सामान्य तौर पर भगवान शिव की संतति के रुप में हम कार्तिकेय और गणेश को ही जानते हैं। गणपति पूजन अभी समाप्त ही हुआ है और कार्तिकेय का सबरीमला में भव्य मंदिर मौजूद है।  लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती की एक लाड़ली बेटी भी है।

देवाधिदेव की इस बेटी का नाम है मनसा देवी। देश में कई जगह उनके प्रसिद्ध मंदिर हैं। जहां मनोकामना पूर्ति के लिए उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है खुश होने पर भक्तों की इच्छा मात्र से मनसा देवी उनकी हर जरुरत पूरी कर देती हैं। क्योंकि वह भक्तों के मन में निवास करती हैं। 

मनसा देवी के जन्म की दो कथाएं मिलती हैं। 

एक कथा के मुताबिक भगवान शिव और पार्वती मानसरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे। तब दोनों का तेज इकट्ठा होकर कमल के एक पत्ते पर जमा हो गया। जिसका संरक्षण करने के लिए वहां मौजूद पांच सर्पिणियों ने इस तेज को अपनी कुंडली में लपेट कर किया। समय आने पर महादेव और जगदंबा का यह तेज एक कन्या के रुप में बदल गया।  जिसे बड़ी होने पर मनसा देवी के रुप में जाना गया। 

दूसरी कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सुंदर योगी का रुप धारण करके धरती पर विचरण कर रहे थे। उनका सुंदर रुप देखकर कपड़े धो रही एक ग्रामीण स्त्री उनपर मोहित हो गई और उन्हें अपने वश में करने के लिए भगवान शिव के ही बनाए शाबर वशीकरण मंत्र का ही प्रयोग कर दिया। अपने बनाए तंत्र की मर्यादा रखने के लिए शिव उस स्त्री के वशीकरण पाश में बंध गए। इस संबंध से एक बच्ची उत्पन्न हुई, जो मनसा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। इस कथा के अनुसार मनसा माता का आधा अंश दैवी है तो आधा अंश मनुष्य का।

बाद में जब मनसा देवी भगवान शिव और माता पार्वती के पास कैलाश पहुंचीं तो महादेव के गले में लटके नागराज वासुकि ने भगवान शिव से प्रार्थना की, कि मनसा देवी को नागलोक भेज दिया जाए। क्योंकि विश्व के प्रमुख अष्टनागों(अनंत, वासुकि, पद्य, महापद्य, तक्षक, कुलीर, कर्कोटक और शंख) की कोई बहन नहीं है। 

भगवान शिव ने वासुकि की बात मानते हुए उन्हें नागलोक का साम्राज्य प्रदान किया। इस प्रकार मनसा देवी संपूर्ण नाग जाति की बहन और पुत्री मानी गईं और संपूर्ण नागजाति को उनके अधिकार में माना जाता है। कोई भी सर्प उनके आदेश को टाल नहीं सकता है।   

नाग जाति पर मनसा देवी का एक बड़ा अहसान यह भी है कि भगवान कृष्ण के भांजे परीक्षित को तक्षक नाग ने जब डंस लिया तो उनके बेटे जनमेजय ने सर्प यज्ञ कराया। जिसकी वजह से दुनिया से सर्प जाति के विलुप्त होने लगी। इस यज्ञ को मनसा देवी के बेटे आस्तीक ने बंद करा दिया। जिसकी वजह से धरती पर सर्प जाति का अस्तित्व बचा। 

मनसा देवी का आसन हंस माना जाता है। उनके मुकुट और अंगरक्षक के तौर पर विशिष्ट सर्प उन्हें घेरे हते हैं।  उनके दो हाथो में अमृत भरा सफेद और विष भरा लाल कमल होता है। जिनके जरिए वो लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करती हैं। 

इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता। ये नाम इस प्रकार है जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी। हरिद्वार और चंडीगढ़ में मनसा देवी के विश्वप्रसिद्ध मंदिर है।

मनसा देवी की उत्पत्ति से पहले धरती पर सर्पों की पूजा नहीं होती थी लेकिन मनसा देवी ने अपने पिता भगवान शिव से जिद करके मनुष्यों से सर्प पूजा शुरु कराई। जिसके बाद भारत के अलग अलग हिस्सों में कई जगह सर्प मंदिर भी बनाए गए। पश्चिम बंगाल में भी मनसा देवी की पूजा की परंपरा प्रचलित है। 

मनसा देवी ने सर्प उपासना शुरु करवाने के लिए पिता महादेव से जो जिद की थी और उसका क्या अंजाम रहा। इसकी भी अलग ही कथा है। जिसके बारे में आगे के अंक में बताया जाएगा।