दुनिया के सबसे ऊंचे जंग के मैदान में भारतीय सेना के अद्भुत शौर्य की गाथा है 'ऑपरेशन मेघदूत'

By Shashank Shekhar  |  First Published Apr 13, 2019, 4:28 PM IST

सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने की पाकिस्तान की साजिश को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को एक बड़ा अभियान छेड़ा था। इसे 'ऑपरेशन मेघदूत' का नाम दिया गया। इस तरह का सैन्य अभियान दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धक्षेत्र में पहली बार चलाया गया। 

दुनिया की सबसे ऊंची और सांसे जमा देने वाली युद्धभूमि पर 13 अप्रैल को सियाचिन दिवस मनाया गया। 'सियाचिन के योद्धाओं' ने परंपरागत तरीके से ब्रिगेडियर भूपेश हाडा के नेतृत्व में सियाचिन वार मेमोरियल पर यहां शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी।

सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने की पाकिस्तान की साजिश को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को एक बड़ा अभियान छेड़ा था। इसे 'ऑपरेशन मेघदूत' का नाम दिया गया। इस तरह का सैन्य अभियान दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धक्षेत्र में पहली बार चलाया गया। 

सेना की कार्रवाई बदौलत पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का नियंत्रण हो गया। ऑपरेशन मेघदूत के 35 साल बाद भी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना मुस्तैद है। इस ऑपरेशन में मिली जीत भारतीय सेना के शौर्य, साहस और त्याग की मिसाल है। 

दरअसल, भारत को खुफिया सूचना मिली थी कि पाकिस्‍तान ने सियाचिन में कब्‍जे के लिए बरजिल फोर्स बनाई थी। भारतीय सेना को सियाचिन से पीछे खदड़ने के लिए पाकिस्‍तान ने 'ऑपरेशन अबाबील' लॉन्‍च किया था। इस ऑपरेशन का मकसद सिया ला और बिलाफोंद ला पर कब्‍जा करना था। पाकिस्‍तान ने 17 अप्रैल 1984 को सियाचिन पर कब्‍जा कर लेने की योजना बनाई थी। लेकिन भारत ने पाकिस्‍तान को हैरत में डालते हुए उससे पहले ही सियाचिन पर कब्‍जा करने के लिए 'ऑपरेशन मेघदूत' शुरू कर दिया। 

इस ऑपरेशन को सफल बनाने में वायु सेना के एमआई-17, एमआई 6 एमआई 8 और चीता हेलीकॉप्‍टरों ने अहम भूमिका निभाई थी। ऑपरेशन का पहला चरण मार्च 1984 में ग्लेशियर के पूर्वी बेस के लिए पैदल मार्च के साथ शुरू हुआ। 12 अप्रैल 1984 को एमआई 17 हेलीकॉप्टर से जवानों के लिए जरूरी कपड़े और सामान पहुंचाया गया। तत्‍कालीन कैप्‍टन रिटायर्ड लेफिटनेंट जनरल संजय कुलकर्णी उस दल का हिस्सा थे जिन्‍हें बिलाफोंड ला पर एयरड्रॉप किया जाना था। यह दल करीब चालीस जवानों का था। चीता हेलीकॉप्‍टर ने यहां पर जवानों को लाने के लिए 17 राउंड लगाए। 13 अप्रैल को सुबह सात बजे यहां पर तिरंगा लहरा दिया गया था। 

इसके बाद, पाकिस्‍तान की तरफ से पहला हमला 23 जून को सुबह लगभग पांच बजे किया गया था। इसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया और 26 पाकिस्‍तानी जवानों को मार गिराया। फिर अगस्‍त में भी पाकिस्‍तान ने हमला किया लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी। इसमें पाकिस्‍तान को तीस जवानों को खोना पड़ा था। इस बीच गियांग ला के सबसे ऊंचे प्‍वाइंट पर भी भारतीय जवानों ने कब्‍जा जमा लिया था। इस तरह से पूरा सियाचिन भारत का हो चुका था। आज भारतीय सेना 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, 3 प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर मुस्तैद है। 

1987 में और फिर 1989 में भी पाकिस्‍तान ने यहां पर हमला किया था। यहां की पोस्ट दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र की सबसे ऊंची पोस्‍ट है, जो समुद्र स्तर से 22,143 फीट (6,74 9 मीटर) की ऊंचाई पर है। भारत सरकार के मुताबिक सियाचिन ग्लेशियर में चलाए गए ऑपरेशन मेघदूत से लेकर नवंबर, 2016 तक, 35 अधिकारी और 887 जेसीओ/ ओआरएस अपनी शहादत दे चुके हैं।

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