतिक सफलता हासिल हुई है। श्रीलंकाई सरकार ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा से पहले भारत को तोहफा दिया है। श्रीलंका ने जाफना इलाके में भारतीय कंपनी के साथ हाउसिंग कॉन्ट्रेक्ट किया है।
शनिवार को श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भारत की यात्रा पर आ रहे हैं, इससे पहले श्रीलंका की तरफ से यह बड़ा फैसला लिया गया है। जो कॉन्ट्रैक्ट भारतीय कंपनी को मिला है वह पहले चीनी कंपनी के साथ हुआ था, बाद में इसे निरस्त कर दिया गया है।
जाफना इलाके में इन घरों को बनाया जाना है। ऐसे में चीन के साथ कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने के पीछे जो वजह बताई गई है वो यह है कि जाफना इलाके के लोग ईंट से बने घरों की मांग कर रहे हैं जबकि चीनी कंपनी वहां कॉन्क्रीट वाले घर बनाने जा रही थी। दरअसल श्रीलंका के उत्तरी हिस्से में तमीलों की बड़ी आबादी है और वहां के लोग भारतीय शैली में बने घरों में रहना पसंद करते हैं।
एलटीटीई विद्रोहियों के साथ चले 26 साल के युद्ध के दौरान ध्वस्त हुए घरों के पुनर्निर्माण के पहले चरण में भारतीय कंपनी उत्तरी श्रीलंका में इन घरों का निर्माण करेगा।
चीन की सरकारी कंपनी चाइना रेलवे पेइचिंग इंजिनियरिंग ग्रुप को लिमिटेड ने अप्रैल में श्रीलंका के जाफना में 40000 घरों को बनाने का 30 करोड़ डॉलर का ठेका हासिल किया था। इस परियाजना को चीन के एग्जिम बैंक से फंडिंग हो रही थी।
विगत बुधवार को श्रीलंका सरकार ने फैसला बदलते हुए यह करार भारतीय कंपनी एनडी एंटरप्राइजेज से करने का फैसला किया। सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक 3580 करोड़ रुपये से 28000 घरों को बनाने वाला नया प्रस्ताव पास हुआ है। प्रवक्ता ने यह भी बताया कि ऐसे कुल 65000 घरों की जरूरत है, जिनमें फिलहाल 3580 घरों को बनाने को लेकर प्रस्ताव पास हुआ है।
श्रीलंका सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि बाकी घरों को बनाने का ठेका उन कंपनियों को दिया जाएगा जो कम कीमत पर घर बनाने को तैयार होंगी।
बता दें कि चीन अपनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स यानी मोतियों की माला रणनीति के तहत एशिया के कई देशों में बंदरगाह बना रहा है। जिसमें श्रीलंका के बंदरगाह का पुनर्निर्माण भी शामिल है। इसके अलावा भी चीन ने श्रीलंका ने चीन कुछ प्रोजेक्ट्स हासिल किए हैं लेकिन श्रीलंका में बन रहे बंदरगाह पर अत्यधिक खर्च होने का हवाला दिया जा रहा है। श्रीलंका में चीन के साथ बंदरगाह बनाने की योजना की आलोचना भी हो रही है। आलोचकों का मानना है कि फिजूलखर्ची से देश पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा।