नैनीताल: एप्पल के स्टीव जॉब्स और फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग जब जीवन से परेशान हो चुके थे, तब वह बाबा नीम करौरी की शरण में पहुंचे थे। जिसके बाद उन्हें जो सफलता मिली उसे आज दुनिया देख रही है। 

बाबा नीब करौरी के शिष्य दुनिया भर में हैं। हालांकि इनकी तीन शिष्याएं मुख्य रूप से रही है। जिनमे एक का नाम है मौनी माँ। नैनीताल से 27 किमी दूर पहाड़ियों के बीच उनका एक छोटा सा आश्रम बना हुआ है जहां लोग उस अद्भुत शिष्या के बारे में जानने और दर्शन करने पहुंचते हैं।     

13 साल में हो गयी थी शादी लेकिन अध्यात्म से जुड़ाव बना रहा
मौनी माँ के बेटे गजेंद्र सिंह बिष्ट जोकि अब आश्रम के ट्रस्टी हैं बताते हैं कि माँ की शादी 13 से 14 साल में हो गयी थी। अल्मोड़ा की रहने वाली माता की शादी नैनीताल में हुई थी। आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने की वजह से लगातार मंदिरों में जाया करती थी। उन्हें घरेलू कामों से ज्यादा साधू संतों के सत्संग में रुचि थी। जिसकी वजह से पति पत्नी को परिवार ने अलग कर दिया।

नैनीताल के हनुमानगढ़ी में हुई बाबा नीम करौली बाबा से हुई मुलाकात
मौनी मां तब नैनीताल हनुमानगढ़ी में पहली बार आये बाबा नीब करौली महाराज के बारे में पता चला तो वह वहां पहुँच गयी. जहां उनको देख कर उन्हें अपना गुरु बना लिया और उनके लिए समर्पित हो गयी।  इस दौरान महाराज ने माँ की कई बार परीक्षा ली। एक बार माँ नैनीताल से भुमियाधार पहुंची तो पता चला महाराज हल्द्वानी चले गए हैं। उस दौरान रास्ते बेहतर न थे ज्यादातर पैदल ही रास्ता तय करना होता था. फिर भी माँ ने हल्द्वानी का रुख कर लिया और उनसे मिलने पैदल ही चल पड़ी।
 इस तरह कई बार महाराज उन्हें कुटिया के अंदर ही रहने को कहते तो वह कई कई दिन कुटिया से बाहर नही आती। उनके समर्पण को देखते हुए बाबा नीब करौरी महाराज ने उनका नाम भक्ति रख दिया। जिसके बाद सब उन्हें भक्ति मां के नाम से ही जानने लगे।

62 सालों के लिए चुप हो गयी थीं भक्ति मां
भक्ति मां साधू संतों के बीच रहती थी। साथ ही महिला थी तो वह बहुत बोलती थी। कई बार घर में इस कारण क्लेश भी होता था। एक बार बाबा ने भी माँ से कहा तुम बहुत बोलती हो मौन ले लो। माँ बाबा की पक्की शिष्या थी उसने भी मौन ले लिया और फिर अंतिम सांस तक नहीं बोली। 
भक्ति मां के बेटे ने बताया कि जब मेरी शादी थी तो मैंने महाराज से कहा कि आप कह दो माँ बोले मेरी शादी है तो महाराज ने कहा मैं क्यों कहूँ, तुम कहो। माँ को जब पता चला तो उन्होंने अपना झोला उठाया और चल दी फिर बड़ी मां मनौवल के बाद रुकीं। उनका मानना था कि मेरे न बोलने की वजह से बच्चे की नयी जिंदगी पर कुछ गलत असर न पड़े।

वर्ष 2000 से बनना शुरू हुआ था माँ का आश्रम
गजेंद्र बताते हैं माँ उस समय भीमताल के एक मंदिर में रहा करती थी. तभी उन्हें लगा कि एक मंदिर बनाया जाए जिसमे हनुमान की 52 फीट की प्रतिमा हो। उस समय उनकी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. उन्होंने महाराज का संस्मरण किया फिर उनकी मनोकामना पूरी करने के लोग अपने आप सामने आने लगे और भीमताल से लगभग 10 से 15 किमी दूर नौकुचियाताल में उनका आश्रम भी बना और हनुमान की 52 फीट की प्रतिमा भी बनायीं गयी। इसके बाद यहां लोगों का आना जाना शुरू हुआ। उन्होंने बताया कि 2018 में 92 वर्ष की उम्र में मौनी माँ का देहांत हुआ है।

आज भी भक्तों की परेशानी दूर करती हैं मां
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुड़गांव से अपने परिवार के साथ उद्योगपति सुशील अग्रवाल पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि वर्ष 1982 में मेरी मुलाकात माँ से हुई तब वह मेरी बहन के यहां एक कार्यक्रम में आई हुई थी। उन्होंने मुझे देखा और उन्हें पता चल गया कि मेरी दिक्कत क्या है। दरअसल, उसी दिन मेरी शटल कॉक बनाने वाली इकलौती फैक्ट्री बिक गयी थी। खरीदार ने मुझे एडवांस रूपए भी दे दिए थे।  मैं परेशान था, माँ ने कहा कल तुम फैक्ट्री जाना मैंने कहा माँ वह तो बिक गयी मैं दूसरे की फैक्ट्री में क्या करने जाऊंगा।
 उन्होंने कहा नहीं तुम जाना, फिर दूसरे दिन खरीदार ने आकर पैसे वापस ले लिए और उनकी कृपा से मेरी आज 5-6 फैक्ट्रियां हैं।